फ्रांस में एक नायाब मादक पेय ‘एबसिंथ’ सौंफ से बनाया जाता है। इसे गिलास में डालते ही पानी का रंग दूधिया हो जाता है और सौंफ की कुदरती मिठास महसूस की जा सकती है। पत्तियों का प्रयोग सजावट के लिए वैसे ही किया जाता है, जैसे अपने यहां हरे धनिए का। सौंफ की याद हमें छककर खाने के बाद ज्यादा आती है, मुंह को सुवासित करने के साथ-साथ इसके दानों की पाचक तासीर का लाभ उठाने की मंशा से। कई जगह बिल के साथ सादी या मीठी, मोटी या महीन सौंफ तश्तरी में पेश की जाती है। पान के बीड़े में भी इसकी खास जगह आरक्षित है।
हिंदुस्तान के लोगों को सौंफ कुछ ज्यादा ही लुभाती है। मसाला चाय में अदरक के साथ सौंफ की जुगलबंदी गरमागरम गिलास का आकर्षण बढ़ाती है। कश्मीरी वाजवान के अधिकांश व्यंजनों में सोंठ (सूखी अदरक) और सौंफ के पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है। बंगाल के खान-पान को अलग पहचान दिलाने वाले ‘पांच फोरन’ मसाले के पंच परमेश्वरों में एक सौंफ है। लाल मिर्च हो या आम इनका अचार बनाते वक्त सौंफ के बिना काम नहीं चलता। भारत में जितने भी शाकाहारी या मांसाहारी व्यंजनों के साथ ‘अचारी’ विशेषण लगाया जाता है, उनमें मेथी और राई के दानों और अमचूर की संगत में सौंफ की भूमिका महत्वपूर्ण नजर आती है। दिलचस्प बात यह है कि सौंफ बखूबी मिठाइयों और नमकीन व्यंजनों का साथ निभाने में समर्थ है।