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दिल्ली नहीं उत्तर प्रदेश के दस जिले हैं सबसे प्रदूषित, हरियाणा और बिहार भी नही हैं सेफ

प्रदूषण की बात की जाए तो हर किसी के जहन में ये शब्द सुनकर केवल दिल्ली की ही तस्वीर बनती है। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भारत में राजधानी दिल्ली नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश राज्य के दस जिले सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। इस बात का खुलासा शिकागो यूनिवर्सिटी के पॉलिसी इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में हुआ है।

दिल्ली नहीं उत्तर प्रदेश के दस जिले हैं सबसे प्रदूषित, हरियाणा और बिहार भी नही हैं सेफ उत्तर प्रदेश के ये जिले सबसे अधिक प्रदूषित हैं, जिससे यहां के लोगों के जीवन में कई साल कम हुए हैं-

– पहले स्थान पर हापुड़ जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 124.13 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 11.2 साल कम हुए हैं।
– दूसरे स्थान पर बुलंदशहर जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 123.56 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 11.1 साल कम हुए हैं।

– तीसरे स्थान पर गाजियाबाद जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 119.60 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.7 साल कम हुए हैं।

– चौथे स्थान पर जीबी नगर जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 118.81 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.7 साल कम हुए हैं।

– पांचवें स्थान पर संभल जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 117.61 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.6 साल कम हुए हैं।

– छठे स्थान पर अलीगढ़ जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 117.54 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.5 साल कम हुए हैं।

– सातवें स्थान पर कासगंज जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 117.47 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.5 साल कम हुए हैं।

– आठवें स्थान पर बागपत जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 115.95 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.4 साल कम हुए हैं।

– नौवें स्थान पर बंदायू जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 115.91 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.4 साल कम हुए हैं।

– दसवें स्थान पर मेरठ जिला है, यहां का पीएम 2.5 साल 2016 में 115.86 दर्ज हुआ। इससे यहां के लोगों के जीवन के 10.4 साल कम हुए हैं।
शराब, ड्रग्स और धूम्रपान से भी खतरनाक है प्रदूषण
रिपोर्ट में कहा गया है कि हवा में घुले कण अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की वार्षिक सेफ सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के भीतर होते तो भारत के लोग 4.3 साल अधिक जी पाते। प्रदूषण औसत जीवन प्रत्याशा दर में 1.8 साल की कमी कर रहा है। यह पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन चुका है। इसकी भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि धूम्रपान इसके मुकाबले कम खतरनाक है।

आंकड़ों के अनुसार-

– प्रदूषण से जीवन के 1.8 साल कम हो रहे हैं।

– धूम्रपान से जीवन के 1.6 साल कम हो रहे हैं।

– शराब और ड्रग्स से जीवन के 11 महीने कम हो रहे हैं।

– असुरक्षित पानी और स्वच्छता से जीवन के 7 महीने कम हो रहे हैं।

– एचआईवी एड्स से जीवन के 4 महीने कम हो रहे हैं।

– संघर्ष और आतंकवाद से जीवन के 22 दिन कम हो रहे हैं।

दुनिया के विभिन्न देशों में प्रदूषण को लेकर किए गए अध्ययन से पता चला है कि 2016 में भारत नेपाल के बाद ऐसा दूसरा देश है जहां पीएम 2.5 स्तर अधिक मापा गया है। इससे यहांं के लोगों के जीवन स्तर में 4.4 साल की कमी आई है। यानी लोगों का जीवन 4.4 साल तक कम हुआ है। वहीं इस मामले में चीन में प्रदूषण के कारण लोगों के जीवन में 2.9 साल कमी आई है और अमेरिका में 0.1 साल की।

क्या है पीएम 10 और पीएम 2.
प्रदूषण कितना ज्यादा है इसे बताने के लिए पीएम 2.5 और पीएम 10 का प्रयोग किया जाता है। लेकिन आम लोगों के लिए इसे जानना थोड़ा मुश्किल होता है। चलिए आपको बताते हैं कि क्या है पीएम 10 और पीएम 2.5-

पीएम 10- पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार पीएम 10 को रेस्पायरेबल पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं। इन कणों का आकार 10 माइक्रोमीटर होता है। यह धूल, निर्माणकार्य और कूड़ा आदि जलाने से ज्यादा बढ़ता है। पीएम 10 का सामान्य स्तर 100 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए जबकि दिल्ली में कई जगहों पर यह 1600 तक पहुंच चुका है।

पीएम 2.5- 10 माइक्रोमीटर से छोटे कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या इससे भी कम होता है। इसमें धूल, गर्द और धातु के सूक्ष्म कण शामिल हैं। यह धूल, निर्माणकार्य और कूड़ा आदि जलाने से ज्यादा बढ़ता है। यह एक तरह से हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है। इसका स्तर ज्यादा होने पर धुंध बढ़ती है और साफ से कुछ दिखाई नहीं देता। पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 60 एमजीसीएम होता है लेकिन कई जगहों पर 300 और 500 तक पहुंच गया है।

नुकसान- पीएम 2.5 से लोगों के फेफड़ों के भीतर कर्ण पहुंचते हैं, जिसका प्रभाव सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्गों पर पड़ता है। इससे आंख, गले और फेफड़े में समस्या होती है। जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है और इसका प्रभाव बढ़ने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है। इतना ही खतरनाक पीएम 10 भी है।

