गगन यान : अंतरिक्ष में भारत की बड़ी छलांग
- अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले यात्रियों को ‘व्योमनाॅट्स’ नाम से पुकारा जाएगा
नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने महत्वाकांक्षी मानव मिषन ‘गगन यान‘ को अंतरिक्ष में भेजने की स्वीकृति दे दी है। इस यान में तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री कम से कम सात दिन अंतरिक्ष की सैर करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने इस परियोजना के लिए 10 हजार करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। इसे 40 महीनों के भीतर अंतरिक्ष में छोड़ने की समय-सीमा भी तय की गई है। हालांकि अब तक भारतीय या भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं। राकेष शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं। शर्मा रूस के अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 से अंतरिक्ष गए थे। इनके अलावा भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भी अमेरिकी कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष जा चुकी हैं। नरेंद्र मोदी ने इसी साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से 2022 तक अंतरिक्ष में मानव भेजने की घोशणा की थी। उस पर अब क्रियान्वयन की हरी झंडी मिल गई है। अंतरिक्ष में मानवरहित और मानवचालित दोनों तरह के यान भेजे जाएंगे। पहले चरण में योजना की सफलता को परखने के लिए अलग-अलग समय में दो मानव-विहीन यान अंतरिक्ष की उड़ान भरेंगे। इनकी कामयाबी के बाद मानव-युक्त यान अपनी मंजिल का सफर तय करेगा। यह सावधानी इसलिए बरती जा रही है, क्योंकि अमेरिकी मानव मिशन की असफलता के चलते भारतीय सुनीता विलिम्यस की जान चली गई थी। यदि भारत इस मिशन में कामयाबी हासिल कर लेता है तो ऐसा करने वाला वह दुनिया का चौथा देश हो जाएगा। अब तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही अंतरिक्ष में अपने मानवयुक्त यान भेजने में सफलता पाई है। रूस ने 12 अप्रैल 1961 को रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा था। गागरिन दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री थे। अमेरिका ने 5 मई 1961 को एलन शेपर्ड को अंतरिक्ष में भेजा था। ये अमेरिका से भेजे गए पहले अंतरिक्ष यात्री थे। चीन ने 15 अक्टूबर 2013 को यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजने की कामयाबी हासिल की थी। भारत ने अब अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने की पहल कर दी है। भारत द्वारा अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले गगनयान का भार 7 टन, ऊंचाई 7 मीटर और करीब 4 मीटर व्यास की गोलाई होगी। ‘गगन यान’ जीएसएलवी (एमके-3) राॅकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद 16 मिनट में अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच जाएगा। इसे धरती की सतह से 300-400 किमी की दूरी वाली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। सात दिन तक कक्षा में रहने के बाद गगनयान को अरब-सागर, बंगाल की खाड़ी अथवा जमीन पर उतारा जाएगा। इस संबंध में पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से भी मदद ली जाएगी। इस अभियान में रूस और फ्रांस भी स्वेच्छा से मदद देने को तैयार हो गए हैं। इसरो के प्रमुख डाॅ. के सिवन का कहना है कि 2022 तक की जो समय-सीमा तय की गई है, उसमें लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है, फिर भी हम गगन यान को इसी सीमा में प्रक्षेपित करने में सफल होंगे। अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले यात्रियों को ‘व्योमनाॅट्स‘ नाम से पुकारा जाएगा। यह शब्द दुनिया की आदि भाषा संस्कृत से लिया गया है। जिसका अर्थ अंतरिक्ष है।
