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‘‘शहादत का धर्म’’ (23 मार्च शहीद दिवस विशेष)

लखनऊ : 23 मार्च 1931 पंजाब के लाहौर में हलचल तेज थी कि 24 मार्च को देश के तीन रणबाकुरों भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू को फाँसी दी जायेगी। लाहौर की जेल में बन्द नौजवानों की ये टोली मनमस्त फकिरी में थी। 23 मार्च को भगत सिंह, पुस्तक पढ़ रहे थे। जेलर ने आकर एक दिन पहले ही फाँसी की सूचना दी तो उनका आग्रह था कि उन्हें फाँसी के बजाय उन्हें गोली से उड़ा दिया जाय, लेकिन फिरंगी सरकार टाल गयी थी। देश भक्तों ने जेल को घेर रखा था, पर सायं 7 बजकर 34 मिनट पर जेल में वन्देमातरम्, इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए तीनों माँ भारती के पुत्रों ने अपनी शहादत दे दी। उन्हें जेल की पीछे की दीवार तोड़कर रात में सतलुज के किनारे ले जा कर मिटटी का तेल डालकर जलाने के प्रयास हुआ। अधजली लाशों को नदी में बहा दिया गया। जिसकी सूचना होने पर देशभर में भारी विरोध हुआ।

आज देश स्वतंत्र भी है लेकिन सामाजिक असमानता, संकीर्णता, स्वार्थपरता, वैमनस्यता, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, आतंकवाद जैसी समस्याओं से समाज जूझ रहा है। तथाकथित अराष्ट्रीय ताकते भगत सिंह के क्रान्ति सिद्धान्त की आड़ लेकर आतंकवादी गतिविधियों का खुला समर्थन कर रही है। स्वधर्म, राष्ट्रधर्म, समाजधर्म, मानवधर्म की रक्षा के लिए क्रन्तिवीरों ने क्रान्ति का मार्ग अपनाया था। उनके आदेश थे, ‘‘अन्याय जुल्म के खिलाफ बागी बनों’’ जहाँ राष्ट्रीय मूल्यों और समाज के प्रति षड़यन्त्र, अन्याय, जुल्म हो उसके खिलाफ बगावत धर्म है। 1924 में भगत सिंह ने विश्व प्रेम शीर्षक से लिखे लेख में वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय संकल्पना को साकार किया था। जिसमें सेवा समानता मातृभूमि के प्रति अन्यन्य प्रेम, जनसामान्य के दुःखदर्द को दूर करने की बात की थी। आज देश अबाध गति से आगे बढ़ रहा है, तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा आन्तरिक और वाह्य खतरे में है। कश्मीर से लेकर दण्डकारण्य में जवानों को बलिदान देना पड़ रहा है। सवा सौ करोड़ देश वासियों की राष्ट्र भक्ति पर भ्रष्टाचार, जातिवाद, असमानता, आर्थिक विषमता भारी पड़ रही है। आज कुछ निहित स्वार्थी लोगों द्वारा भगत सिंह के स्वधर्म, सिद्धान्त, क्रान्ति को गलत दिशा दे रहे हैं। भगत सिंह खालसा पंथ में जन्मे थे। आर्य समाज के वेद विचार उनकी प्रेरणा थी। आन्दोलन के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने अपने केश कटाये थे, वेश बदल कर दुर्गा भाभी के साथ बच निकले थे। बचपन में अंग्रेजों द्वारा संचालित स्कूल में गाड की प्रार्थना होने के साथ उन्होंने विद्यालय बदल कर डी.ए.वी. कालेज से पढ़ाई की थी। शिवराम हरि राजगुरू सनातनी परम्परा के थे तो सुखदेव का परिवार वैदिक आर्य समाजी था। तीनों का भारतीय संस्कृति धर्म में अटूट श्रद्धा थी लेकिन इन्हें ‘‘नास्तिक’’ बनाने की होड़ लगी रहती है। हिन्दूधर्म संस्कृति, आस्तिक, नास्तिक दोनों है जो अनेक पंथों की जननी है। सबको अपना पंथ, पूजा, परम्परा निर्वहन का अधिकार है पर राष्ट्रधर्म, समाजधर्म सबका एक है। सब भारत माँ के लाल हैं भारतीय हैं, उस समय देश को स्वतंत्र कराना समृद्ध, समर्थ और समरस खुशहाल समाज बनाना ही सबका राष्ट्र धर्म था। आजादी की रक्षा के लिए ‘‘बम का दर्शन’’ मानवता को सर्वश्रेष्ठ बनाने का दर्शन था। ‘‘सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, माकश्चिद् दुःख भागभवेत’’ इसके लिए लड़ना ही राष्ट्रधर्म समाज धर्म है। इसके लिए भगत सिंह ने भारतीय युवकों का आह्वान किया था कि ‘‘
ऐ भारतीय युवक ! तू क्यों गफलत की नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है! उठ, आँखें खोल, देख प्राची-दिशा का ललाट सिन्दूर-रंजित हो उठा है। अब अधिक मत सो। सोना हो तो अन्नत निद्रा की गोद में जाकर सो रहा। कापुरूषता के क्रोड़ में क्यों सोता है?
माया-मोह-ममता का त्याग कर गरज उठ-
“Farewell Farewell My true Love
The army is on move;
And if I stayed with you Love,
A coward I shall prove”
तेरी माता, तेरी प्रातः स्मरणीया, तेरी परम वन्दनीया, तेरी जगदम्बा, तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूलधारिणी, तेरी सिंहवाहिनी, तेरी शस्यमामलांचला आज फूट-फूटकर रो रही है। क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पितर भी नतमस्तक हैं इस नपंुसकत्व पर ! यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो, तो उठ कर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आँसुओं की एक-एक बूँद की सौगन्ध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल मुक्त कण्ठ से वन्देमातरम्।
आज देश के लिए मरने न ही जीने की आवश्यकता है। यही शहादत का राष्ट्रधर्म है।

राजकुमार
आलेख में व्यक्त किये गये विचार लेखक के निजी विचार हैं, इससे सम्पादक/प्रकाशक का सहमति होना आवश्यक नहीं है।

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