श्री लाल बहादुर शास्त्री जयंती: तुझे सलाम भारत मां के लाल
दस्तक टाइम्स/एजेंसी
भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर, 1904 को मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) के एक सामान्य परिवार में हुआ था। इनका वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। इनके पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे। इनकी शिक्षा हरीशचंद्र उच्च विद्यालय और काशी विद्यापीठ में हुई। स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात इन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। भारत सेवक संघ से इनका राजनीतिक जीवन आरंभ हुआ। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। गोविंद वल्लभ पंत सरकार में ये पुलिस एवं यातायात मंत्री बने। परिवहन मंत्री के अपने कार्यकाल में आपने महिला संवाहकों (कंडक्टरों) की नियुक्ति की। पुलिस मंत्री होने पर आपने भीड़ को नियंत्रित रखने के लिए लाठी की अपेक्षा पानी की बौछार का प्रयोग लागू करवाया।
1951 में पं. नेहरू के नेतृत्व में आप कांग्रेस के महासचिव नियुक्त किए गए। 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से विजय का श्रेय आपके अथक परिश्रम व प्रयास का परिणाम था। आपकी निष्ठा को देखते हुए पं. नेहरू की मृत्यु के पश्चात कांग्रेस पार्टी ने 1964 में शास्त्री जी को प्रधानमंत्री पद का उत्तरदायित्व सौंपा व आपने 9 जून 1964 को पद्भार ग्रहण किया। शास्त्री जी रेल मंत्री थे जब 1956 में अशियालूर में रेल दुर्घटना हुई। इस दुर्घटना की जिम्मेदारी स्वयं लेते हुए शास्त्री जी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। शास्त्री जी की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। अनाज के संकट से निपटने के लिए उन्होंने सप्ताह में एक दिन का या कम से कम एक समय का उपवास रखने की अपील की थी। ऐसा उन्होंने स्वयं भी किया।
सन् 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत की सरहदों में घुसपैठ करने की कोशिश की तो भारतीय सैनिकों ने उसका करारा जवाब दिया था उन सैनिकों की कुर्बानियों के पीछे जोशीले शब्द थे भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के। शास्त्री जी ने तब नारा दिया था ‘जय जवान, जय किसान और यह ऐलान किया था कि भारत को कोई कमजोर समझने की भूल न करे। उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के पश्चात 11 जनवरी, 1966 की रात को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। आपकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए मरणोपरांत आपको ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।