सौभाग्य : 2018 तक हर घर बिजली पहुँचाने की सबसे बड़ी चुनौती यूपी और बिहार में
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित प्रधानमन्त्री सहज बिजली हर घर योजना अर्थात सौभाग्य के तहत 2018 तक हर घर बिजली पहुँचाने की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश और बिहार में है | दिसम्बर 2018 तक देश के हर घर में बिजली पहुंचाने की प्रधानमन्त्री सहज बिजली हर घर योजना ” सौभाग्य ” बिजली सेक्टर में एक बड़ा क्रांतिकारी कदम है और इसकी सफलता का सारा दारोमदार मुख्यतया सार्वजानिक क्षेत्र की बिजली कंपनियों पर है क्योंकि विगत के अनुभव से यह साफ़ है कि निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों की घाटे वाले जनहित की योजनाओं में कोई रूचि नहीं रहती | निजी कम्पनियाँ केवल मुनाफे की श्रेणी के उपभोक्ताओं को बिजली देने में ही दिलचस्पी रखती हैं | इस दृष्टि से केन्द्र और राज्य सरकारों को अभी तक चल रही निजी घरानों पर अति निर्भरता की ऊर्जा नीति में बदलाव कर ऊर्जा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों को और सुदृढ़ करना होगा तभी सौभाग्य योजना सफल हो पाएगी |
केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय के गर्व पोर्टल के अनुसार देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 17.92 करोड़ घर हैं जिनमे 13.87 करोड़ घरों के पास बिजली कनेक्शन है अर्थात ग्रामीण क्षेत्र में ही लगभग 04. 05 घर ऐसे हैं जिनके पास बिजली कनेक्शन नहीं है | प्रधानमन्त्री ने 04 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाने की योजना शुरू की है तो स्पष्टतः यह योजना मुख्यतया ग्रामीण क्षेत्रो के लिए है | चूँकि ग्रामीण क्षेत्र में बिजली आपूर्ति सस्ती दरों पर की जाती है और एक अध्ययन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रति यूनिट बिजली आपूर्ति में बिजली वितरण कंपनी को 04 से 05 रु प्रति यूनिट तक घाटा होता है अतः इस घाटे को उठाने के लिए कोई निजी कंपनी तैयार नहीं होगी और स्वाभाविक तौर पर यह कार्य सरकारी क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियों को ही करना पडेगा | अतः समय आ गया है जब निजी घरानों पर आत्म निर्भरता कम कर सरकारी क्षेत्र को मानव संसाधन और सामग्री की दृष्टि से और सुदृढ़ किया जाये |
सौभाग्य योजना को लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश और बिहार में है क्योंकि केन्द्रीय विद्युत् प्राधिकरण के अनुसार उप्र के 71 % और बिहार के 85 प्रतिशत ग्रामीण घरों में अभी बिजली कनेक्शन नहीं है | कुल 04. 05 करोड़ शेष घरों में से लगभग 40 प्रतिशत घर अकेले उप्र में हैं | उप्र में तकनीकी कर्मचारियों की भारी कमी है और अधिकाँश बिजली उपकेंद्र ठेकेदारों के भरोसे चलाये जा रहे हैं ऐसे में संविदा कर्मियों को नियमित करने और नयी भर्ती किये बगैर ठेकेदारों के भरोसे सौभाग्य योजना की सफलता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है | वर्तमान ऊर्जा नीति की इससे बड़ी विफलता और क्या हो सकती है कि देश में बिजली की उत्पादन क्षमता 330000 मेगावाट है और मांग इसके आधे से भी कम 150000 मेगावाट है फिर भी 30 करोड़ लोगों के पास अभी भी बिजली नहीं है | सौभाग्य योजना के अंतर्गत लगभग 04 करोड़ से अधिक घरों में रहने वाले 30 करोड़ लोगों तक बिजली पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है | इनमे से आधे से अधिक घर केवल उत्तर प्रदेश और बिहार में हैं | ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के सभी घरों को मिलकर देखें तो झारखण्ड के 56 %, नागालैण्ड के 55 %, बिहार के 53.5 %, उप्र के 49 % और असम के 46 . 