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नई दिल्ली। भारत के एंटी सेटेलाइट मिसाइट परीक्षण (ASAT) पर अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की आलोचना पर इसरो ने जवाब दिया है। नासा ने भारत के ASAT परीक्षण को भयावह बताते हुए कहा था कि इससे अंतरिक्ष में 400 टुकड़ों का मलबा फैल गया है जिससे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में अंतरिक्षयात्रियों को नए खतरों का सामना करना पड़ सकता है। इसरो चेयरमैन के सीनियर एडवाइजर तपन मिश्रा ने मंगलवार को कहा कि भारतीय वैज्ञानिक ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे भारत को शर्मिंदगी उठानी पड़े। उन्होंने स्पष्ट किया कि मिशन शक्ति प्रयोग से हुआ कचरा अगले 6 महीनों के भीतर जलकर खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा, कई बार शादी के दिन भी आपके कुछ सबसे अच्छे दोस्त भी खाने की आलोचना करते हैं… जब हम कुछ अलग काम करते हैं तो हमें हमेशा फूलों की माला नहीं पहनाई जाती हैं। यह जीवन का हिस्सा है… भारत ने अंतरिक्ष में 300 किमी की ऊंचाई पर परीक्षण किया जहां पर वायु का दबाव बहुत ही कम होता है लेकिन यह अगले 6 महीनों में मलबे को जलाकर नष्ट करने के लिए काफी है।
तपन अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेंशंस सेंटर (SAC) के पूर्व निदेशक भी रह चुके हैं। इसरो साइंटिस्ट ने दावा किया, डीआरडीओ का प्रयोग कोई विस्फोट नहीं था बल्कि बुलेट की तरह था। चीन ने 800 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाकर ASAT परीक्षण किया था जहां पर वायु दबाव ना के बराबर होता है। यहां तक कि आज भी चीन का फैलाया कचरा अंतरिक्ष में तैर रहा है। इसरो वैज्ञानिक तपन गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (GNLU) में ISS पर नासा की चेतावनी को लेकर एक छात्र के सवाल का जवाब दे रहे थे। इसरो की प्रतिक्रिया नासा के अध्यक्ष जिम ब्रिंडेन्स्टाइन के उस बयान के बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि नासा ने भारत के परीक्षण से उपजे 400 टुकड़ों की पहचान की है और इससे ISS के मलबे से टकराने का खतरा पैदा हो गया है। जिम ने यह भी कहा था कि 2007 में चीनी परीक्षण की तुलना में भारतीय परीक्षण कम खतरनाक था। 2007 में चीन के ASAT परीक्षण से ही करीब 3000 टुकड़े अंतरिक्ष में फैल गए थे। चीन ने यह परीक्षण करीब 800 किमी की ऊंचाई पर किया था।
तपन ने आगे कहा, भारतीय वैज्ञानिकों की क्षमता को देखते हुए मैं आश्वस्त हूं कि उन्होंने सभी गणनाएं करने के बाद ही परीक्षण किया होगा ताकि भारत को किसी तरह की शर्मिंदगी ना उठानी पड़े। भारत ने यह परीक्षण 300 किमी रेंज में किया है जिससे मलबा जल्द ही नष्ट हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष में मौजूद मलबा पहले से ही बहुत बड़ा है और कई देश अपने रडार, कैमरा और टेलिस्कोप से उस पर निगरानी कर रहे हैं। सभी देश एक-दूसरे के साथ सहयोग कर रहे हैं। भारत जानबूझकर कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगा जिससे अंतरिक्ष में दुर्घटनाएं हों। भारत ने मिशन शक्ति परीक्षण के बाद पूरी दुनिया को भरोसा दिलाया था कि इस परीक्षण से अंतरिक्ष में किसी भी तरह का मलबा नहीं फैलेगा। भारत ने कहा था कि पृथ्वी की सतह से 300 किमी दूर लो अर्थ ऑर्बिट में यह परीक्षण किया गया है जिससे पैदा हुआ कचरा अपने आप नष्ट हो जाएगा और कुछ हफ्तों के भीतर धरती पर गिर जाएगा। 300 किमी ऊंचाई पर वातावरण और गुरुत्वाकर्षण दोनों मौजूद होता है, हालांकि ये थोड़ा कमजोर होता है।
वातावरण की वजह से भारतीय सैटेलाइट के टुकड़े कुछ दिनों में अपनी गति खो देंगे और फिर पृथ्वी पर गिर जाएंगे। इसके बाद टुकड़े वायु से उत्पन्न घर्षण के कारण जलकर खत्म हो जाएंगे। इसके अलावा, भारत ने परीक्षण पृथ्वी से 300 किमी की ऊंचाई पर किया है जबकि ISS 400 किमी की ऊंचाई पर स्थित है। हालांकि, आर्बिटल की ऊंचाई में यह फर्क ही खतरे को स्पष्ट नहीं दिखाता है बल्कि यह भी देखना जरूरी है कि दोनों की सापेक्षिक कक्षाएं किसी दिए गए वक्त पर कितनी दूरी पर है। भारतीय वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक, भारतीय सेटेलाइट को मार गिराए जाने के बाद इसके टुकड़े किसी भी स्थिति में 50 किमी से ज्यादा दूरी पर नहीं जा सकते हैं। हालांकि, नासा अधिकारी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि भारतीय सेटेलाइट के जिन 24 टुकड़ों की वह बात कर रहे हैं, वे ISS से कितनी दूरी पर हैं। यह भी साफ नहीं हो पाया है कि ISS के लिए ये टुकड़े कितना बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं।