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नीतीश के इस्तीफे के साथ आया सियासी भूचाल बुधवार देर रात तक चला। आधी रात 12 बजे के बाद नीतीश-सुशील ने राज्यपाल त्रिपाठी से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। तब तक राज्यपाल लालू-तेजस्वी को सुबह 11 बजे मिलने का वक्त दे चुके थे।
चूंकि नीतीश ने 132 विधायकों की लिस्ट सौंपी थी, राज्यपाल ने उन्हें सुबह 10 बजे ही शपथ दिलाने का फैसला सुना दिया। पहले शपथ का वक्त शाम 5 बजे तय किया गया था। ठीक सुबह 10 बजे राजभवन के राजेंद्र मंडप में राज्यपाल ने नीतीश एवं सुशील को शपथ दिलवाई और महज आठ मिनट में समारोह पूरा हो गया।
शरद यादव खफा
इस बीच, शरद यादव की नाराजगी की खबरें भी आईं हैं। शरद शपथ ग्रहण में मौजूद नहीं थी। दोपहर में जदयू के महासचिव अरुण श्रीवास्तव ने मीडिया से कहा कि नीतीश ने फैसले से पहले किसी वरिष्ठ नेता से चर्चा नहीं की।
इस बीच, शरद बृहस्पतिवार को राहुल गांधी से भी मिले। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली से भी उनकी मुलाकात की खबर है। माना जा रहा है कि जेटली को उन्हें मनाने का जिम्मा दिया गया है। राजी होने पर मोदी सरकार में उन्हें भी जगह मिल सकती है।
लालू बोले-तेजस्वी बहाना था, भाजपा की गोद में जाना था, राज्यपाल के खिलाफ जाएंगे सुप्रीम कोर्ट
चारा घोटाले सुनवाई के लिए रांची पहुंचे लालू यादव ने नीतीश को भस्मासुर करार दिया। उन्होंने कहा, तेजस्वी बहाना था, असल में तो उन्हें भाजपा की गोद में जाना था। उन्होंने कहा, सबसे बड़े दल के रूप में राजद को सरकार बनाने का न्योता दिया जाना चाहिए था, राज्यपाल के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
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राहुल ने कहा-नीतीश ने बड़ा धोखा दिया
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि नीतीश ने पूरे बिहार को बड़ा धोखा दिया है। देश की राजनीति का यही दुर्भाग्य है कि सत्ता और स्वार्थ के लिए लोग कुछ भी कर सकते हैं।
सवाल, क्या सबसे बड़े दल को बुलाना जरूरी है?
बिहार में लालू का राजद सबसे बड़ी पार्टी है। परंपरा है कि विधानसभा में सबसे पहले सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए बुलाया जाना चाहिए। राजद ने बुधवार को यह मांग भी की थी।
लेकिन, बाद में कई मामलों में व्यवस्था आई कि किसी को साफ बहुमत न मिलने पर महज सबसे बडे़ दल को बुलाना जरूरी नहीं है, राज्यपाल को सरकार का स्थायित्व देखना चाहिए। राज्यपाल विवेकाधिकार से तय करेंगे कि स्थायित्व कौन दे सकता है। इसीलिए राज्यपाल के विवेकाधिकार को लेकर खासी बहस होती रहीं हैं।
जानकारों का कहना है कि नीतीश ने 132 विधायकों के समर्थन का दावा किया है, जो बहुमत से 10 ज्यादा हैं। इसलिए राज्यपाल का उन्हें न्योता देना सही है। कर्नाटक के चर्चित एसआर बोम्मई केस में चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि बहुमत का फैसला विधानमंडल में होना चाहिए।
लिहाजा, शपथ के अगले दिन ही शुक्रवार को नीतीश बहुमत साबित करेंगे। इससे सारे विवादों पर विराम लग जाएगा।