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बचपन में बौनेपन के शिकार थे मेसी, फिर जानिए कैसें बने दुनिया के बेस्ट फुटबॉलर ?

बचपन में बौनेपन से जूझने के बावजूद फुटबॉल के मैदान पर उपलब्धियों के नए शिखरों को छूने वाले लियोनेल मेसी ने डेढ़ दशक के सुनहरे करियर में क्लब के लिए कामयाबियों के नए कीर्तिमान बनाए, लेकिन अर्जेंटीना के लिए वर्ल्ड कप नहीं जीत पाने की कसक उन्हें कचोटती रही है. इस बार रूस में उनके पास यह कलंक धोने का संभवत: आखिरी मौका होगा.

इन उपलब्धियों के धनी हैं मेसी

रिकॉर्ड पांच बार फीफा के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर, रिकॉर्ड पांच बार यूरोपीय गोल्डन शू, बार्सीलोना के साथ नौ ला लिगा खिताब, चार युएफा चैंपियंस लीग और छह कोपा डेल रे खिताब जीत चुके इस करिश्माई प्लेमेकर के नाम देश और क्लब के लिए कुल 600 गोल दर्ज है.

उपलब्धियों से भरे अपने सफर का अंत वह निस्संदेह फीफा वर्ल्ड कप के साथ करना चाहेंगे और दुनिया भर में उनके प्रशंसक भी यही दुआ कर रहे होंगे.

बचपन में बौनेपन के शिकार थे मेसी

इसी महीने अपना जन्मदिन मना रहे फुटबॉल के इस शहंशाह का जन्म अर्जेंटीना के रोसारियो में 1987 में एक निर्धन परिवार में हुआ था. उनके पिता कारखाने में काम करते थे और मां क्लीनर थीं, लेकिन फुटबॉल में अपनी प्रतिभा की बानगी मेसी ने बचपन में ही दे दी थी.

बचपन में मेसी बौनेपन के शिकार थे और हालत इतने गंभीर थे कि चिकित्सा की जरूरत थी. इलाज महंगा था तो उनके स्थानीय क्लब ने हाथ खींच लिए लेकिन बार्सिलोना मदद के लिए आगे आया. सितंबर 2000 में 13 साल के मेसी अपने पिता के साथ ट्रायल देने आए तो उनके नाटे कद का मजाक सभी खिलाड़ियों ने उड़ाया.

बार्सिलोना ने थामा मेसी का हाथ

ट्रायल के दौरान दस मिनट का खेल देखने के बाद ही बार्सिलोना ने मेसी के साथ करार का फैसला कर लिया. उसके बाद से मेसी इसी क्लब के साथ हैं. यदा-कदा उनके दूसरे क्लबों के साथ जुड़ने की अटकलें लगी, लेकिन मेसी ने बार्सिलोना का दामन नहीं छोड़ा और सफलता की सुनहरी दास्तान लिख डाली.

करार से मिले पैसों से मेसी का इलाज हुआ और कामयाब रहा. मेसी, आंद्रियास इनिएस्ता, जावी, सैमुअल इतो और थियरे हेनरी ने बार्सिलोना को अभूतपूर्व सफलताएं दिलाई.

माराडोना से होती थी मेसी की तुलना

क्लब के लिए मिलती सफलताओं के साथ मेसी की लोकप्रियता दुनिया भर में बढ़ी और लोग उन्हें माराडोना के समकक्ष या कुछ तो उनसे बेहतर मानने लगे. माराडोना के पास हालांकि वर्ल्ड कप था जो आखिरी बार 1986 में अर्जेंटीना ने माराडोना के दम पर ही जीता था.

मेस्सी ने 2006, 2010 और 2014 वर्ल्ड कप में खराब प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन उनके अपने बनाए मानदंड इतने ऊंचे थे कि तुलना लाजमी थी. 2006 में 18 साल का मेसी ज्यादातर बेंच पर ही रहा, जबकि चार साल बाद वह कोई गोल नहीं कर सका. दोनों बार जर्मनी ने क्वार्टर फाइनल में अर्जेंटीना को हराया.

जर्मनी ने तोड़ा था वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना

सबसे ज्यादा दर्दनाक हार चार साल पहले ब्राजील वर्ल्ड कप में मिली जब खिताब से एक जीत की दूरी पर आकर मेसी का सपना जर्मनी ने तोड़ दिया. इस बार उनके पास हर उस आलोचक को करारा जवाब देने का मौका है, जो यह कहते हैं कि मेसी सिर्फ बार्सिलोना का महानायक है, अर्जेंटीना का नहीं.

फुटबॉल प्रेमियों को बखूबी पता है कि किस तरह अकेले दम पर मेसी क्वालिफायर दौर में शानदार प्रदर्शन करके अर्जेंटीना को वर्ल्ड कप में जगह दिला सका है. क्वालिफिकेशन दौर में आठ मैचों से वह बाहर रहा, जिसमें अर्जेंटीना को सात अंक मिले और जो दस मैच वह खेला, उसमें टीम ने 21 अंक बनाए.

अर्जेंटीना अगर वर्ल्ड कप नहीं जीतता है, तो भी इससे मेसी की काबिलियत पर उंगली नहीं उठाई जा सकेगी, लेकिन अगर 1978 और 1986 के बाद टीम फुटबॉल का यह सर्वोपरि खिताब जीतने में कामयाब रहती है, तो एक चैंपियन को वैसी विदाई मिलेगी जिसका वह हकदार है.

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