खुद साइकिल बनाकर जंगल से जड़ी-बूटी लाने लगा दिव्यांग, आज गांव में है MBBS डॉक्टर जैसा रूतबा
कहते हैं ना अगर किसी को उसकी वास्तविक शक्ति का अहसास दिलाया जाए तो साधारण से कुछ खास बनने में देर नहीं लगती है। मेडिकल कारणों से कभी-कभी व्यक्ति के विशेष अंगों में दोष उत्पन्न हो जाता है, जिसकी वजह से उन्हें समाज में ‘विकलांग’ की संज्ञा दे दी जाती है और उन्हें एक विशेष वर्ग के सदस्य के तौर पर देखा जाने लगता है। दिव्यागों का मजाक बनाया जाता है, लेकिन अपनी इसी कमी के साथ आगे बढ़ते हुए कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी विकलांगता को अपने लक्ष्य के बीच आने नहीं देते हैं। आज हम एक ऐसे ही दिव्यांग की बात बता रहे हैं जिसका रुतबा अपने गांव में किसी MBBS डॉक्टर से कम नहीं है।
जी हां- हम बात कर रहे हैं बांग्लादेश के बोगरा के रहने वाले 35 साल के सैयद अली की। देखने में सैयद एकदम फिट हैं। इनका काम भी किसी फुर्तिले आदमी से कम नहीं है। जोश और जुनून से भरे हुए सैयद अली में कमी है तो सिर्फ पैरों की। दरअसल, सैयद जब पैदा हुए तो उनके पैरों का निचला हिस्सा कम विकसित हुआ।
सैयद को देख सभी मजाक बनाते, उनके पैरों को देख उन्हें चिढ़ाते थे, लेकिन उन्होंने हमेशा से ही लोगों के मजाक को मजाक में ही लिया। उन्हें देखकर लोग भीख मांगने की सलाह देते थे। लोगों की सलाह सुनकर सैयद हंसकर निकल जाते। सैयद के मन में लोगों का मजाक नहीं बल्कि लोगों की मदद करने का जुनून था। लोगों की मदद करने के लिए उन्होंने मजदूरी करने की सोची। पैर ना होने की वजह से मजदूरी करने में परेशानी होती थी तो उन्होंने खुद की एक ट्राइसिकल बना ली। खुद की ट्राइसिकल बनाने के बाद उनका काम थोड़ा आसान हो गया।
जीवन को आसान बनाने से ज्यादा उनके मन में जिद इस बात की थी कि इलाके के गरीबों के लिए कुछ अच्छा करें। उन्हें पता था कि इन गरीबों की सबसे बड़ी परेशानी बीमारी के दौरान अच्छा इलाज ले पाना है। इसलिए वह जंगल से जड़ी-बूटियां इकट्टा कर दर्द, गठिया और डिसेंट्री की पारंपरिक दवाएं बनाने लगे। उनकी दवा इतनी असरदार निकली कि अब वह इलाके के डॉक्टर माना जाते हैं।
पिछले 10 साल से बेहद सस्ती दवाएं लोगों तक पहुंचा रहे हैं। अली एक अच्छे एक्रोबेट भी हैं और अपनी ट्राइसिकल के साथ कलाबाजी भी सिखाते हैं। बता दें कि अली की ये शानदार तस्वीर बांग्लादेशी फोटोग्राफर अब्दुल मोमिन ने खींची हैं। उन्होंने ही इनकी दिलचस्प कहानी दुनिया के सामने लाई। फोटोग्राफर अब्दुल मोमिन ने अली को बकरियां भी तोहफे में दी है ताकि वह अपना जीवन आसानी से चला सके।