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ढाई साल से AIIMS के बेड पर है जावेद, सलमान के गाने देख कर गुजारता है दिन

javed-1_1457325371नई दिल्ली.एम्स ट्रॉमा सेंटर के न्यूरोसर्जरी वार्ड का बेड न.4 15 साल के मोहम्मद जावेद का पिछले ढाई साल से घर बना हुआ है। झारखंड के हजारीबाग जिले के रहने वाले जावेद के गर्दन से नीच का शरीर पैरालिसिस की चपेट में है। उसे सांस लेने के लिए भी वेंटिलेटर की जरूरत है।
 
सलमान खान के गाने देखकर बीते रहे दिन
 
– एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक जावेद का ब्रेन सही है। वह रुक-रुक कर बात कर सकता है लेकिन वह बॉडी मूव नहीं कर पाता।
– जावेद कार्टून या अपने फेवरेट एक्टर सलमान खान के गाने मोबाइल पर देखते हुए दिन बिताता है।
 
2013 में जावेद का परिवार दिल्ली आ गया था
 
-जावेद की मां आबिदा खातून पति और चार बच्चों के साथ 2013 में दिल्ली आ गई थीं।
-आबिदा का कहना है, ‘हम सही तरीके से नहीं जानते कि उसे चोट कहां लगी है। वह सुबह अपने दोस्तों के साथ खेलने गया था। दोपहर को उसके दोस्त उसे घर लाए तो उसके हाथ-पैर नहीं हिल रहे थे। डॉक्टर्स ने जावेद का एमआरआई किया और इसे एम्स ले जाने के लिए कहा।’
 
क्या कहते हैं डॉक्टर्स?
 
-एक सर्जन ने बताया कि हो सकता है जावेद गिर गया हो और उसकी गर्दन टूट गई हो। उसकी स्पाइनल कॉर्ड (spinal cord) डैमेज हुई है जो ठीक नहीं हो सकती। जावेद हमेशा के लिए गर्दन के नीचे पैरलाइज़्ड रहेगा।
-एम्स के डिपार्टमेंट और न्यूरोसर्जरी में एडीशनल प्रोफेसर डॉ.दीपक अग्रवाल के मुताबिक, ‘अगर स्पाइनल कॉर्ड (spinal cord) एक बार डैमेज हो जाए तो फिर उसे रिपेयर नहीं किया जा सकता। जावेद को लाइफ सेविंग ट्रीटमेंट तुरंत दिया गया था और उसे अब किसी एक्टिव ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं है।’
एक सीनियर डॉक्टर ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘अगर वेंटिलेटर सपोर्ट को रोक दिया गया तो उसकी कंडीशन धीरे-धीरे बिगड़ने लगेगी और वह बच नहीं पाएगा।’
 
भारत में रिहैबिलटैशन फैसिलिटीज की कमी
 
– कुछ एक्सपर्ट के मुताबिक भारत में ट्रीटमेंट सुविधाएं और उसके नतीजे तो बहुत बेहतर है लेकिन रिहैबिलटैशन फैसेलिटीज कम हैं।
– जावेद जैसे मरीजों को बेहतर होम बेस्ड केयर की जरूरत है।
– जावेद के इलाज पर रोज करीब 10,000 रुपए का खर्च आता है।
– जावेद के पिता कपड़ों की एम्ब्रॉयडरी करते हैं। इस कमाई से वह जावेद को घर में इलाज नहीं दे सकते।
– डॉ.अग्रवाल के मुताबिक जावेद को हॉस्पिटल में रहने की जरूरत नहीं है। वह घर पर वेंटिलेटर की मदद से रह सकता है लेकिन उसके पैरेंट्स यह खर्च नहीं उठा सकते इसलिए वह जावेद को घर ले जाने से इनकार करते हैं।
 
जावेद के लिए वेंटिलेटर खरीदने की कोशिश कर रहा हैAIIMS
 
– एम्स जावेद के लिए वेंटिलेटर खरीदने के लिए पैसे जुटाने की कोशिश कर रहा है लेकिन यहां हर रोज ऐसे कई केस आते हैं।
– एम्स के डायरेक्टर, डॉ पी.के.मिश्रा के मुताबिक, ‘हमारे गरीब मरीज फंड में डोनेट करने के लिए अगर लोग आगे आएं तो हम साल भर में इतना पैसा जमा कर सकते हैं कि इस तरह के मरीजों की मदद कर सकें।’
– मिश्रा के मुताबिक, ‘लोगों को यह जानकारी होनी चाहिए कि जो भी पैसा वे एम्स को दान करेंगे उस पर 100% टैक्स छूट है और रिसर्च के लिए दान देने पर 175% टैक्स छूट है।’
 
एम्स में रोज आते हैं करीब 200 एक्सीडेंट के केस
 
– एम्स ट्रॉमा सेंटर में रोज 150 से 200 एक्सीडेंट के केस आते हैं। इनमें से 40% में लोगों को चोटें आती हैं जबकि 20% को जिंदा रहने के लिए वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ती है।
– हर वक्त सात से आठ बेड जावेद जैसे मरीजों से घिरे होते हैं जिन्हें एक्टिव ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं होती।
– ज्यादातर मामलों में परिवार मरीज को घर ले जाते हैं लेकिन जावेद के पैरेंट्स ने मना कर दिया है।
– ट्रॉमा सेंटर में रोज 8 से 10 एक्सीडेंट के केसों को बेड की कमी के चलते इलाज के लिए मना कर दिया जाता है।
– डॉ.अग्रवाल के मुताबिक हम रोज 5 से 6 ज्यादा मरीजों का इलाज कर सकते हैं अगर हमारे पास इस तरह के मरीजों के पुनर्वास का ऑप्शन हो वैसे ही जैसे विदेशों में होता है।

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