सीरिया संकट: क्या तीसरे विश्व युद्ध की आहट के पीछे शिया-सुन्नी फसाद है?
सीरिया में अमेरिका ने ब्रिटेन, फ्रांस जैसे सहयोगियों के साथ हवाई हमले किए हैं. उनका कहना है कि दरअसल सीरिया की बशर अल-असद सरकार ने अपने ही लोगों पर रासायनिक हमले किए हैं, लिहाजा सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी. इस बीच सीरिया के करीबी दोस्त रूस ने यह धमकी दी है कि पश्चिमी ताकतों के इस हमले के बाद दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध का खतरा बढ़ गया है क्योंकि इस मसले पर दुनिया दो खेमों में बंटती जा रही है. युद्ध के इस बढ़ते उन्माद के बीच सीरिया के संकट के मूल में शिया-सुन्नी झगड़े को देखा जा रहा है. इसके पीछे पश्चिम एशिया की राजनीति और ऐतिहासिक वजहों को जिम्मेदार माना जा रहा है. आइए यहां समझते हैं इसकी कड़ी दर कड़ी:
सीरिया
बहुसंख्यक सुन्नी आबादी है लेकिन शासक बशर अल-असद अल्पसंख्यक शिया समुदाय के अलावी संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं. 2011 में जब अरब क्रांति की गूंज उठी तो इस मुल्क में पिछले कई दशकों से काबिज असद परिवार की सत्ता को खत्म करने की आवाज उठी और देश में लोकतंत्र की मांग उठी. नतीजतन गृहयुद्ध शुरू हो गया. अमेरिका समर्थिक पश्चिमी ताकतों ने लोकतंत्र की मांग करने वालों को समर्थन दिया. कमजोर पड़ते शिया नेता बशर अल-असद की मदद के लिए पश्चिम एशिया में शियाओं का रहनुमा कहे जाने वाले ईरान तत्काल उनकी मदद के लिए आगे बढ़ा. उसके बाद रूस भी असद के साथ खड़ा हो गया. रूस दरअसल अमेरिका की असद को अपदस्थ करने की कोशिशों को कामयाब नहीं होने देना चाहता. रूसी नेता व्लादिमीर पुतिन को लगता है कि यदि अमेरिका यहां कामयाब नहीं हुआ तो उसकी वैश्विक नेता की छवि को गहरा धक्का लेगा और उसके बरक्स रूस अपनी खोई हुई वैश्विक साख को हासिल करने में कामयाब होगा.
ईरान
पश्चिम एशिया में शिया देशों का नेता माना जाता है. सुन्नी देश सऊदी अरब से वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा है. अमेरिका का विरोधी माना जाता है. इसका मानना है कि यदि इस क्षेत्र में शिया ताकतें कमजोर होती हैं तो सुन्नी ताकतों के साथ दुश्मन देश इजरायल मजबूत होगा. इसलिए असद की सेनाओं को हथियार मुहैया कराने के साथ सीरिया में विद्रोहियों पर हमले कर रहा है. दरअसल ईरान को इस बात की भी चिंता है कि इराक के कमजोर होने के बाद जो ताकत इसने इस क्षेत्र में हासिल की है, वह असद सरकार के पतन के साथ खत्म हो सकती है. उसको इस बात की भी आशंका है कि सीरिया के बाद वह अमेरिका समर्थित ताकतों का निशाना बन सकता है
सऊदी अरब
अरब जगत में सुन्नी देशों का नेता है. शिया-सुन्नी संघर्ष के कारण ईरान के साथ पुरानी अदावत है. ईरान को किसी भी सूरत में इस क्षेत्र में दबदबा बनाने से रोकना चाहता है. इसलिए किसी भी सूरत में सीरिया की शिया सरकार को गिराकर अपने समर्थन वाली सरकार को काबिज करने की कोशिशों में है. अमेरिका का बेहद करीबी है. हाल में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान ने इजरायल से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. इस कदम को भी ईरान और असद सरकार को कमजोर करने की चाहत के रूप में देखा जा रहा है. इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि लेबनान का हिजबुल्ला एक शिया संगठन है. इस नाते ईरान का करीबी है. लेकिन यह कतर, यमन जैसे कई सुन्नी देशों में नॉन स्टेट एक्टर की भूमिका में वहां की सरकारों के खिलाफ चल रहे संघर्ष में भूमिका निभा रहा है. ऐसे में सीरिया में यदि ईरान कामयाब होता है तो हिजबुल्ला जैसे ईरान समर्थित संगठन भी मजबूत होंगे और अरब जगत में सऊदी अरब ऐसा कदापि नहीं चाहता.