समलैंगिकता पर जारी है सुनवाई, सरकार ने कहा- सुप्रीम कोर्ट करेगी इसका फैसला
फिलहाल कोर्ट में सुनवाई दो बजे तक रोक दी गई है।
लेकिन सुनवाई रोके जाने से पहले याचिकाकर्ता की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि सुप्रीम को लेस्बियन, गे, बाई सेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों के सुरक्षा का ध्यान अदालत, संविधान और देश को रखना होगा। बता दें कि धारा 377एलजीबीटी समुदाय को बराबरी के अधिकार से इनकार करती है।
गुरुस्वामी ने अदालत में बहस के दौरान कहा कि समलैंगिकता किसी के करियर और ग्रोथ में बाधा उत्पन्न नहीं करती है। उन्होंने कहा कि कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने उच्चस्तर की प्रतियोगी परीक्षाएं पास की हैं जिसमें आईआईटी, सिविल सर्विसेज की परीक्षाओं के साथ कई और परीक्षाएं शामिल हैं।
दो दिनों से चल रही समलैंगिकता की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच को तय करना है कि समलैंगिकता अपराध है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के पांच जजों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा चार और जज हैं, जिनमें आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।
आज दोपहर में शुरू हुई इस बहस को केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए तुषार मेहता ने अपनी बात रखी। इस मामले में उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक से फैसला ले। वहीं केंद्र सरकार ने यह जरूर कहा कि सुप्रीम कोर्ट बच्चों के खिलाफ हिंसा और शोषण को रोकना सुनिश्चित करे।
मंगलवार को इन बातों पर हुई बहस
मंगलवार को इस बैठक में लंबी बहस हुई जिसमें याचिकाकर्ताओं की तरप से अरविंद दातार पेश हुए थे जिन्होंने बताया कि 1860 में समलैंगिकता का कोड भारत पर थोपा गया था। उन्होंने कहा कि तब भारत में ब्रिटिश शासन था। उन्होंने कहा, ‘अगर यह कानून आज लागू किया जाता तो यह संवैधानिक तौर पर सही नहीं होता।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी की कि यह मामला केवल धारा 377 की वैधता से जुड़ा हुआ है। इसका शादी या दूसरे नागरिक अधिकारों से कोई लेना-देना नहीं है। वह दूसरी बहस का विषय है।
केंद्र सरकार की तरफ से सहायक महाधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला धारा 377 तक सीमित रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका शादी और संभोग के मामलों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।