पेरिस सम्मेलन में ‘क्लाईमेट जस्टिस’ अवधारणा का लोहा मानने के बाद अब विश्व के देश भारत से सीखेंगे कि हजारों-लाखों साल पुरानी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरें कैसे सहेज कर रखी जाती हैं? इसके लिए खुद यूनेस्को ने भारत से अनुरोध किया है, जिस पर केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्वीकृति दे दी है।
यह पहली बार है कि यूनेस्को वर्ल्ड हेरीटेज सेंटरों का सम्मेलन भारत में हो रहा है। जिसमें धरोहरों को संरक्षित करने के तरीकों के साथ नई विरासतें चिह्नित किए जाने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे।
दुनिया में यूनेस्को के चीन, नार्वे, साउथ अफ्रीका, बहरीन, मैक्सिको (साउथ अमेरिका), इटली, ब्राजील और स्पेन में सांस्कृतिक वर्ल्ड हेरीटेज सेंटर खुले हुए हैं। प्राकृतिक धरोहरों को सहेजने के लिए यूनेस्को ने पहला सेंटर भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून में पिछले साल स्थापित किया है।
अब नए सिरे से विश्व धरोहरों को सहेजने की रणनीति तैयार करने के लिए नवंबर, 2016 में सभी सेंटरों का सम्मेलन किया जा रहा है। इसके लिए यूनेस्को ने देश के भारतीय वन्य जीव संस्थान स्थित यूनेस्को सेंटर को अगुवाई के लिए चुना है। इस संबंध में यूनेस्को निदेशक डॉ. मेक्टिल रोजलर ने भारत से सम्मेलन के लिए अनुरोध किया था। जिस पर पर्यावरण मंत्रालय ने हामी भर ली है।
सम्मेलन की अध्यक्षता भारतीय वन्य जीव संस्थान के निदेशक डॉ. वीबी माथुर करेंगे। वह इसके पहले भी यूनेस्को के कई सत्रों के चेयरमैन रह चुके हैं। इस कार्यक्रम में यूनेस्को और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आफ नेचर (आईसीयूएन) के आला अधिकारी भी मौजूद रहेंगे। इस सम्मेलन में तैयार की जाने वाली कार्ययोजना पर विश्व के सभी यूनेस्को सेंटर अमल में लाएंगे।