एएमयू में ‘बीफ’ को लेकर विवाद, सोशल मीडिया पर उछला मुद्दा
दस्तक टाइम्स एजेंसी/ अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में अब कथित ‘बीफ’ को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। सोशल मीडिया पर शनिवार को एक मुद्दा उछला। व्हाट्स ऐप के एक पोस्ट में आरोप लगाया गया कि एएमयू मेडिकल कॉलेज की कैन्टीन में ‘बीफ बिरयानी’ परोसी जा रही है। इस खबर से यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि मानो गाय का गोश्त परोसा जा रहा है न कि भैंस का।
शाम तक कैन्टीन के ‘मेन्यू कार्ड’ की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर छा गई। इस पर कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने आवाज उठाई और कैन्टीन के ठेकेदार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। भाजपा मेयर शकुन्तला भारती ने मांग की कि जिला प्रशासन मामला दर्ज कर जांच का आदेश दे और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।
खबर फैली तो विश्वविद्यालय प्राक्टर एम मोहसिन खान के नेतृत्व में एएमयू के वरिष्ठ अधिकारियों ने मेडिकल कॉलेज की कैन्टीन पहुंचकर निरीक्षण किया। एएमयू प्रवक्ता राहत अबरार ने कहा कि यह संस्था को बदनाम करने के लिए दुष्प्रचार है। ‘मैं भरोसे से कह सकता हूं कि जिस बीफ बिरयानी का जिक्र हो रहा है, वह भैंस का गोश्त है।’
उन्होंने कहा कि प्रारंभिक जांच से पता चला है कि कैन्टीन का ठेका 23 फरवरी को समाप्त हो रहा है। ठेका पाने की चाह रखने वाले कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने ये अफवाह उड़ाई है कि गाय का गोश्त परोसा जा रहा है। इस बीच कुछ दक्षिणपंथी संगठनों के और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने शनिवार को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पर प्रदर्शन किया।
उन्होंने मांग की कि मेडिकल कॉलेज कैन्टीन के ठेकेदार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाए। पुलिस का कहना है कि मामले की छानबीन की जा रही है। अबरार ने इन आरापों को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि एएमयू वह पहला संस्थान है जिसने एक सदी पहले ही अपने परिसर में गोमांस पर प्रतिबंध लगाया था।
उन्होंने कहा कि एएमयू संभवत: उच्च शिक्षा का पहला शैक्षणिक संस्थान है जहां एक सदी पहले से संस्थान के परिसर में गोमांस के सेवन की मनाही है। उन्होंने बताया कि मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज, जो बाद में चलकर 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना, के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने 1884 में एक स्पष्ट आदेश जारी किया था कि न सिर्फ किसी भी डाइनिंग रूम में बीफ नहीं परोसा जाएगा बल्कि बखरीद के अवसर पर संस्थान के कर्मचारी गाय की कुर्बानी भी नहीं करेंगे।
बरार के अनुसार सर सैयद अहमद ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि वह हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस नहीं पंहुचाना चाहते थे और इस आदेश का उल्लंघन करने वाले संस्थान के एक कर्मचारी को 1884 में बख्रास्त कर दिया गया था।