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सुकेत धीर ने छुड़ाई संघ की खाकी निक्कर, पहनाया फुलपैंट

suket-dheer_landscape_1458038404एजेन्सी/राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हाफ ‌निक्कर छोड़कर फुलपैंट को अपना पहनावा बनाने का फैसला किया है। मीडिया समेत सोशल मी‌डिया में फैसला सुर्खियों में हैं, हालांकि आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि संघ के लिबास का ये ‘मेकओवर’ दरअसल एक फैशन डिजाइनर के दिमाग की उपज है। सुकेत धीर को संघ के ‘मेकओवर’ का श्रेय दिया जा रहा है। 

इंडिया टुडे से बातचीत में धीर ने बताया ,”मेरे पिता संघ से कई सालों तक जुड़े रहे इसलिए स्वाभाविक रूप से संगठन के सबसे महत्वपूर्ण बदलाव में मेरा योगदान मांगा गया।” सुकेत को पुरुष परिधानों की ‌डिजाइन के लिए 2015-16 का अंतरराष्ट्रीय वुलमार्क पुरस्कार भी दिया जा चुका है। हालांकि आरएसएस की पहनावों में सबसे बड़ा बदलाव करने के बाद भी वे अपने काम का श्रेय लेने के लिए तैयार नहीं है।

उन्होंने कहा, “मुझे अपने काम पर फक्र है, हालांकि मैं उसका श्रेय नहीं लेना चाहता।” आरएसएस की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के पिछले हफ्ते नागौर में तीन दिवसीय सालाना सम्मेलन में परिधान में बदलाव का फैसला किया। संघ के 91 साल के इतिहास में ड्रेस कोड में कई बार बदलाव किए गए हैं, हालांकि टोपी आज भी वही है और इसमें बदलाव नहीं किया गया।धीर ने बताया कि खाकी हाफ पैंट 1920 में पुलिस का पहनावा ‌थी, फिलहाल मर्दों पर वे फबता नहीं। इसलिए भूरे पैंट को बेहतर माना गया। संघ को दो विकल्प दिए गए थे-खाकी और भूरा। धीर के मुताबिक, भूरा रंग और गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसमों के लिए ठीक था। ये कपड़े किसी भी दुकान पर आसानी से मिल भी सकते थे। बहुत ज्यादा गंदे होने पर भी ये साफ ही दिखते हैं। धीर ने बताया कि पुराना होने के बाद भूरा रंग धूसर नहीं पड़ता। 

उन्होंने बताया कि संघ के पहनावे में बदलाव के कई कारण ‌थे। खाकी निक्कर आरामदायक नहीं थी, कई बुजुर्ग सदस्यों को निक्‍कर पहनने में परेशानी भी होती थी। धीर ने बताया कि ठंड के दिनों में खाकी निक्कर पहनकर बाहर जाना बहुत कठिन था। नए परिधान में मुख्य धारा से जुड़ना अधिक सहज है। 

गौरतलब है कि 1925 में स्थापना के बाद से ही ढीला खाकी हॉफ पैंट आरएसएस की पहचान बना हुआ था। हालांकि ड्रेस में छोटे-मोटे बदलाव होते रहे, लेकिन खाकी हॉफ पैंट को नहीं छुआ गया था। संघ के ड्रेस में सबसे पहला बदलाव 1940 में हुआ था, जब खाकी शर्ट का रंग सफेद किया गया था। इसी तरह 1973 में चमड़े के जूते की जगह लंबा बूट लागू किया गया। बाद में चमड़े की जगह कैनवस (रैक्सिन) जूतों को लागू किया गया। संघ के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि संघ के गणवेष (ड्रेस कोड) में बदलाव लंबे विचार विमर्श के बाद किया गया।

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