अद्धयात्म

हिंदू धर्म में ऊं को पवित्र क्यों माना जाता है?

phpThumb_generated_thumbnail (12)दस्तक टाइम्स एजेंसी-अक्षरं ब्रह्म परमं – गीता के आठवें अध्याय के तीसरे श्लोक में कहा गया है, यानी यह साक्षात ईश्वर का रूप है। यह प्रणव मंत्र है, जिसकी उपासना करने से मनुष्य के जीवन के सारे कष्ट-संताप मिट जाते हैं। इसका जप-उच्चारण और आवास गृह में इसके अंकन से परम् सौभाग्य और धन, बल, बुद्धि व वैभव की प्राप्ति होती है। 

 यह अकेला शब्द अत्यंत ही शक्तिशाली प्रतीक चिह्न है और अन्य सभी मांगलिक चिह्नों से ऊपर है। परमात्मा के एकाक्षर नाम ऊं के उच्चारण के बिना न तो कोई जप, न तप और न ही दान संपूर्ण हो पाता है। कोई अनुष्ठान भी इसके बगैर नहीं संपन्न होता है। 
 
इसकी वजह यह है कि इस शब्द में ब्रह्मा स्वयं साक्षात रूप में विराजते हैं और इस प्रतीक में अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष, सभी शामिल हैं। मनुष्य के शरीर में ब्रह्म प्रकाश स्थित है। 
 
उसी से वह क्रियाशील होता है और यह ब्रह्मत्व उपरोक्त पांच कोषों से बना होता है। अत: ऊं केवल ब्रह्म स्वरूप ही नहीं है, बल्कि यह हमारा आत्म स्वरूप भी है।
 
परमात्मा का प्रतीक है ऊं 
ऊं ब्रह्म स्वरूप है और स्वत: सिद्ध शब्द है, जिसके स्मरण, जप, ध्यान से मानव को सुख-शांति और धन-वैभव प्राप्त होता है। हमारे उपनिषदों में ओंकार को परमात्मा का श्रेष्ठ प्रतीक बताया गया है। 
 
ऊं नाम से आत्मा का ध्यान करने का निर्देश दिया गया है। ओंकार ब्रह्मनाद है और इस शब्द के स्मरण, उच्चारण व ध्यान से आत्मा का ब्रह्म से सम्बंध बनता है।
 
पं. हरिओम शास्त्री
 

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