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टॉप सीक्रेट था मिशन कश्मीर—370

नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार केंद्र में दूसरी बार सरकार बनाने के बाद से अपने फैसलों से सबको हैरान कर रही है. मोदी सरकार 2.0 बनने के बाद से कश्मीर मुख्य एजेंडे में था. ‘मिशन कश्मीर’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीक्रेट मिशन था. कैबिनेट के टॉप मंत्रियों को भी इसकी भनक नहीं थी. गृहमंत्री अमित शाह ने ‘मिशन कश्मीर’ की डिटेल प्लानिंग की और आर्टिकल 370 को खत्म करने के काम को अंजाम दिया. सरकार ने दूसरी पारी शुरू करते ही ‘मिशन कश्मीर’ पर काम करना शुरू कर दिया था. इस काम को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया गया. गृहमंत्री अमित शाह ने पद संभालते ही ये जता दिया था कि कश्मीर की उनके लिए क्या अहमियत है. ऐसे में अधिकारी चौकस हो गए. घाटी में सेना की गतिविधि बढ़ा दी गई. सियासी दांव पेंचों में माहिर माने जाने वाले शाह ने योजना को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया. अमित शाह ने खुद श्रीनगर का दौरा कर माहौल का जायजा लिया और कानूनी दांव पेंच को समझ कर 370 की काट ढूंढने में लग गए. बजट सत्र को 26 जुलाई से बढ़ाकर 7 अगस्त तक करना इसी प्लानिंग का हिस्सा था. इसके बाद सदन में फ्लोर मैनेजमेंट किया गया. सोमवार को अमित शाह ने जब राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन प्रस्ताव पेश किया, तब विपक्ष को उम्मीद नहीं थी कि ये बिल एक ही दिन में राज्यसभा से पास हो जाएगा. लेकिन, राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 125 और विरोध में 61 वोट पड़े. राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी पार्टियों बीजेडी, टीआरएस और यहां तक कि बीएसपी का भी सरकार को समर्थन मिला. इसके लिए काम बहुत पहले शुरू कर दिया गया था. संसद में फ्लोर मैनेजमेंट करना एक बड़ी चुनौती थी. अमित शाह ने इसका जिम्मा अपने करीबी पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान और हाल ही में टीम मोदी का हिस्सा बने टीडीपी के सीएम रमेश को दिया. इन तीनों नेताओं ने बाकी दलों खासकर बीएसपी, बीजेडी के नेताओं को फोन के जरिए विश्वास में लेने का काम किया. बीजेडी चीफ नवीन पटनायक को भी कई फोन किए गए. वाईएसआर चीफ जगनमोहन रेड्डी और टीआरएस सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव को भी इस बात के लिए राजी कराया गया. जिससे बीजेपी को राज्यसभा में समर्थन हासिल करने में मदद मिली.


केंद्र सरकार ने यही फॉर्मूला तीन तलाक बिल पास कराने के लिए भी अपनाया था. मैन टू मैन स्ट्रैटजी के कारण टीम मोदी ने एक बार फिर इतिहास दोहराया. राज्यसभा में कश्मीर को लेकर बड़ा ऐलान करने से पहले अमित शाह ने अपनी एक्टिविटी बढ़ा दी थी. दो दिन पहले वह आधी रात तक टीम के साथ मीटिंग करते रहे. दो-तीन हिस्सों में सेना के जवानों को कश्मीर भेजना और संसद सत्र से ठीक पहले कैबिनेट मीटिंग बुलाया जाना इसी स्ट्रैटजी के तहत ही हुआ. कश्मीर पर सरकार कुछ स्टैंड लेने जा रही है, इसकी जानकारी 4-5 गिने-चुने बेहद खास मंत्रियों को ही थी. लेकिन क्या स्टैंड होगा, इसकी खबर मोदी-शाह के अलावा किसी को नहीं थी. जब कश्मीर घाटी की तरफ सेना का मूवमेंट शुरू हुआ, तो एक पल को वहां के लोगों का माथा ठनका था. अमरनाथ यात्री वापस बुला लिए गए और वहां से फौज को श्रीनगर भेजा जाने लगा तो ये लगने लगा कि कुछ बड़ा होने वाला है. सारे पत्ते अमित शाह चल रहे थे. सेना, खुफिया विभाग, कश्मीर के गवर्नर, पुलिस और प्रशासन से सीधे संपर्क में अमित शाह ही थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पल-पल की खबर दी जा रही थी. लेकिन किसी को ये भनक नहीं लग रही थी कि आखिर अमित शाह करने क्या जा रहे हैं. कश्मीर घाटी से सैलानियों को वापस जाने को कह दिया गया तो राज्य के राजनीतिक दलों ने बवाल करना शुरू किया था कि उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया गया. हुर्रियत की वो ताकत नहींं थी कि बंद का आह्वान भी करे. किसी को ये भनक नहीं लग रही थी कि आखिर अमित शाह करने क्या जा रहे हैं. एक तरफ शाह के करीबी मंत्री मैन टू मैन मार्केटिंग कर रहे थे. दूसरी तरफ अमित शाह ने एनडीए सहयोगियों को कॉन्फिडेंस में लेने की जिम्मेदारी संभाल रखी थी. शाह ने खुद एनडीए के घटक दलों को फोन किया. यही नहीं, मोदी सरकार ने बीएसपी सांसद सतीश चंद्र मिश्रा के जरिए मायावती तक भी अपनी बात पहुंचाई. सब कुछ तय हो जाने के बाद आखिर में सोमवार सुबह 10:30 बजे पीएम मोदी के घर पर कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गई. इसी मीटिंग में सभी मंत्रियों को मिशन कश्मीर के बारे में जानकारी दी गई. लेकिन, राज्यसभा में अमित शाह के बयान देने तक किसी को भी मीडिया से कुछ न कहने का निर्देश दिया गया. सरकार ने ऐसा ही कुछ नोटबंदी का फैसला लागू करने के दौरान किया था. ताकि आखिरी वक्त तक सीक्रेसी मेंटन की जा सके. कैबिनेट मीटिंग खत्म होने के बाद अमित शाह मुस्कुराते हुए संसद भवन पहुंचे और इतिहास रचा गया।

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