मायावती राज में स्मारक और पार्क घोटाले में इन लोगों पर गिरी गाज
मायावती के कार्यकाल में लखनऊ और नोएडा में स्मारक और पार्क बनवाए गए थे। लोकायुक्त की जांच से पता चला था कि इनमें लगाए गए पत्थरों के रेट न सिर्फ ज्यादा दिए गए, बल्कि उन्हें तराशने के लिए बाहर भेजा गया। जबकि, यह काम काफी सस्ते में लखनऊ में ही किया जा सकता था।
लोकायुक्त की रिपोर्ट मिलने पर इस मामले में शासन ने विजिलेंस जांच के आदेश दिए। इसमें पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, भूतपूर्व संयुक्त निदेशक एवं सलाहकार, खनन निदेशालय सुहैल अहमद फारूकी और 91 अन्य लोगों के खिलाफ गोमती नगर थाना में केस भी दर्ज कराया गया।
इनमें से एसके त्यागी और कृष्ण कुमार का मूल विभाग पीडब्ल्यूडी था। वे पीडब्ल्यूडी में क्रमश: अधीक्षण अभियंता और मुख्य अभियंता के पद पर कार्यरत थे। उन्हें प्रतिनियुक्ति पर राजकीय निर्माण निगम (आरएनएन) में भेजा गया था, जबकि बाकी के तीनों अधिकारी आरएनएन से ही हैं।
नियमानुसार, संबंधित मूल विभाग ही अपने अधिकारियों के खिलाफ जांच कर सकते हैं। इसलिए पीडब्ल्यूडी ने मुख्य अभियंता कृष्ण कुमार और अधीक्षण अभियंता एसके त्यागी के मामले में प्रमुख अभियंता (ग्रामीण सड़क) को जांच अधिकारी नियुक्त किया। वहीं राजकीय निर्माण निगम में महाप्रबंधक (यांत्रिकी) अनिल खरे को जांच सौंपी गई।
पीडब्ल्यूडी के प्रमुख अभियंता (ग्रामीण सड़क) सलेक चंद्र ने कृष्ण कुमार के खिलाफ जांच पूरी करके शासन को सौंप दी है, जिसकी पुष्टि उन्होंने स्वयं की। इसमें कृष्ण कुमार को अधिक पेमेंट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
एसके त्यागी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और उनके खिलाफ जांच जारी है। वहीं, राजकीय निर्माण निगम के तीनों अधिकारियों को जांच अधिकारी ने क्लीन चिट दे दी थी। शासन के निर्देश पर उन्हें नए आरोपपत्र दिए गए हैं, जिसमें आर्थिक क्षति का ब्यौरा भी शामिल है।
इंजीनियर सिर्फ गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार होते हैं। अगर पार्कों और स्मारकों में घटिया क्वालिटी की सामग्री लगी होती तो इंजीनियर जरूर जिम्मेदार होते। फारुखी ने कहा कि सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग इंजीनियरों पर इतना दबाव बना देते हैं कि ठेका देने और सामग्री खरीदने में या तो इंजीनियरों को उनकी बात माननी पड़ती है या फिर कार्रवाई झेलनी पड़ती है।