6 % घरों में बिजली नहीं पहुँची है | इनमे से छोटे प्रांतों को छोड़ दिया जाये तो स्पष्ट है कि सौभाग्य योजना की निर्धारित समय सीमा में सफलता की सबसे बड़ी चुनौती उप्र और बिहार में है जिसे पूरा कर सकना असंभव तो नहीं किन्तु मौजूदा परिस्थितियों में बेहद मुश्किल नजर आता है |
प्रधानमन्त्री सहज बिजली हर घर योजना के अनुसार हर घर को बिजली कनेक्शन दिया जायेगा चाहे वह कनेक्शन लेने बिजली दफ्तर आये या न आये | कनेक्शन देने की प्रक्रिया में बिजली के खम्भे से उपभोक्ता के घर तक तार खींचना , मीटर लगाना , एल ई डी बल्ब लगाना और एक मोबाईल चार्जिंग पॉइन्ट देना सम्मिलित होगा | यदि घर के पास बिजली का पोल नहीं होगा तो आवश्यकतानुसार एक या अधिक बिजली के पोल लगाने का काम भी सौभाग्य योजना का हिस्सा है | इस कार्य के लिए केन्द्र सरकार ने फिलहाल 16000 करोड़ रु का बजट बताया है जो वस्तुतः कहीं ज्यादा हो सकता है | देश की बिजली वितरण कंपनियों की खराब माली हालत और मानव संसाधन की भारी कमी को देखते हुए दिसंबर 2018 तक लक्ष्य पूरा होना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है | सरकारी आंकड़ों के अनुसार अगले 15 महीनों में 40530031 घरों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रति माह 27 लाख बिजली कनेक्शन अर्थात प्रतिदिन 90000 से अधिक बिजली कनेक्शन देने होंगे जो वतमान प्रगति से 600 प्रतिशत अधिक प्रगति करने पर ही संभव हो सकेगा | अभी लगभग 4 लाख 75 हजार घरों को प्रति माह बिजली कनेक्शन दिए जा रहे हैं | उप्र में 14666815 , बिहार में 6495622 , मध्य प्रदेश में 4502027, राजस्थान में 2020979 ,झारखण्ड में 3047833 , हरियाणा में 683690 ,छत्तीसगढ़ में 644458 और गुजरात में 23059 घरों में बिजली कनेक्शन नहीं हैं | केरल भारत का एकमात्र प्रान्त है जहाँ इस वर्ष हर घर तक बिजली पहुंचाने में कामयाबी हासिल हो चुकी है |
जब हर घर तक बिजली पहुंचाने की बात हो रही है तो यह भी समझ लेना चाहिए कि ग्रामीण विद्युतीकरण और नयी घोषित सौभाग्य योजना में क्या फर्क है ? राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के अंतर्गत 2005 से बी पी एल परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन पहले से ही दिए जा रहे हैं | एन डी ए सरकार आने के बाद इस योजना का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना कर दिया गया है बाक़ी सब वैसा ही है | यानी कि गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को जो सुविधा 2005 से मिल रही है अब सौभाग्य योजना के तहत वही मुफ्त बिजली कनेक्शन की सुविधा अब गरीबी रेखा से ऊपर के उन सभी परिवारों को भी मिलेगी जिनके पास बिजली कनेक्शन नहीं है | ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा के अंतर्गत जिस गांव में बिजली की लाइन , ट्रान्सफार्मर और कम से कम एक दलित बस्ती सहित 10 % लोगों को बिजली पहुंचा दी जाये तो उस गांव को विद्युतीकृत गांव माना जाता है | इस दृष्टि से आज देश में कुल लगभग 06 . 07 लाख गावों में से मात्र 3186 गांव ही ऐसे बचे हैं जो विद्युतीकृत नहीं हैं | किन्तु इस विद्युतीकरण के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 04 करोड़ घर ऐसे हैं जिनके पास आज भी बिजली नहीं है | सौभाग्य योजना इन्ही घरों तक बिजली पहुंचाने की योजना है |