दरअसल संस्कृत में लिखे प्राचीन भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद, बाल्मीकि रामायाण और उपनिषद् ऐसे ग्रंथ हैं, जिनमें अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पराग्रहियों (एलियन) का जिक्र है। ये विभिन्न ग्रहों की यात्रा करते और उन पर रहते दिखाए गए हैं। जाहिर है, महाप्रलय से पहले मानव ने अंतरिक्ष यात्रा में सफलता प्राप्त कर ली थी। दरअसल, मनुष्य का जिज्ञासु स्वभाव उसकी प्रकृति का हिस्सा रहा है। मानव की खगोलीय खोजें उपनिषदों से शुरू होकर अंतरिक्ष और ग्रह-उपग्रहों तक पहुंची हैं। हमारे पूर्वजों ने शून्य और उड़न तश्तरियों जैसे विचारों की परिकल्पना की थी। शून्य का विचार ही वैज्ञानिक अनुसंधानों का केंद्र बिंदु है। बारहवीं सदी के महान खगोलविज्ञानी आर्यभट्ट और उनकी गणितज्ञ बेटी लीलावती के अलावा वराहमिहिर, भास्कराचार्य और यवनाचार्य ब्रह्मांण्ड के रहस्यों को खंगालते रहे हैं। इसीलिए हमारे वर्तमान अंतरिक्ष कार्यक्रमों के संस्थापक वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और सतीश धवन ने देश के पहले स्वदेशी उपग्रह का नामाकरण ‘आर्यभट्ट‘ के नाम से किया था। दरसअल अंतरिक्ष में मौजूद ग्रहों पर यानों को भेजने की प्रक्रिया बेहद जटिल और शंकाओं से भरी होती है। यदि अवरोह का कोण जरा भी डिग जाए या फिर गति का संतुलन थोड़ा सा ही लड़खड़ा जाए तो कोई भी अंतरिक्ष-अभियान या तो ध्वस्त हो जाता है, या फिर अंतरिक्ष में कहीं भटक जाता है। इसलिए पहले मानवरहित यान भेजा जायेगा। गगनयान को अंतरिक्ष में भेजने की दृष्टि से श्रीहरिकोटा में जीएसएलवी मार्क-3 को स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। इसी मुहिम के अंतर्गत इसरो ने परीक्षण के तौर पर क्रू एस्केप माॅड्यूल का पहला पड़ाव पार कर लिया है। इसे धरती से 2.7 किमी की ऊंचाई पर भेजने के बाद राॅकेट से अलग किया और फिर इसे पैराशूट की मदद से बंगाल की खाड़ी में उतारकर जमीन के निकट लाने में सफलता प्राप्त की। विज्ञान मामलों के जानकर पल्लव बागला का कहना है कि जो क्रू माॅड्यूल बना है, वह तीन लोगों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता रखता है। इसमें सवार यात्रियों को एक सप्ताह तक भोजन-पानी और हवा देकर जीवित रखा जा सकता है। ऐसी उम्मीद है कि वायुसेना के किसी एक पायलट को अंतरिक्ष यात्रा का अवसर दिया जा सकता है, क्योंकि उनमें अंतरिक्ष में पहुंचकर वापस आने की ज्यादा क्षमता होती है। इस अभियान को स्वदेशी प्रोद्यौगिकी से तैयार किया जा रहा है। अंतरिक्ष में मानव मिशन और उससे होने वाले लाभ-हानि पर सवाल उठते रहे हैं। इसरो के ही पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर ने ‘मंगल और चंद्रमा पर मानव बस्तियां बसाए जाने की संभावनाओं को कपोल-कल्पना कहा था। उनका कहना था कि मार्स रोवल के आकलन के आधार पर नासा की ओर से सार्वजनिक तौर पर यह दावा किया जा चुका है कि मंगल और चंद्रमा पर पानी और मीथेन गैसें नहीं होने के कारण जीवन की रक्तिभर भी उम्मीद नहीं है, अतएव ये कोशिशें मूर्खतापूर्ण हैं।‘ नायर ने यह टिप्पणी भारत द्वारा मंगल ग्रह पर यान भेजने में सफलता हासिल करने के बाद कही थी। हालांकि नए वैज्ञानिक अनुसंधानों का उपहास उड़ाना कोई नई बात नहीं है। गैलिलियो ने अपने प्रयोगों में जब यह साबित किया कि पृथ्वी आयताकार न होकर गोल आकृति में हैं।,तब यह तथ्य ईसाई धर्मावलंबियों को स्वीकार नहीं हुआ।
नतीजतन गैलिलियो को ईश्वर विरोधी कहकर अपमानित किया जाने लगा। नतीजतन इस अपमान बोध से गैलिलियो कुंठित और धर्मावलंबियों की प्रताड़ना से भयभीत हो गए। आखिर में उनको विषपान करके आत्महत्या करनी पड़ी। यही हश्र महान वैज्ञानिक कोपरनिकस का हुआ। नव खगोलशास्त्री कोपरनिकस ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि गोल पृथ्वी पूरब से पश्चिम की और भ्रमण करती हुई चक्कर काटती है। किंतु ईसाई धर्मावलंबियों की मान्यता थी कि पृथ्वी न तो घूमती है और न ही सूर्य की परिक्रमा करती है। अंततः कोपरनिकस पर मान्यता बदलने का दबाव डाला गया। परंतु वह अपनी धारणा पर अडिग रहे। नतीजतन उन्हें आग के हवाले करके मार डाला गया। अलबत्ता कोपरनिकस से पहले भारतीय खगोलविज्ञानी आर्यभट्ट ने इसी सिद्धांत की खोज कर ली थी और इसे भारत ने स्वीकार भी कर लिया था। बहरहाल अंतरिक्ष में भारतीय मानव मिशन के सफल होने के बाद ही चंद्रमा और मंगल पर मानव भेजने का रास्ता खुलेगा। इन पर बस्तियां बसाए जाने की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी। आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष पर्यटन के भी बढ़ने की उम्मीद होगी। इसरो की यह सफलता अंतरिक्ष पर्यटन की पृष्ठभूमि का एक हिस्सा है। यह अभियान देश में अंतरिक्ष शोधकार्यों को बढ़ावा देगा। साथ ही भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नई प्रोद्यौगिकी तैयार करने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों का तो यहां तक दावा है कि दवा, कृषि, औद्योगिक सुरक्षा, प्रदूषण, कचरा प्रबंधन तथा पानी एवं खाद्य स्रोत प्रबंधन के क्षेत्र में भी तरक्की के नए मार्ग खुलेंगे।