अद्धयात्म

भगवान राम और माता सीता का इस आश्रम से है खास रिश्ता, लव-कुश की भी होती है पूजा

एजेन्सी/ luv-kush-3रामायण के अनुसार माता सीता के पुत्रों लव-कुश का जन्म वाल्मीकि आश्रम में हुआ था. वाल्मीकि के जिस आश्रम में माता जानकी ने पुत्रों को जन्म दिया था वो आश्रम मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले की तहसील मुंगावली में स्थित है. जहां आज भी लोग बड़े धूम-धाम से भगवान राम और माता जानकी के पुत्रों लव-कुश के जन्मदिन को धूमधाम से मनाते हैं, जिसके लिए जिले के गांव करीला में हर साल रंगपंचमी के अवसर पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से मां जानकी माता के दरबार में मन्नतें लेकर आते हैं. इस बार ये मेला 27 मार्च से प्रारंभ होकर 29 मार्च 2016 तक चलेगा.

माना जाता है कि लव और कुश का जन्म करीला में स्थित वाल्मीकि आश्रम में हुआ था. दोनों के जन्म के बाद मां जानकी के अनुरोध पर

महर्षि वाल्मीकि ने उनका जन्मोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया था. जिसमें स्वर्ग से उतरकर अप्सराएं तक आई थीं और उन्होंने यहां नृत्य किया

था. इस प्रथा को निभाते हुए आज भी रंग पंचमी पर लव कुश का जन्मदिन मनाते हुए हर वर्ष बड़ा आयोजन होता है जिसमें बेडिया जाति की

हजारों नृत्यांगनाएं यहां राई नृत्य प्रस्तुत करती हैं.

करीला मंदिर के बारे में यह मान्यता प्रचलित है कि इस मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाए वह पूरी होती है. अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालुगण यहां राई एवं बधाई नृत्य करवाते हैं. करीला में स्थित मंदिर में मां जानकी की प्रतिमा के साथ वाल्मीकि ऋषि और लव व कुश की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं.

इस जगह के बारे में स्थानीय लोगों के बीच एक कथा प्रचलित है. माना जाता है आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व विदिशा जिले के ग्राम दीपनाखेड़ा के महंत तपसी महाराज को रात में सपना आया कि करीला ग्राम में टीले पर स्थित आश्रम में मां जानकी और लव कुश कुछ समय तक रहे थे. यह वाल्मीकि आश्रम वीरान पड़ा हुआ है वहां जाकर आश्रम को जागृत करो.

अगले दिन सुबह होते हुए तपसी महाराज करीला पहाड़ी को ढूढ़ने के लिए चल पड़े और जैसा उन्होंने स्वप्न में देखा था बिल्कुल उसी जगह उन्हें वीरान आश्रम करीला की पहाड़ी पर पाया. तपसी महाराज इस पहाड़ी पर रुके और खुद ही आश्रम की साफ-सफाई में जुट गए. उन्हें देख आस-पास के लोगों ने भी उनका सहयोग किया और आश्रम की पुरानी आभा लौट आई.

कई लोगों का तो ये भी कहना है कि इस आश्रम का वातावरण ऐसा हुआ करता था कि यहां शेर और गाय साथ में रहते थे. यहां तक कि आश्रम के काम में भी पशु मदद करते थे, जिसमें बंदर प्रमुख थे.

करीला स्थित मां जानकी मंदिर की भभूति को आसपास के किसान फसलों में कीटाणु नाशक और इल्लीनाशक के रूप में प्रयोग करते हैं. इस भभूति को फसल पर डालने से चमत्कारी ढंग से फसल से इल्लियां गायब हो जाती हैं. जिससे हर साल किसान इसका प्रयोग अपनी फसलों को स्वस्थ्य रखने में करते हैं.

 

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