लखनऊ : पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का रुप है, इसलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधि विधान से पूजन आरंभ हुआ. हिन्दू धर्म में अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का वास होता है। पुराणों में पीपल का बहुत महत्व बताया गया है।
मूल विष्णु: स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एव च
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि:..
फलेSच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित:..
स एव विष्णुर्द्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवतिपुण्यमूल:.
यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुधो गुणाढ्य:..
‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं। यह वृक्ष मूर्तिमान श्रीविष्णु स्वरूप है, महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं. इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है। पद्मपुराण के अनुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है, जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है। पीपल में पितरों का वास माना गया है, इसमें सब तीर्थों का निवास भी होता है इसीलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के पेड़ के नीचे करवाने का प्रचलन है।
पीपल के वृक्ष के कई ज्योतिषीय गुण बोध माने गए हैं। पीपल को बृहस्पति ग्रह से जोड़ा जाता है. माना जाता है कि पीपल का बृहस्पति से सीधा संबंध होता है। बृहस्पति को सभी ग्रहों में सबसे अधिक लाभ देने वाला ग्रह माना जाता है. बृहस्पति धन का कारक ग्रह है. बृहस्पति जब भी किसी की कुंडली में प्रवेश करते हैं, उस व्यक्ति को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने को कहा जाता है।