मुलायम सिंह के इस नमो प्रेम का जानिए राज

सियासी हल्कों में फिर चर्चाएं शुरू हो गईं हैं कि पीएम मोदी पर फिर उमड़े प्रेम का राज क्या है? क्या वे सचमुच चाहते हैं कि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनें या उनकी जुबान फिसल गई थी? हालांकि लोकसभा से बाहर निकलने के बाद उन्होंने कहा कि वो तो ऐसे ही बोल दिया था। लेकिन, उन्हें नजदीक से जानने वाले मानते हैं कि मुलायम की इस कामना के पीछे महज सियासी सदाशयता नहीं है। वे सदन के बाहर भी ऐसा कह सकते थे। लेकिन, यह तय है कि ऐसी सुर्खियां नहीं मिलतीं।
नहीं भूलना चाहिए कि ये वही मुलायम हैं, जिन्होंने 1990 में बतौर मुख्यमंत्री भाजपा और विहिप के आंदोलन को दबाने के लिए न सिर्फ अयोध्या में ‘परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा’ जैसे बयान दिए, बल्कि निहत्थे कारसेवकों पर दो-दो बार गोलियां चलवाईं। यूपी में सपा सरकार रहते, उन्होंने इसे उचित भी करार दिया था और यह भी कहा था कि फायरिंग में ज्यादा लोग भी मरते, तो उन्हें रंज नहीं हता। तो क्या मुलायमसिंह बदल गए हैं या उनकी विचारधारा बदल गई है?
मुलायम के करीबियों का दावा है कि वे सपा-बसपा गठबंधन से खुश नहीं हैं। समय-समय पर अपनी नाराजगी भी जाहिर करते रहते हैं। महागठबंधन की कोशिशों में जिस तरह उन्हें किनारे किया गया है, उससे भी वे आहत बताए जाते हैं। लेकिन, यह भी सच है कि वे अपने बेटे अखिलेश को हारते हुए भी नहीं देखना चाहते हैं। बुधवार को संसद में दिए बयान के पीछे एक कारण यह हो सकता है।
वहीं, जिस काम के लिए वे मोदी के शुक्रगुजार हैं, वह उनके खिलाफ सीबीआई में चल रहा आय से अधिक संपत्ति (डीए) का मामला है, जो पिछले पांच साल से ठंडे बस्ते में ही है। दरअसल सीबीआई ने 2000 से 2005 के बीच उनके परिवार के सभी सदस्यो के आयकर रिटर्न की जांच की और पाया कि इनमें उनकी घोषित आय से 2.68 करोड़ रुपये की संपत्ति ज्यादा पाई गई।
भारत-अमेरिका परमाणु सौदे को लेकर वाम दलों ने 2008 में मनमोहन सिंह सरकार से जब समर्थन वापस ले लिया था, तो उसे गिरने से मुलायम सिंह ने ही बचाया था। माना जाता है कि ‘उपकृत’ मनमोहन सरकार के इशारे पर सीबीआई ने 2014 तक डीए मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। मोदी सरकार में भी यही यथास्थिति क़ायम रही। इन दस सालों के दौरान सीबीआई ने इस मामले को बंद करने के लिए अदालत में दरख्वास्त भी नहीं दी है। यानी यादव परिवार पर कार्रवाई की तलवार अभी भी लटकी है।