प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीतिक में कदम रखने से उत्तर प्रदेश के पुराने सियासी समीकरण ध्वस्त होते नजर आ रहे हैं. प्रियंका गांधी को कांग्रेस का महासचिव बनाए जाने से चुनाव में फायदा हो या न हो लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश जरूर नजर आ रहा है. इसे देखकर पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी को जादूगर बताने वालों के जज्बात भी बदलने लगे हैं. एक दौर में कांग्रेस को पानी पी-पी कर कोसने वाले बाबा रामदेव का दिल भी पिघलने लगा है और वो प्रियंका को डायनिमिक बहन बता रहे हैं.
बाबा रामदेव ने आजतक से खास बातचीत में पीएम नरेंद्र मोदी और प्रियंका गांधी की तुलना पर कहा, ‘मोदी का व्यक्तित्व बहुत बड़ा है. वह देश के लिए 18-18 घंटे काम करते हैं. हमारी आज भी मोदी जी के लिए शुभकामनाएं हैं, लेकिन प्रियंका जी डायनिमिक बहन हैं.’ हालांकि साथ ही उन्होंने कहा कि प्रियंका जी का राजनीतिक अनुभव और देश के लिए योगदान मोदी जी जितना नहीं है. हो सकता है कि वह आने वाले दिनों में चुनाव भी लड़ें, सोनिया जी की उम्र भी काफी हो गई है.
रामदेव ने कहा कि प्रियंका अपनी की मां की संसदीय सीट रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं. उनको दिखाना पड़ेगा कि वह देश के निर्माण के बारे में क्या कर सकती हैं. इस समय प्रियंका और मोदी की तुलना करना सही नहीं है. दोनों की उम्र और अनुभव अलग-अलग है.
हालांकि रामदेव ने नरेंद्र मोदी और प्रियंका गांधी में संतुलन साधने की बहुत कोशिश की, लेकिन आखिर में प्रियंका की खुलकर तारीफ करते-करते रह गए. जबकि एक जमाना था जब उन्हें गांधी परिवार में भारत की दुर्दशा के बीज नजर आते थे. इतना ही नहीं वह सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक को खुलेआम कोसते नजर आते थे.
प्रियंका की एंट्री के साथ बीजेपी ने पहले परिवारवाद पर निशाना साधा, पर कामयाब नहीं हुई. यही वजह थी कि अगले ही दिन बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए कहने लगी कि प्रियंका के आने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लेकर केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा सहित कई बीजेपी नेता कह रहे हैं कि प्रियंका गांधी के आने से यूपी की राजनीति कोई फर्क नहीं पड़ेगा. बीजेपी भले ही कहे कि प्रियंका के आने से कोई फर्क नहीं पड़े, लेकिन एनडीए के सहयोगी दल प्रियंका गांधी की तारीफ करने में लगे हुए हैं. शिवसेना को तो प्रियंका में इंदिरा गांधी नजर आने लगी हैं.
प्रिंयका की राजनीति में एंट्री के बाद उन्हें यूपी में कांग्रेस का चेहरा बनाकर पेश किया जा रहा है. माना जा रहा है कि इसके पीछे की एक वजह सपा-बसपा के गठबंधन को कांग्रेस में शामिल करने के लिए दोनों पार्टियों को मजबूर करना भी है. अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर कांग्रेस का मकसद सूबे की सभी 80 सीटों पर अकेले दमखम के साथ लड़ना है.