69 फीसदी बढ़ा प्रदूषण

बीते दशकों में भारत में पीएम 2.5 के स्तर में 69 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साल 1998 के मुकाबले 2016 में भारत के अधिकतर जिलों में प्रदूषण का स्तर काफी खतरनाक हुआ है। साल 2014 से 2016 में भारत के 670 जिलों में प्रदूषण काफी अधिक पाया गया है। साल 1998 के बाद से ये साल भारत के लिए सबसे अधिक प्रदूषण वाला रहा है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार के कई जिलों में प्रदूषण का स्तर साल 1998 के मुकाबले दो गुना अधिक हुआ है। अध्ययन के लिए यूनिवर्सिटी ने बीते 20 सालों की सैटेलाइट ड्राइव पीएम 2.5 का विश्लेषण किया है। इन सालों में फैक्ट्री और वाहन आदि की संख्या में बढ़ोतरी से भी प्रदूषण अधिक हुआ है।

इस अध्ययन से एक मिथक और दूर हुआ है। वह मिथक है कि देश में दिल्ली सबसे ज्यादा प्रदूषित है। रिपोर्ट से पता चला है कि उत्तर प्रदेश के जिले टॉप दस में हैं और दिल्ली का नंबर 11वां है। यह आंकड़ा साल 2016 का है। जिससे यहां के लोगों की जिंदगी के 10 साल कम हुए हैं। वहीं अगर राज्यों के अनुसार बात करें तो दिल्ली पहले, उत्तर प्रदेश दूसरे, हरियाणा तीसरे और बिहार चौथे नंबर पर आता है। उत्तर प्रदेश के जिलों में सबसे ज्यादा प्रदूषित हापुड़ है।

यहां कम हुआ और यहां अधिक हुआ प्रदूषण

साल 1998 में 35 जिले विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों को पूरा कर रहे थे। साल 2016 में इनकी संख्या महज 9 रह गई है। 1998 से 2016 के बीच इन देशों का प्रदूषण स्तर बढ़ा है- चीन, भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशियान नाइजीरिया, बांग्लादेश। वहीं इस समय अवधि में इन देशों की हवा सुधरी है और वायु प्रदूषण कम हुआ है- ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, मैक्सिको, ब्राजील और अमेरिका।
केवल बाहर नहीं घर के अंदर भी है प्रदूषण
अगर प्रदूषण की बात करें तो यह केवल आपके घर के बाहर नहीं बल्कि घर के अंदर भी है। घर के बाहर फैले प्रदूषण से बचने के लिए तो मास्क का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा सुबह और शाम की सैर से भी बचा जा सकता है। लेकिन घर के भीतर के प्रदूषण से कैसे बचें यह एक जटिल सवाल है। पीएम 2.5 सुरक्षा स्तर से दोगुना अधिक घरों में पाया गया है। घर, अस्पताल और ऑफिस का प्रदूषण भी उतना ही खतरनाक है जितना कि बाहर का।

ये होता है इनडोर प्रदूषण-

ऑफिस में प्रदूषण- कॉरपोरेट ऑफिस पूरी तरह से एयर कंडीशन्ड होते हैं। जिससे वेंटिलेशन की समस्या रहती है। इससे कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है। आईपीसीए ने रिसर्च में पाया गया है कि ऑफिस के अंदर पीएम 2.5 बाहर के मुकाबले दो गुना अधिक है। इसके अलावा ऑफिस में इस्तेमाल होने वाले प्रिंटर, मच्छर भगाने वाला स्प्रे और धूम्रपान भी वायु प्रदूषण को बढ़ाता है। जिससे ऑफिस की हवा बाहर की हवा के मुकाबले अधिक प्रदूषित हो जाती है।

मल्टीप्लेक्स में प्रदूषण- मल्टीप्लेक्स बिल्डिंगों में भी कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर काफी अधिक पाया गया है। जिससे यहां की हवा भी सांस लेने लायक नहीं है। इसके अलावा यहां काफी मात्रा में फंगी, बैक्टीरिया और वायरस पाए गए हैं।

अस्पताल में प्रदूषण – अस्पतालों में बायो एयरोसोल्स की मात्रा अधिक पाई गई है, जो तेजी से बीमारी फैलाते हैं। यहां वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की मात्रा भी काफी अधिक पाई गई है। जो यहां की हवा को जहरीला बनाते हैं।

घर में प्रदूषण – घरों में भी रिसर्च के दौरान पीएम 2.5 का स्तर काफी अधिक पाया गया। जो फेफड़ों के जरिए शरीर में जाता है और सेहत को भारी नुकसान पहुंचाता है।

इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि घर, ऑफिस आदि की हवा बाहर की हवा से कितनी प्रदूषित है-

– पीएम 2.5- पीएम 2.5 की सुरक्षा सीमा 60 (सीपीसीबी) है। जबकि यह ऑफिस में 96, मल्टीप्लेक्स में 44, अस्पताल में 56 और घरों में 137 पाया गया।

– वाष्पशील कार्बनिक यौगिक- वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की सुरक्षा सीमा 500 (डब्लूएचओ) है। जबकि यह ऑफिस में 986, मल्टीप्लेक्स में 700, अस्पताल में 987 और घरों में 236 पाया गया।

– कार्बन डाईऑक्साइड- कार्बन डाईऑक्साइड की सुरक्षा सीमा 1000 (एएसएचआरएई) है। जबकि यह ऑफिस में 1918, मल्टीप्लेक्स में 1560, अस्पताल में 1305 और घरों में 963 पाया गया।

– बायो एरोसोल- बायो एरोसोल की सुरक्षा सीमा 300 (डब्लूएचओ) है। जबकि यह ऑफिस में 6100, मल्टीप्लेक्स में 1186, अस्पताल में 11,600 और घरों में 0 पाया गया।

अदंर के प्रदूषण से बचने के तरीके वेंटिलेशन की सही सुविधा और हवा फिल्टर करने वाले पौधे आदि हैं।

 

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