ज्योतिष डेस्क : धर्म शास्त्रों में विवाह को सबसे पवित्र बंधन माना गया है। पवित्रता को बनाये रखने के लिये शादी से पहले युवक और युवतियों का कुंडली मिलान जरूरी है। ज्ञात हो कि कुंडली जजन्मतिथि के आधार पर ज्योतिषी बनाते हैं। विवाह से पूर्व युवक और युवती की कुंडली मिलान को मेलापक या मेलन पद्धति कहते हैं। इसे मिलान पत्रक या अष्टकूट मिलान भी कहते हैं। आम भाषा में इसे गुण मिलान कहते हैं।
आखिर क्यों मिलाते हैं कुंडली!
– दोनों को ही संतान सुख की प्राप्ति हो।
– दोनों के बीच आपसी सामंजस्य अच्छा रहे।
– दोनों का स्वास्थ्य अच्छा रहे।
– दोनों को रतिसुख अच्छे से प्राप्त हो।
– दोनों में से किसी का भी अनिष्ट न हो।
– दोनों को ही आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े।
ऊपर दिए गए छह बिंदुओं में शारीरिक, आर्थिक और मानसिक सुख सिमटा हुआ है। इन तीनों ही तरह के सुखों से लड़का और लड़की किसी भी प्रकार से वंचित न हो इसीलिए दोनों की ही कुंडली का मिलान किया जाता है। मिलान नहीं होने से यह माना जाता है कि यदि मिलान उचित नहीं है और फिर भी दोनों विवाह कर लेते हैं तो किसी भी प्रकार का अनिष्ट न भी हो, तो हो सकता है कि उनमें सामंजस्यता कायम न हो या उन्हें संतान सुख प्राप्त न हो। कई बार तलाक की नौबत भी आ जाती है या दोनों में से कोई एक विधुर या विधवा हो जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। उक्त बातें जन्म पत्रिका में क्रमश: लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव से देखी जाती है। प्रथम से जातक का स्वास्थ्य, चतुर्थ से घर के उपयोग की वस्तुओं का सुखए सप्तम से परस्पर स्त्री-पुरुष का सहवास, सुख, अष्टम से दीर्घकालीन जीवन तथा द्वादश या 12वें भाव से क्रय-विक्रय की शक्ति आदि पर विचार किया जाता है। प्रत्येक ग्रह अपने भ्रमणकाल या परिभ्रमण के समय पत्रिका के 12 में से किसी न किसी भाव में होता है। ऐसे में यदि इन 5 भावों में पाप ग्रह हों या ये 5 भाव पाप ग्रहों से दृष्ट हों व युति संबंध रखते हों, तो दांपत्य जीवन का 5 भागित 12 अर्थात 40 प्रतिशत से अधिक जीवन प्रभावित होता है। ऐसे में देवज्ञों ने सुखी, समृद्ध तथा आनंदमय दांपत्य जीवन व्यतीत करने के लिए कुंडली मिलान की परंपरा प्रारंभ की। इसमें लड़के और लड़की के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यताएं मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के 2 भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर लड़के और लड़की की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। अष्टकूट सूत्र में दोनों के आपसी गुणधर्मों को 8 भागों में बांटा गया है। ये 8 गुण जन्म राशि एवं नक्षत्र पर आधारित हैं। दोनों की कुंडली में जन्म समय चन्द्र जिस राशि एवं नक्षत्र में होता है उन्हें जातक की व्यक्तिगत राशि एवं नक्षत्र कहा जाता है। 8 गुणों को क्रमश: 1 से 8 अंक दिए गए हैं, जो कुल मिलाकर 36 होते हैं। प्रत्येक गुण के अलग अंक निर्धारित हैं। इन 36 अंकों में से से कम से कम 19 अंक मिल जाने से मिलान को ठीक माना जाता है, लेकिन इसके लिए उसका नाड़ी मिलान होना जरूरी होता है। अष्टकूट मिलान में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, राशि, ग्रह मैत्री, गण, भटूक और नाड़ी का मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। कुंडली में मंगल दोष भी देखा जाता है, फिर सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है।
अष्टकूट मिलान में 36 अंकों का वितरण निम्न है-
वर्ण : 1, वश्य : 2, तारा : 3, योनि : 4, मैत्री : 5, गण : 6, भकूट : 7, नाड़ी : 8 ।
वर्ण : 1 का मतलब स्वभाव और रंग। वर्ण 4 होते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। लड़के या लड़की की जाति कुछ भी हो लेकिन उनका स्वभाव और रंग उक्त 4 में से 1 होगा। मिलान में इस मानसिक और शारीरिक मेल का बहुत महत्व है। यहां रंग का इतना महत्व नहीं है जितना कि स्वभाव का है।
वश्य : 2 का संबंध भी मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं। चतुष्पाद, कीट, वनचर, द्विपाद और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है।
तारा : 3 का संबंध दोनों के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाई गई है। जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिएए शेष तारे ठीक होते हैं।
योनि : 4 का संबंध संभोग से होता है। जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं। अश्व, गज, मेष, सर्प, श्वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है। शरीर संतुष्टि के लिए योनि मिलान भी आवश्यक होता है।
राशि : 5 या मैत्री राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है।
गण : 6 का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं। देव, राक्षस और मनुष्य।
भकूट : 7 का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एकदूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है।
नाड़ी : 8 का संबंध संतान से है। दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है। शरीर में रक्त प्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है।