हाईकोर्ट पहुंचा वाराणसी में मूर्ति विसर्जन का विवाद
दस्तक टाइम्स/ एजेंसी. नई दिल्ली 10 अक्टूबर : काशी में मूर्ति विसर्जन को लेकर शुरू हुआ विवाद अब हाईकोर्ट पहुंच गया है. गणेशोत्सव के दौरान वाराणसी प्रशासन ने मूर्ति विसर्जन रोकने के लिए जिस तरह की सख्ती दिखाई उससे लोग नाराज हैं. अब दुर्गा पूजा का पर्व है. लिहाजा विसर्जन को लेकर नया बवाल रोकने के लिए पूजा समितियां कोर्ट पहुंच चुकी हैं.
इसी मामले में एक याचिका पर शनिवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई होनी है. जिसमें पूजा समितियां अदालत के सामने अपना पक्ष रखकर यह साबित करने की कोशिश करेंगी की पारम्परिक तरह से बनाई गई मूर्तियों से गंगा में प्रदूषण का खतरा नहीं होगा. उन मूर्तियों को गंगा में विसर्जित करने की इजाजत दी जाए जिन्हें प्राकृतिक चीजों से बनाया गया है. उनके मुताबिक हाईकोर्ट में अभी तक ये बात रखी ही नहीं गई कि मूर्ति की स्थापना शास्त्रों के हिसाब से ही होती है. विसर्जन भी शास्त्रों के हिसाब से बहते हुए पानी में होता है. जब धर्म से जुड़े मामलों में अदालतें धर्म विशेष के ग्रंथों, परम्पराओं और आस्था को ध्यान में रखकर फैसले देती आई हैं तो इस मामले में काशी के लोगों की मांग कहां गलत है.
दरअसल हाईकोर्ट के आदेशों पर गणेश मूर्ति विसर्जन रोकने वाले प्रशासन पर दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा मूर्ति विसर्जन रोकने की भी जिम्मेदारी होगी. हाईकोर्ट के आदेश में मूर्ति विसर्जन रोकने के पीछे सबसे बड़ी वजह मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल मिले रंगों का इस्तेमाल बताया गया है. बनारस के मूर्तिकारों का तर्क है कि वो पारम्परिक तौर पर मूर्तियां गंगा से निकाली गई चिकनी मिट्टी, बांस, जूट, फूस और प्राकृतिक रंगों से ही बनाते हैं. इसके अलावा मूर्ति विसर्जन के समय ऐसी व्यवस्था रहती है कि गंगा में प्रवाहित की गई मूर्तियों की मिट्टी पानी में घुलने के बाद नाविक बांस और रस्सी बाहर निकाल लेते हैं. ऐसे में इनका तर्क है कि इन मूर्तियों के विसर्जन से गंगा में प्रदूषण नहीं हो सकता.