स्वास्थ्य

सावधान! कहीं आप भी पैसिव स्मोकिंग तो नहीं कर रहे?

  • Generic-smokingडब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल 50 लाख मौत का कारण है तंबाकू
  • पैसिव स्मोकिंग या सिगरेट का धुएं के संपर्क में आना भी खतरनाक

तंबाकू आए दिन देश में लाखों की लोगों की मौत का कारण बनता जा रहा है। इसके दुष्प्रभावों को अच्छे से जानने के बावजूद भी लोग इसे अपने रूटीन से नहीं हटा पाते। लेकिन वहीं, आज भी बहुत से लोग इसके दुष्प्रभावों से अंजान है। तंबाकू एक दीमक की तरह है, जो धीरे-धीरे शरीर को खोखला करता जाता है। ऐसे में लोगों को इससे दूर रहने के लिए खुद को मजबूत करना होगा।

लोगों को तंबाकू के दुष्प्रभावों के बारे में बताने के लिए सरकार को कई तरहके कदम उठाने की जरूरत है। यही नहीं, कॉलेज, स्कूल और जगह-जगह तंबाकू के साइड इपेक्ट्स को लेकर अभियान चलाने चाहिए, ताकि लोगों को जागरूक किया जा सके। आए दिन होने वाले शोधों को यूथ तक पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे आने वाली नई पीढ़ी को तंबाकू की लत से बचाया जा सके। यही नहीं, आपको जानकर हैरानी भी होगी कि यह तंबाकू की लत सिर्फ पुरुषों और लड़कों में नहीं है, बल्कि महिलाएं और लड़कियां भी इसमें शामिल हो चुकी है और पुरुषों को पछाड़ कही हैं।

तंबाकू उत्पादों के डिब्बों पर इसके सेवन से होने वाले नुकसान के संदेश चाहे कितने ही डरावने क्यों न हों, इसके बावजूद महिलाओं में धूम्रपान की लत बढ़ती ही जा रही है। 21वीं सदी में सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक सबसे बड़ी जिम्मेदारी महिलाओं को धूम्रपान की लत से बचाना होगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक, तंबाकू के सेवन से वर्तमान में दुनिया भर में प्रत्येक साल 50 लाख लोगों की मौत होती है और अनुमान के मुताबिक, धूम्रपान से साल 2016 से 2030 के बीच की अवधि में 80 लाख लोग तथा 21वीं सदी में कुल एक अरब लोगों की मौत होगी।

यही नहीं, दुनिया भर में साल 2010 में महिलाओं को सिगरेट के विपणन के साथ लिंग तथा तंबाकू के बीच संबंध स्थापित करने के इरादे से वर्ल्ड नो टोबैको डे शुरू किया गया। इसके अंतर्गत तंबाकू से महिलाओं और लड़कियों को होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करने के लिए शुरू किया गया।

लड़कियों के ध्रूमपान के कारण लड़कों से अलग
किशोरावस्था में लड़कियां धूम्रपान की शुरुआत करती हैं और साल दर साल इनकी संख्या बढ़ती ही जाती है। इस बात के हालांकि सबूत हैं कि लड़कियों द्वारा धूम्रपान शुरू करने के कारण लड़कों द्वारा धूम्रपान करने के वजहों से अलग है।
बच्चों का मात-पिता से संबंध भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किशोरों की चाहत माता-पिता, स्कूल और समुदाय से अधिक से अधिक जुड़ाव की होती है। दुर्भाग्यवश, आज के दौर में माता-पिता अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते, जिसके कारण बच्चे की गलत संगति में पड़ने की संभावना ज़्यादा हो जाती है।  

आधी सदी पहले फेफड़े के कैंसर से महिलाओं की तुलना में पांच गुना ज्यादा पुरुष मरते थे। लेकिन इस सदी के पहले दशक में यह खतरा पुरुष और महिला दोनों के लिए ही बराबर हो गया। धूम्रपान करने वाले पुरुषों व महिलाओं के फेफड़े के कैंसर से मरने का खतरा धूम्रपान न करने वालों की तुलना में 25 गुना अधिक होता है।

धूम्रपान करने वाली महिलाओं के बांझपन से जूझने की भी संभावना होती है। सिगरेट का एक कश लगाने पर सात हजार से अधिक रसायन संपूर्ण शरीर और अंगों में फैल जाते हैं। इससे अंडोत्सर्ग की समस्या, जनन अंगों का क्षतिग्रस्त होना, अंडों को क्षति पहुंचना, समय से पहले रजोनिवृत्ति और गर्भपात की समस्या पैदा होती है।

सिगरेट पीना जितना खतरनाक है, उससे भी ज़्यादा खतरनाक उसके धुएं की संपर्क में आना है। जी हां, ग्लोबल एडल्ट टौबैको सर्वे गेट्स इंडिया 2010 के हालिया अंकड़ों के अनुसार 52.3 फीसदी भारतीय अपने ही घर में, 29.9 फीसदी कार्य स्थल पर और 29 फीसदी सर्वजनिक स्थानों पर सैकेंड हैंड स्मोकिंग के संपर्क में आते हैं। तंबाकू के धुएं में 7000 से ज्यादा रसायन होते हैं, जिनमें से लगभग 70 रसायन कैंसर पैदा करने वाले होते हैं। तंबाकू के धुएं के अप्रत्यक्ष संपर्क में आना भी खुद धूम्रपान करने जितना ही खतरनाक है। धूम्रपान करने वालों और उनके करीब रहने वालों की सेहत पर इससे पड़ने वाले बुरे प्रभावों को देखते हुए सख्त कानूनों को लागू कराने के लिए लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है।

पैसिव स्मोकिंग भी है खतरनाक
कैलाश हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीच्यूट, नोएडा के सीनियर इंटरवेनशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. संतोष अग्रवाल के मुताबिक, तंबाकू से निकले धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों को पैसिव स्मोकिंग कहा जाता है। जो लोग इस माहौल में सांस लेते हैं, वे धूम्रपान करने वालों के समान ही निकोटिन और विषैले रसायन लेते हैं, जो हमारे शरीर के लिए बेहद खतरनाक हैं।

पैसिव स्मोकिग गंभीर समस्या बनती जा रही है और इसका हल जरूरी है। चिकित्सा क्षेत्र के लोगों, नीति बनाने वालों और आम लोगों को मिलकर इसके बारे में काम करना होगा। धूम्रपान करने वालों और उनके परिवार को इससे होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करना और छोड़ने में मदद करना चाहिए।

शोध के मुताबिक, जो लोग 35 से 39 की उम्र में धूम्रपान छोड़ देते हैं, उनकी उम्र 6 से 9 साल बढ़ जाती है। छोड़ने से फेफड़ों और गले के कैंसर, अस्थमा, सीओपीडी, कैट्रेक्ट और मसूड़ों की बीमारियां के साथ साथ दिल के रोगों का खतरा टल जाता है।

अब भी वक्त है, धूम्रपान छोड़ दीजिए। धूम्रपान छोड़ने से लंबे समय तक स्वस्थ रहने और जीने का संभावना बढ़ जाती है। अपने परिवार और खुद के लिए हेल्दी रहना बहुत जरूरी है। तंबाकू की लत त्याग खुद को हेल्दी तरीके से जीने की राह दिखाएं।

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