कैसे तैयार किए जाते हैं सरहद की सुरक्षा के लिए ‘हिम योद्धा’?
एजेंसी/ पूरे साल बर्फ से ढके रहने वाले दुनिया के दूसरे सबसे लंबे सियाचिन ग्लेशियर (76 किमी) में रहकर देश की सुरक्षा करना जांबाजों के लिए बेहद जोखिम भरा होता है। लिहाजा, इस इलाके में तैनाती से पहले भारतीय सेना के जांबाजों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
सियाचिन ग्लेशियर में दुश्मनों से ज्यादा खतरा हड्डी गलाने वाली ठंड, बर्फीले तूफान व हिमस्खलन से होता है। इन ‘हिम योद्धाओं’ को गुलमर्ग के ‘द हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल’ में बर्फीले तूफान से बचने और ग्लेशियर में फंसे साथियों व अन्य लोगों को बचाने के लिए नौ सप्ताह का एडवांस प्रशिक्षण दिया जाता है।
13 हजार से 19 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस सैन्य संस्थान की 1948 में स्की स्कूल के रूप में हुई थी, जिसे बाद में द हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल में तब्दील कर दिया गया था। इस संस्थान में अब भारतीय सेना के जवानों और अधिकारियों को माउंटेन वारफेयर (पर्वतीय युद्ध) और विंटर वारफेयर (ठंड इलाके में युद्ध) का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे वीरान सियाचिन में तैनाती के दौरान हड्डी गलाने वाली ठंड और विपरीत मौसम की परिस्थितियों से निपट सके। इनको बर्फीले पहाड़ों में बर्फ के बने घर में रहने की तरकीब भी सिखाई जाती है।
सियाचिन में तैनात सैनिकों को दुश्मनों से लड़ने के लिए हथियार और गोलाबारूद को तो दिए ही जाते हैं, साथ ही मौसम की विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए खास उपकरण भी देते हैं।
इसमें मुख्य रूप से स्नो गोगल्स, फेस मास्क, हैंड ग्लोव्स, हेड लैंप, क्रैम्पोन्स, एवलांच रॉड, एवलांच कोर्ड, एवालंग, आइस ऐक्स, रक्सैक और गैटर्स आदि उपकरण शामिल हैं।