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डोनर को 2.5 लाख व मरीज से 30 लाख वसूलता है गैंग, 5 राज्‍यों में फैला जाल

04_06_2016-apollo1एजेंसी/ पुलिस ने बताया कि किडनी देने वाले को यानी डोनर को दिल्ली में इसकी कीमत दो से ढाई लाख रुपये तक दिए जाते हैं, जबकि किडनी लेने वाले को मोटी रकम देनी पड़ती है। किडनी लेने वाले मरीज को 25 से 30 लाख रुपये तक भुगतान करना होता है। इस काम में सक्रिय दलालों को 50 हजार रुपये मिलते हैं, जबकि इस काम में डाक्टरों के सहायक को भी 50 हजार रूपये दिए जाते हैं।

पुलिस ने बतााया कि इन राज्यों से गरीब लोगों को दिल्ली लाकर उनके फर्जी दस्तावेज तैयार कर अमीर लोगों को किडनी बेची जा रही थी। उधर, इस मामले में दिल्ली पुलिस की अपोलो के डॉक्टरों से भी पूछताछ जारी है। पुलिस को उम्मीद है कि इसमें और भी रैकेट सामने आ सकते हैं। पुलिस इस दिशा में भी काम रही है कि कहीं इसके तार देश के बाहर तो नहीं जुड़े हैं। पुलिस मुख्य सरगना को खोजने में जुटी है।

दिल्ली के जॉइंट पुलिस कमिश्नर साउथ ईस्टर्न रेंज आरपी उपाध्याय के बताया कि, पुलिस को यह सूचना मिली थी कि अपोलो अस्पताल में कुछ लोग अवैध तरीके से किडनी ट्रांसप्लांट कर रहे हैं। उन्होंंने कहा कि पश्चिमी बंगाल व कानपुर से लोगों को दिल्ली लाकर उन्हें सस्ते होटलों में ठहराया जाता था। किडनी का पेशंट पहले से ही वेटिंग लिस्ट में होता था।

होटल मेंं कराई जाती थी जांच

होटल में ठहरने के दौरान डोनर की जांच कराई जाती थी। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद पेशेंट को उसकी किडनी ट्रांसप्लांट की जाती थी। यह टेस्ट अपोलो में भी किए गए थे और कुछ टेस्ट प्राइवेट लैब में भी किए गए थे। कानूनी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पहले किडनी डोनर के नाम पर फर्जी दस्तावेज तैयार किए जाते थे। आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे पहचान पत्र और नकली एड्रेस प्रूफ बनाए जाते थे। डोनर को मरीज की पत्नी दर्शाने के लिए असली पत्नी के नाम, पते और अन्य डिटेल के साथ फोटो डोनर का लगा दिया जाता था।

ट्रांसप्लांट की नहीं कराई गई विडियोग्राफी

पुलिस अफसर ने बताया कि ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट 1994 के तहत ट्रांसप्लांट करने से पहले हॉस्पिटल की इंटरनल असेसमेंट कमिटी से अप्रूवल अनिवार्य होती है। कमिटी के सामने यह नकली दस्तावेज रखे जाते थे और अप्रूवल कराई जाती थी। अप्रूवल के बाद डोनर को अपोलो में लाकर किडनी ट्रांसप्लांट कर दी जाती थी। इस कानून के तहत कमिटी की मीटिंग से लेकर ट्रांसप्लांट की पूरी प्रक्रिया की विडियोग्राफी होना अनिवार्य है। पुलिस ने बताया कि हॉस्पिटल से अभी तक विडियो नहीं मिले हैं।

जॉइंट कमिश्नर ने बताया कि किडनी निकालने के बाद इन डोनर को दो-तीन दिन के अंदर ही हॉस्पिटल से रिलीव कर दिया जाता था, जबकि उस वक्त उन्हें डॉक्टर की देखरेख की जरूरत होती थी। आरपी उपाध्याय ने बताया कि पिछले छह महीने में अपोलो में छह गैर-कानूनी ट्रांसप्लांट की डिटेल मिल चुकी है। उन्होंने बताया कि कमिटी के मेंबर्स से पूछताछ की जाएगी।

पुलिस टीम ने पांच मुलजिमों को गिरफ्तार किया। इनके नाम हैं असीम सिकदर ( निवासी 24 परगना नॉर्थ), देवाशीष मौली (निवासी न्यू जलपाईगुड़ी), सत्यप्रकाश (निवासी कानपुर), आदित्य सिंह (निवासी आली विहार) और शैलेष सक्सेना (निवासी जैतपुर)।

डॉक्टर के पर्सनल स्टाफ शामिल

आदित्य सिंह और शैलेष को पुलिस ने अपोलो के कर्मचारी बताया, लेकिन अपोलो की ओर से बताया गया कि वह दोनों हॉस्पिटल के कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि किडनी के डॉक्टर के पर्सनल स्टाफ हैं। इस पर पुलिस ने बताया कि इन दोनों को अपोलो से गिरफ्तार किया गया और दोनों वहीं पर काम कर रहे थे। इसकी जांच पुलिस करेगी कि वह डॉक्टर के पर्सनल स्टाफ हैं या अस्पताल के कर्मचारी हैं।

असीम सिकदर, देवाशीष मौली और सत्यप्रकाश की जिम्मेदारी रकम लेकर किडनी देने के लिए गरीब लोगों को तैयार करना था। असीम और देवाशीष वेस्ट बंगाल से और सत्यप्रकाश कानपुर से ऐसे लोगों को लेकर दिल्ली आया था। उन्हें होटल में ठहराने, लैब में उनके टेस्ट कराने और डॉक्टर के स्टाफ से डील करने की जिम्मेदारी असीम की थी। किडनी खरीदने वाले से डीलिंग आदित्य और शैलेष करते थे।

 

 

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