शशांक शेखर बाजपेई। देश में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के राजा महाकाल का मंदिर कई विशेषताओं के कारण देश-दुनिया में ख्यात है। एक मात्र दक्षिणमुखी मंदिर होने के कारण यह तंत्र-मंत्र साधना के लिए जहां प्रसिद्ध है, वहीं इस मंदिर की एक और विशेषता है। वह है मंदिर के ऊपर तीसरी मंजिल पर स्थित नामचंद्रेश्वर का मंदिर, जिसे साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी के दिन खोला जाता है।
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मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या कर अमरत्व का वरदान पाने के बाद तक्षक ने महाकाल के सानिध्य में रहने का वर मांगा था। हालांकि, वह चाहते थे कि उनका एकांत भंग नहीं हो, इसलिए उनके मंदिर के पट साल में एक बार ही खोले जाते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासी करते हैं। नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए 26 जुलाई की रात 12 बजे मंदिर के पट खुलेंगे, जो पूरी नागपंचमी के दिन और रात 12 बजे तक खुले रहेंगे।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह 11वीं में नेपाल से लाई गई थी। इसमें फन फैलाए शेषनाग के आसन पर शिव-पार्वती और गजानन बैठे हैं, जबकि दुनियाभर में हर कहीं शेषनाग पर विष्णु भगवान को ही लेटे हुए दिखाया गया है। दशमुखी सर्प शय्या पर बैठे भोलेनाथ के गले और हाथ में सांप लिपटे हुए हैं। भगवान शिव के गले में लिपटे नाग का नाम वासुकी है, जिनसे आगे कई नागवंश आरंभ हुई। वासुकी नाग को शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा माना जाता है। इनके बाद तक्षक तथा पिंगला हुए। तक्षक ने ही प्राचीन नगर तक्षकशिला (तक्षशिला) की स्थापना की थी।
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तक्षक को मिला था अमरत्व का वरदान
सर्पराज तक्षक ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी और अमरत्व का वरदान हासिल किया था। कहा जाता है कि उसके बाद से तक्षक ने प्रभु के सान्निध्य में ही रहना शुरू कर दिया।
इसलिए है महत्व
इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति हर तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। इसीलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। कालसर्प दोष, सांप के काटने का भय आदि यहां दर्शन करने के बाद नहीं रहता। नागपूजन करते समय इन 12 प्रसिद्ध नागों के नाम लिए जाते हैं – धृतराष्टड्ढ, कर्कोटक, अश्वतर, शंखपाल, पद्म, कंबल, अनंत, शेष, वासुकि, पिंगला, तक्षक और कालिया। इसके साथ ही इन नागों को अपने परिवार की रक्षा हेतु प्रार्थना की जाती है।
पौराणिक कथाओं में मनुष्यों और नागों का संबंध
कहते हैं कि शेषनाग के सहस्र फनों पर पृथ्वी टिकी है। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर सोते हैं। शिवजी के गले में सर्पों के हार हैं। कृष्ण-जन्म पर नाग की सहायता से ही वसुदेवजी ने यमुना पार की थी। जनमेजय ने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पों का नाश करने वाले सर्पयज्ञ का आरंभ किया था, लेकिन आस्तिक मुनि के कहने पर श्रावण पंचमी (नाग पंचमी) को यज्ञ को बंद किया था। समुद्र-मंथन के समय वासुकि नाग ने देवताओं की भी मदद थी। इसलिए नागपंचमी नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है।