दस्तक-विशेष

कांग्रेस के गगनचुम्बी लक्ष्य

दस्तक ब्यूरो

congressपिछले कई चुनावों के बाद कांग्रेस अपने लिए गगनचुम्बी लक्ष्य तय करती नजर आ रही है। उसके नए कर्णधार प्रशांत किशोर कहते हैं कि जुलाई महीने में कांग्रेस पार्टी एक ऐसा चुनाव अभियान शुरू करेगी जो 25 साल में नहीं किया गया था। पता नहीं उनका निश्चित कार्यक्रम क्या है लेकिन वे मेहनत बहुत कर रहे हैं, इसमें कोई शक नहीं है। वे बहुत आधुनिक तौर तरीकों से मैदान में उतरना चाह रहे हैं। पूरे प्रदेश में उन्होंने सक्रिय कार्यकर्ताओं की टीमें खड़ी की हैं और क्रियाशील सदस्यों के नाम खुद पार्टी प्रत्याशियों से ही तय कराए हैं। कांग्रेस के पास विधानसभा की 403 सीटों के चुनाव के लिए 9000 के करीब टिकटार्थियों के आवेदन पत्र अब तक आ चुके हैं। प्रशांत किशोर के इंटरनैट एक्सपर्ट एक एक सीट का विश्लेषण कर रहे हैं और जिलों जिलों में मौके पर जाकर हालात का जायजा ले रहे हैं। प्रशांत किशोर और उनकी टीमों को पुराने कांग्रेसियों का कई जगह विरोध भी झेलना पड़ रहा है। असल में इन कांग्रेसियों को यह बात समझ नहीं आ रही है कि उनके अनुभव को किनारे करके नए नए लोगों को उनके सिर पर क्यों बिठाया जा रहा है। कुछ कांग्रेसी प्रदेश मुख्यालय में यह कहते सुने जा सकते हैं कि ये कल के अनुभवहीन लोग हमें क्या राजनीति सिखाएंगे? लेकिन वे जो भी कहें, उन्हें राजनीति तो अब इन्हीं से सीखनी पड़ेगी क्योंकि वे मन ही मन यह तो जानते ही हैं कि 27 साल से कांग्रेस विपक्ष में बैठी है तो कुछ तो अब करना ही होगा। दूसरी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि प्रशांत किशोर के तार सीधे सीधे राहुल गांधी से जुड़े हैं।
उन्होंने ही उनका चयन किया है और यहां भेजा था। इसलिए कांग्रेसी इस हैसियत में नहीं हैं कि वे उनका खुलकर विरोध कर सकें। कांग्रेसी यह भी जानते हैं कि प्रशांत किशोर की टीम के आकलन के आधार पर ही टिकट बटेंगे, इसलिए चुनाव के अगले पन्ने खुलने तक ज्यादा शोर मचाने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन प्रशांत किशोर से लेकर पार्टी हाईकमान तक की एक समस्या वही है, जो भाजपा की है। उसके पास भी मुख्यमंत्री का कोई चेहरा फिलहाल सामने नहीं है। बताया जाता है कि प्रशांत किशोर किसी ब्राह्मण को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करना चाहते हैं लेकिन कोई प्रदेश स्तरीय सर्वमान्य ब्राह्मण चेहरा कहीं दिखता नहीं। एक नेता प्रमोद तिवारी का नाम अवश्य लिया जा सकता है लेकिन राहुल गांधी की उत्तर प्रदेश की डायरी में उनका नाम कहीं अंकित है भी या नहीं, लोगों को निश्चित तौर पर नहीं मालूम। ऐसे में प्रियंका गांधी के अलावा दूसरा नाम उभरकर सामने आता ही नहीं। प्रियंका की मांग प्रदेश भर में कांग्रेसी करते रहे हैं। 

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