ममता बनर्जी के लिए आसान नहीं है विपक्ष को एकजुट करना
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल चुनाव में शानदार जीत के बाद से लगातार इस बात पर चर्चा हो रही है कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष का चेहरा हो सकती हैं। लेकिन क्या यह संभव है? फिलहाल इस दिशा में कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है। ऐसा लगता है कि बनर्जी विपक्ष का चेहरा बनने के लिए आतुर तो हैं लेकिन अन्य दलों की ओर से अभी कोई ऐसे संकेत नहीं मिले हैं जिससे इस बात को बल मिले।
बुधवार को ममता बनर्जी दिल्ली में सोनिया गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं से मिलीं और मीडिया से भी बात की। लेकिन 2024 के आम चुनाव या आगामी विधानसभा चुनावों में वह दूसरे राज्यों में किस प्रकार भाजपा की घेराबंदी कर सकती हैं, बंगाल के बाहर उनके पास भाजपा से लड़ने के लिए क्या रणनीति है, इसका ठोस खाका वह पेश नहीं कर सकीं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब आदि राज्यों में चुनाव दूर नहीं हैं लेकिन खासकर उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के लिए विपक्ष के पास अभी ठोस रणनीति दिखाई नहीं दे रही है।
ममता ने इस बात का बचाव यूं किया कि अभी संसद सत्र चल रहा है तथा सभी दल उसमें व्यस्त हैं, सत्र के बाद दलों को इस मुद्दे पर बैठकर बात करनी चाहिए। आम चुनावों में विपक्ष के ममता को चेहरा पेश करने को लेकर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई अड़चने हैं। क्षेत्रीय स्तर पर कई दलों के समक्ष एकसाथ खड़े होने की समस्या है, जैसे उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा एक साथ खड़े नहीं हो सकते। पश्चिम बंगाल में वाममंथी ममता के पीछे खड़े नहीं हो सकते। दक्षिण के दलों की अपनी अलग राजनीति है। कर्नाटक को छोड़कर ज्यादातर दक्षिणी राज्यों में भाजपा असरदार नहीं है, इसलिए दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियों की अलग प्राथमिकताएं हैं।
इसी प्रकार सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस की तरफ से ममता को विपक्ष का चेहरा स्वीकार किए जाने की संभावना बेहद क्षीण है। शायद यही कारण है कि ममता खुद भी अभी सावधानी बरत रही हैं। वह खुद को विपक्ष के चेहरे के तौर पर पेश करने से बच रही हैं। हालांकि वह इस बात पर जोर देती हैं कि विपक्ष को भाजपा को हराने के लिए एकजुट होना चाहिए। लेकिन कैसे, किसके नेतृत्व में इसका जवाब उनके पास आज नहीं है।