हर मुश्किलों को पार कर मरीजों का इलाज करते हैं डॉक्टर अंसारी
एक तरफ लोग नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जाने से डरते हैं। तो वहीं दूसरी तरफ एक ऐसे डॉक्टर की तस्वीर सामने आई है जिसने हर किसी को हैरान कर दिया है। इंसानियत की मिसाल इस तस्वीर ने लोगों को एक सीख दी है। ये डॉक्टर अपनी जान पर खेलकर लोगों की मदद करने ऐसी जगह जाता है जो खतरे से खाली नहीं है। हम बात कर रहे हैं डॉ अतिक अहमद अंसारी की। डॉक्टर अंसारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पोटाली, ब्लॉक कुंआकोण्डा, जिला दंतेवाड़ा में पोस्टेड हैं। ये डॉक्टर यहां रहने वाले लोगों के लिए किसी देवता से कम नहीं हैं।
छत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम आते ही दिमाग में सबसे पहले हाथों में बंदूक लहराते नक्सलियों की छवि घूमने लगती है। ये ऐसा एरिया है जहां दो तरह के लोग ही रहते हैं। पहले जो यहां मजबूरी में रहते हैं और दूसरे वो लोग जो यहां रहते हुए इस एरिया से प्यार कर बैठते हैं।आपको बता दें कि कुंआकोण्डा वही ब्लॉक है जिसमें अभी हाल ही में विधानसभा चुनाव से पहले नक्सलियों ने हमला कर दिया था। डॉक्टर अंसारी उस दिन भी घटनास्थल से सिर्फ 4 किलोमीटर दूरी पर थे।
डॉक्टर अंसारी ने बताया कि उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी वहां लोगों को समझाने में आई। यहां के लोग बीमार पड़ने पर डॉक्टर को दिखाने की बजाय झाड़-फूंक वाले बाबा के पास जाते थे। ऐसे में इनकी बीमारी भयानक रूप ले लेती थी। लोगों को समझाना बहुत मुश्किल हो रहा था कि बीमारी में झाड़-फूंक नहीं बल्कि डॉक्टर को दिखाएं। लेकिन वो वक्त भी आया जब लोगों ने मेरी बात मानी और इलाज कराने डॉक्टर के पास आने लगे। दंतेवाड़ा-सुकमा बार्डर के एक कैंप में तैनात सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडर अमित कहते हैं कि डॉ अंसारी में गजब का जोश और सेवा भाव है। डॉक्टर अंसारी आदिवासी लोगों के बीच जाकर उनका इलाज करते हैं। इनकी वजह से ही आदिवासियों में जागरुकता आई है।
डॉ अंसारी जैसे युवाओं की मौजूदगी ने अस्पताल के प्रति आदिवासी लोगों का विश्वास बढ़ाया है। वहीं डॉक्टर अंसारी ने बताया कि यहां सुधार के लिए CRPF की भूमिका महत्तवपूर्ण हैं। क्योंकि इनकी बदौलत, इनकी उपस्थिति की वजह से ही ही यहां सड़कें बनी हैं। आज वक्त ऐसा आ गया है कि यहां एंबुलेंस की सुविधाएं ज्यादातर गांवों में पहुंच गई है। आज भी यहां कई गांव बरसात में मुख्य मार्ग से कट जाते हैं।
डॉ अंसारी कहते हैं कि शुरुआत में मैं भी इस क्षेत्र की संवेदनशीलता के चलते अपने करिअर को लेकर बहुत चिंतित था। मुझे लगता था कि कैसे सबकुछ होगा। लेकिन यहां के लोगों से इतना प्यार मिला कि मैं मुझे यहां 30 साल हो गए। एक वक्त ऐसा था जब 7 से 8 किलोमीटर तक कैंपेंन लगाने के लिए मुझे पैदल चलना पड़ता था। यहां सड़कों की हालत बेहद खराब थी। दो से तीन बार विजिट करने के बाद कैंपेंन लग पाता था। आज हालत में इस कदर सुधार हो गया है कि गांव वाले खुद मुझे कैंपेंन लगाने के लिए बुलाते हैं।