सिद्धासन करने के लिए पहले बाएँ पैर को मोड़कर एड़ी को गुदा द्वार एवं यौन अंगों के मध्य भाग में रखिए। फिर दाहिने पैर के पंजे को बाई पिंडली पर रखिए। बाएँ पैर के टखने पर दाएँ पैर का टखना होना चाहिए। घुटने जमीन पर टिकाए रखें। पैरों का क्रम बदल भी सकते हैं, हाथों को दोनो घुटनों के ऊपर ज्ञानमुद्रा में रखें। साँस सामान्य, आज्ञाचक्र में ध्यान केन्द्रित करें।
विद्यार्थियों के लिए यह आसन विशेष लाभकारी है। जठराग्नि तेज होती है। दिमाग स्थिर बनता है,एकाग्रता तेज होती है, जिससे स्मरणशक्ति बढ़ती है। ध्यान के लिए उपयुक्त आसन है पाचनक्रिया नियमित होती है। यह आसन ब्रह्मचर्य की रक्षा करता है। कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए यह आसन उपयुक्त है, श्वास के रोग, हृदय रोग, अजीर्ण, दमा, आदि अनेक रोगों लाभकारी है।