लालू और नीतीश इस समय साथ-साथ खड़े हैं।दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
भारत के इतिहास में शायद पहला मौका है जब किसी प्रांतीय चुनाव में कोई प्रधानमंत्री 40 से अधिक चुनावी सभाएं कर रहा हो। मोदी की पूरी कैबिनेट, भाजपा के पचासों सांसद और आरएसएस के हजारों कार्यकर्ता बिहार के चुनावी मैदान में दिन रात सक्रिय हैं।
अगर बिहार के चुनाव में लालू और नीतीश के गठबंधन की हार होती है तो सामाजिक परिवर्तन के उनके आंदोलन को जबरदस्त झटका पहुँचेगा और इस प्रक्रिया में वह अपनी उपयोगिता खो देगा। दोनों नेताओं के राजनीतिक दलों के अस्तित्व की भी भविष्य में कोई गारंटी नहीं होगी।
भाजपा की जीत के मामले में मोदी की ताकत काफी बढ जाएगी और उनके लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा आसान हो जाएगी।
लेकिन अगर भाजपा बिहार में हारती है तो पार्टी के भीतर मोदी के खिलाफ विद्रोह शुरू हो सकता है। उनकी निजीकरण की प्रक्रिया से पार्टी के बहुत से नेता दुखी हैं। खुद बिहार के कई नेता मोदी के खिलाफ बयान दे चुके हैं। बिहार इस समय स्पष्ट रूप से दो मोर्चों में विभाजित है।
सोमवार को पहले दौर के मतदान से पहले मुकाबला बराबरी का नजर आता है। पांच नवंबर को अंतिम चरण का मतदान होगा। बिहार चुनाव के परिणाम सिर्फ लालू और नीतीश के राजनीतिक भाग्य का ही फैसला नहीं करेंगे बल्कि यह परिणाम भारत के भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेंगे
लेकिन अगर भाजपा बिहार में हारती है तो पार्टी के भीतर मोदी के खिलाफ विद्रोह शुरू हो सकता है। उनकी निजीकरण की प्रक्रिया से पार्टी के बहुत से नेता दुखी हैं। खुद बिहार के कई नेता मोदी के खिलाफ बयान दे चुके हैं। बिहार इस समय स्पष्ट रूप से दो मोर्चों में विभाजित है।
सोमवार को पहले दौर के मतदान से पहले मुकाबला बराबरी का नजर आता है। पांच नवंबर को अंतिम चरण का मतदान होगा। बिहार चुनाव के परिणाम सिर्फ लालू और नीतीश के राजनीतिक भाग्य का ही फैसला नहीं करेंगे बल्कि यह परिणाम भारत के भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेंगे