एग्जिट पोल के बाद अब चुनाव परिणाम देखकर यही लगता है कि तेलंगाना में एक ही किंग हैं- केसीआर। इन चुनावों में के.चंद्रशेखर राव को कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी और वाम दलों के प्रजा कुटमी गठबंधन से कड़ी चुनौती मिली मगर केसीआर के काम और आत्मविश्वास के आगे सब फीका पड़ गया। भाजपा और ओवैसी के बीच की जुबानी जंग टीवी डिबेट्स में छाई रही मगर नतीजों पर नजर डालें तो लगता है कि जनता के दिलों पर केसीआर ही छाए रहे।
भावनाओं के समंदर पर हुए सवार
केसीआर और नायडू के बीच इन चुनावों में बयानों के तीर चले। केसीआर ने जहां नायडू को आंध्र का शासक बताते हुए जनता को सावधान रहने को कहा वहीं नायडू ने केसीआर पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। केसीआर ने अपने भाषणों में कहा कि आंध्र के शासक तेलंगाना पर वापस कब्ज़ा चाहते हैं, क्या हमें अपना अनमोल तेलंगाना इस आंध्र पार्टी को वापस दे देना चाहिए?
काम के बल पर मिला दोबरा मौका
केसीआर की सरकार ने गरीब लड़कियों की शादी के लिए आर्थिक मदद देना, किसानों की आर्थिक मदद, किसानों की हर ज़रूरत को लगातार पूरा करना, विधवाओं और बेसहारा, विकलांग और बूढ़े लोगों की पेंशन में बढ़ोतरी करना जैसी तमाम योजनाएं चलाईं। इसके अलावा बिजली की समस्या ने राज्य को उबारना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। टीआरएस के शासन ने तेलंगाना किसानों को 24 घंटे बिजली मुहैया कराने वाला देश का पहला राज्य बन गया।
जनता को भाए, केसीआर के वादे
टीआरएस ने चुनाव से पांच दिन पहले अपना घोषणापत्र जारी करके हर वर्ग को लुभाने का प्रयास किया। पार्टी ने रिटायरमेंट की आयु सीमा 61 से घटाकर 58 करने, युवाओं को 3016 रुपये बेरोजगारी भत्ता, सोशल वेलफेयर पेंशन को प्रति महीने 2016 रुपये करने और घर बनाने के लिए पांच से छह लाख की आर्थिक सहायता देने का वादा किया है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के कई ऐसे वादे हैं जिसे उन्होंने पूरा नहीं किया है। नौकरियां पैदा करने, खाली पड़े सरकारी पदों को भरने, गरीबों को दो कमरे का घर देने के अलावा मुस्लिमों और पिछड़ी जातियों को 12 फीसदी आरक्षण देने का वादा अबतक अधूरा है।
राज्य की 29 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ओवैसी ने अपनी आठ सीटों को छोड़कर बाकी सीटों पर टीआरएस के समर्थन में प्रचार किया। केसीआर को इसका भरपूर फायदा मिला।