बड़ा हल्ला मचा है। कांग्रेस ने भाजपा को 3 राज्यों में धूल चटा दी। मैदान मार लिया। विजयरथ रोक दिया। और भी न जाने क्या-क्या। आंकड़े भी सामने हैं। छत्तीसगढ़ में जहां 90 में से 68 सीट पर कांग्रेस ने कब्जा जमाकर भाजपा को महज 15 के आंकड़े पर रोक दिया है तो मध्यप्रदेश में वो अब सरकार बना रही है, सीट भले 114 आई हों। राजस्थान में कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत हासिल की तो भाजपा के खाते में 73 सीट आई हैं।
हम्म्म। सब कुछ तो ठीक है। फिर ये कहना कहां तक सही है कि भाजपा हार कर भी नहीं हारी और कांग्रेस जीत कर भी नहीं जीती। मोटे आंकड़े कई बार आंखों में धूल झोंकने का काम करते हैं। उस धूल में, आंखे मलते हुए ये पहचान पाना मुश्किल हो जाता है कि इन आंकड़ों की तह के इतर या इसके नीचे कोई और तह तो नहीं छिपी।
छत्तीसगढ़ को बख्श देते हैं। क्योंकि यहां वाकई कांग्रेस ने कमाल कर दिखाया है। ये विरोधी रमन सिंह को चारों खाने चित कर देने वाली जीत है। लेकिन, मध्यप्रदेश और राजस्थान के मामले में सब कुछ इतना सीधा नहीं, जितना दिखता है।
पहले मध्यप्रदेश की बात
एक आंकड़ा है। वोट प्रतिशत का। एक ऐसा आंकड़ा जिसे राजनीतिक विश्लेषक बड़े करीब से देखते हैं। समझते हैं। फिर हिसाब-किताब करते हैं। जरा ये ग्राफिक गौर से देखिए
प्रदेश में भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले हैं। प्रतिशत में कहें तो 41 फीसदी और संख्या में कहे तो 1,56,42,980। वहीं कांग्रेस पर 40.9 फीसदी मतदाताओं ने भरोसा जताया है यानी 1,55,95,153 ने।
अचानक ये आंकड़ा चौंकाऊ लगा न? होता है। लेकिन वो कहते हैं न जीत के सामने सारे तर्क, सारे आंकड़े बौने हो जाते हैं। इस केस में भी कांग्रेस के पास संख्याबल है, सपा-बसपा जैसे सहयोगियों का साथ है। तो सरकार तो वो बना ही लेगी। लेकिन 2019 की लड़ाई में उसे भाजपा का वोट प्रतिशत कड़ी टक्कर देने का माद्दा रखता है।
नतीजों से पहले जब एग्जिट पोल आए तो शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं सबसे बड़ा सर्वेयर हूं और जीत भाजपा की ही होगी। वैसे कहने को कहा जा सकता है कि नतीजों से पहले हार मान ले, वो नेता काहे का। तो शिवराज ने ठीक ही कहा। लेकिन जब नतीजे आहिस्ता-आहिस्ता आने लगे, शाम को रात में बदलते हुए आंकड़े भी बदलने लगे तो एकबारगी कांग्रेस की सांस भी अटक गई होगी।