सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए मतदाताओं को ‘राइट टू रिजेक्ट’ यानी की सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज करने का भी अधिकार दे दिया.अदालत ने चुनाव आयोग को कहा की है कि वह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनो में ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प होना चाहिए.
अदालत ने अपने फैसले मे कहा कि मतदाताओं को यह अधिकार है की लोकतंत्र और देश चलाने के लिए बेहतर लोगों का चुनाव कर सके और यह व्यवस्था इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से ही लागू की जाए.
अदालत ने यह फ़ैसला पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल)संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया. पीयूसीएल ने मतदाताओं के लिए निगेटिव वोटिंग की मांग करते हुए यह याचिका 2004 में दायर की थी.
फ़ैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में मतदाताओं को ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प चुनने का अधिकार जरूर दिया जाना चाहिए. पीयूसीएल ने अपनी याचिका में मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार देने की मांग की थी. चुनाव आयोग भी इस मांग का समर्थन किया था. लेकिन केंद्र सरकार इसके पक्ष में नहीं थी. उसका कहना था कि चुनाव का मतलब चुनाव करना होता है, खारिज करना नहीं.
चुनाव में अब तक उम्मीदवारों को नकारने वाले वोटों को गिनने की कोई व्यवस्था नहीं है. इससे इसका चुनाव परिणाम पर असर भी नहीं पड़ता. सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग थी कि अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में हुए मतदान में पचास फ़ीसद से अधिक मतदाता ‘राइट टू रिजेक्ट’ का इस्तेमाल करते हैं तो, वहाँ दुबारा मतदान कराया जाना चाहिए.अभी तक सभी उम्मीदवारों को नकारने की वर्तमान व्यवस्था में मतदाता मतदान केंद्र पर जाकर पीठासीन अधिकारी से 49 ओ नामक फ़ार्म भर सकता है. लेकिन इस फार्म की गणना नहीं होती है.इस फ़ैसले का लाभ इस साल दिसंबर में दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को मिल सकेगा