भारत त्योहारों का देश है, और गणेश चतुर्थी उन्हीं त्योहारों में से एक है. जिसे पूरा देश 10 दिनों तक बड़ी ही धूम-धाम से मानता है. इस त्योहार को गणेशोत्सव या विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, पूरे भारत में भगवान गणेश के जन्मदिन के इस उत्सव को उनके भक्त बेहद ही उत्साह के साथ मनाते हैं. गणेशोत्सव पर्व के दौरान भगवान गणेश के भक्त अपने घरों में उनकी मूर्ति की स्थापना करते हैं और 10 दिन बाद मूर्ति का विर्सजन करते हैं. हमारे देश में कोई भी नया काम करने या शुभ कार्यो में सबसे पहले श्री गणेश की आरती की जाती है. हर साल ये त्यौहार 10 दिन तक मनाया किया जाता है. लेकिन इस साल ये 11 दिन तक मनाया जाता है.
वैसे तो इन दिनों भगवान गणेश भक्त उन्हें हर रोज नए-नए पकवान और मिठाईयों का भोग लगाते हैं. लेकिन गणेश भगवान को मूल रूप से लड्डुओं और मोदक का भोग लगाया जाता है. और लड्डू और मोदक उनके प्रिय भोज्य पदार्थ माने जाते हैं. बता दे इसी भोजन के कारण गणपति के जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसने चंद्रमा को श्रापित कर दिया.
आइये जानते है कि गणपति जी के भोजन से चंद्रदेव श्रापित कैसे हो गए-
यह घटना गणेश चतुर्थी की रात की है. जो की गणेश जी के जन्म की रात थी. और उन्हें पेटभर कर अपने प्रिय व्यंजन लड्डू और मोदक खाने को मिले थे. जैसा कि सामान्य है कि प्रिय और स्वादिष्ट भोजन मात्रा से अधिक हो ही जाता है, सो गणपति भी खूब डटकर पेट पूजा कर चुके थे, और भोजन पचाने के लिए अपने वाहन मूषकराज पर बैठ घूमने निकल पड़े थे. जैसा कि हम सभी जानते है कि गणपति जी वैसे ही भारी है, और उसपर उन्होंने उस दिन डटकर भोजन कर लिया. अब गणेश जी जब मूषक पर सवारी कर रहे थे तो और भी भारी लग रहे थे. अब छोटे से मूषकराज ने अपनी भरपूर शक्ति लगाकर उन्हें साधे रखने का भरपूर कोशिश की. लेकिन छोटे से मूषक आखिर कितनी देर गणेश जी को सँभाल पाते, और मूषक का संतुलन बिगड़ा जिससे गणेश जी गिर गए. गणेश जी ने उठ कर तुरंत देखा के किसी ने उन्हें देखा तो नहीं. पर वहा आस-पास कोई नहीं था. लेकिन चतुर्थी का चांद आकाश में चमक रहा था. और चंद्रमा अपनी हंसी नहीं रोक पाए, वो ठहाका मारकर हंस पड़े.
गणपति वैसे ही गिरने से लज्जित और कु्रद्ध थे, तिस पर चंद्रमा की हंसी ने आग में घी का काम किया. गणपति जी क्रोध में भरकर उठे और तुरंत ही चंद्रमा को श्राप दे दिया, कि जो व्यक्ति चतुर्थी के चांद के दर्शन करेगा, वह अपयश का भागी होगा. हलाकि इसके बाद चन्द्रमा ने गणेशा जी से माफ़ी मांगी. लेकिन कहते है ना के धनुष से निकला तीर और मुख से निकली बात कभी वापस नहीं होती. लेकिन गणेश जी ने उन्हें माफ़ कर दिया.