नई दिल्ली (। एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून पर 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 12 दिन बाद देश के कई राज्यों में हुई हिंसक घटनाओं में अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा दलित समुदायों ने अपने प्रदर्शन के दौरान बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ को अंजाम दिया जिसमें सरकारी व निजी संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचाया गया। लेकिन आखिर ये हंगामा क्यों बरपा आइए जानते हैं..
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून 1989 के ब़़डे पैमाने पर दुरुपयोग का हवाला देते हुए इसे नरम कर दिया था। फैसला तत्काल लागू हो गया था। इसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई और गिरफ्तारी से पहले सात दिन में जांच करने और जरूरत पड़ने पर अग्रिम जमानत का भी प्रावधान किया गया है। फैसले के क्रियान्वयन के लिए गाइडलाइन जारी की थी। इसके मुताबिक कानून के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का हवाला देते हुए कोर्ट की ये थी गाइडलाइन..
सरकारी कर्मी के लिए : तुरंत गिरफ्तारी नहीं। इनकी गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत से होगी।
आम लोगों के लिए : गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से होगी।
अदालतों के लिए : अग्रिम जमानत पर मजिस्ट्रेट विचार करेंगे। विवेक से जमानत मंजूर या नामंजूर करेंगे।
एनसीआरबी 2016 की रिपोर्ट बताती है कि देशभर में जातिसूचक गाली-गलौच के 11,060 शिकायतें दर्ज हुई थीं, जिनमें जांच में 935 झूठी पाई गई थीं।
फैसले से देशभर के दलित संगठन खफा हो गए। उन्होंने सरकार से पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग की। दलित मंत्रियों और विपक्ष ने भी ऐसी ही मांग की।
देरी पर सरकार की दलील : केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार ने पुनर्विचार याचिका का फैसला कर लिया था। छुट्टियों व ठोस आधार पर याचिका दायर करने में वक्त लगा।
यहां चूक गई सरकार : दलित संगठनों ने बसपा के समर्थन से सोमवार को भारतबंद का आह्वान किया था, लेकिन केंद्र व राज्य सरकारें इसके विकराल रूप लेने की आशंका का भांप नहीं सकीं। पंजाब सरकार ने रविवार को ही परीक्षाएं निरस्त करने जैसे कदम उठाकर हिंसा रोकने के प्रयास किए।
जहां ज्यादा हिंसा हुई उनमें अधिकांश भाजपा शासित राज्य हैं-मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र। इनके अलावा पंजाब, ओडिशा, दिल्ली में भी हिंसक प्रदर्शन हुए। मालूम हो, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में अगले कुछ माह में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। दलित आक्रोश भड़काने की सियासी वजहें भी हैं।
केंद्र ने कहा- सरकार पुराना कानून बहाल करने के पक्ष में
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को स्पष्ट किया कि वह एस-एसटी कानून के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है। सरकार पुराने कानून को बहाल करने के पक्ष में है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार को इस केस में पक्षकार क्यों नहीं बनाया गया?