हर घर तक बिजली पहुंचाना एक बात है और हर घर को जरूरत के घंटों में बिजली मिलती रहे यह अलग मामला है | अभी भी देश के बड़े हिस्से में जिनके पास बिजली कनेक्शन है उन्हें भी बमुश्किल 4 से 6 घंटे भी बिजली नहीं मिल रही है | उप्र , बिहार , उड़ीसा , राजस्थान , झारखण्ड जैसे बड़े प्रांतों में भी बिजली आपूर्ति की बदहाल स्थिति है | मुख्य कारण सरकार की गलत ऊर्जा नीति के चलते बिजली कंपनियों की खराब वित्तीय स्थिति है और वे अण्डर कैपेसिटी बिजली पारेषण तंत्र और जर्जर विद्युत् वितरण तंत्र को जरूरत के हिसाब से सुदृढ़ करने में सक्षम नहीं हो पा रही हैं | बिजली वितरण कम्पनियों की हानियाँ लगभग 24 % हैं जिसमे बड़ी मात्रा में चोरी है | उप्र में हानियां 40 % तक हैं | बिजली चोरी बिना दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के नहीं रोकी जा सकती है | चाहे किसी दल की सरकार रही हो सभी सरकारों ने अपने विद्युत् उत्पादन गृह लगाए नहीं और वितरण कंपनियों को निजी घरानों से बिजली खरीद के करार करने को विवश होना पड़ा | आज हालात यह हैं कि वितरण कम्पनियाँ निजी घरानों से महंगी बिजली खरीदने में ही कंगाल होती जा रही हैं ऐसे में सौभाग्य योजना के तहत सभी घरों को बिजली कनेक्शन दे भी दिए जाएँ तो इन घरों को देने के लिए वितरण कम्पनियाँ बिजली कैसे जुटाएंगी यह बड़ा प्रश्न है | इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि यदि बिजली मिल भी जाए तो ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन के जर्जर तंत्र को सुदृढ़ किये बिना हर घर को बिजली देना कैसे संभव होगा |
उप्र की बात करें तो आज प्रदेश में 20000 मेगावाट बिजली की जरूरत है | उप्र का अपना कुल बिजली उत्पादन 8 से 9 हजार मेगावाट है और पारेषण लाइनों की वर्तमान क्षमता के अनुसार अन्य प्रांतों से 8100 मेगावाट से अधिक बिजली नहीं लायी जा सकती | इस प्रकार आज की 20000 मेगावाट मांग के सापेक्ष अधिकतम उपलब्धता 17000 मेगावाट हो पाती है | हर घर को बिजली देने की योजना में लगभग पौने दो करोड़ और घरों तक बिजली देने के बाद अगले वर्ष यह मांग 25000 से 27000 मेगावाट तक हो जाएगी | बिजली के तंत्र को दुरुस्त किये बिना जब हर घर तक बिजली देना संभव नहीं हो पायेगा तो मात्र बिजली कनेक्शन देने से क्या होने वाला है ? जिन घरों में बिजली नहीं है उनमे से अधिकांश घर गरीबी की रेखा से नीचे के बी पी एल परिवारों के हैं जिन्हे लागत से काफी काम मूल्य पर बिजली दी जाएगी | इन घरों में बिजली देने में वितरण कंपनियों को प्रति यूनिट कम से कम 04 से 05 रु की क्षति होगी | स्वाभाविक है कोई निजी कंपनी यह कार्य करने सामने नहीं आएगी | अतः सौभाग्य योजना की सही मायने में सफलता के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निजी घरानों पर अति निर्भरता की मौजूदा ऊर्जा नीति में बदलाव कर सरकारी क्षेत्र की बिजली कंपनियों को मानव संसाधन , सामग्री और संसाधन की दृष्टि से और सशक्त करना होगा |
(लेखक इण्डिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन और उप्र पावर कार्पोरेशन के सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता हैं|)