पोलावरम समझौते से अलग नहीं हो सकता कोई भी राज्य
जगदलपुर। राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा प्राप्त पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश में गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन पोलावरम बहुउद्देशीय अंतर्राज्यीय परियोजना के समझौते से संबंध कोई भी राज्य चाहकर भी अलग नहीं हो सकते। इसकी मुख्य वजह समझौते को प्राप्त कानूनी मान्यता है।
करीब 30 हजार करोड़ रुपए अनुमानित लागत से बन रही इस परियोजना के लिए पहला समझौता 38 साल पहले 1978 में अविभाजित मध्यप्रदेश की तत्कालीन जनता पार्टी के शासनकाल और दूसरा समझौता इसके पौने दो साल बाद कांग्रेस के शासनकाल में 1980 में किया गया था।
पिछले कई सालों से परियोजना से जुड़े राज्य ओडिशा में वहां के सत्ताधारी दल बीजू जनता दल और यहां छत्तीसगढ़ में हाल ही कांग्रेस से अलग होकर गठित नई राजनीतिक पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी ही परियोजना के निर्माण का विरोध कर रहे हैं जबकि इन दलों को भी भलिभांति मालूम है कि पोलावरम समझौते से हटना संभव है ही नहीं और यह समझौता गले की फांस है जो हमेशा के लिए फंसा रहेगा।
राष्ट्रीय दलों में भाजपा और कांग्रेस दोनों पोलावरम परियोजना के पक्ष में हैं तथा यही कारण भी है कि न तो भाजपा न ही कांग्रेस के बड़े नेता परियोजना के विरोध के कुछ बोल रहे हैं। सिंचाई परियोजनाओं के विषय में जानकारी रखने वाले भी कह रहे हैं कि समझौते को मिली कानूनी मान्यता संबंधित राज्यों के लिए समझौते से अलग होनें की इजाजत नहीं देती। कांग्रेस के वयोवृद्घ नेता व अविभाजित मध्यप्रदेश में जलसंसाधन मंत्री रहे डॉ रामचंद्र सिंहदेव का कहना है कि पोलावरम को लेकर हुए अनुबंधों में ही इस बात का उल्लेख है कि कोई भी राज्य इससे अलग नहीं हो सकता।
छग के जलसंसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी 12 मई 2015 को अपने बस्तर प्रवास पर आधिकारिक बयान में कहा था कि पोलावरम परियोजना को राष्ट्रीय हित में भी देखना चाहिए। उल्लेखनीय है परियोजना के डूबान में यहां छत्तीसगढ़ में सुकमा और ओडिशा में मलकानगिरी जिले का एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। जिसे लेकर इन इलाकों में निवासरत लोगों में विस्थापन को लेकर भय व्याप्त है।