अंसारी के घर में ही सपा को लग सकती है चोट
लगभग त्रिकोणीय दिखती रही अब तक की लड़ाई के बाद जब सभी की नजरें पूर्वांचल पर टिक गई हैं तो गाजीपुर, मऊ और बलिया सांसे थामकर अंसारी भाईयों के असर के आकलन में जुट गया है।
गाजीपुर । लगभग त्रिकोणीय दिखती रही अब तक की लड़ाई के बाद जब सभी की नजरें पूर्वांचल पर टिक गई हैं तो गाजीपुर, मऊ और बलिया सांसे थामकर अंसारी भाईयों के असर के आकलन में जुट गया है। दरअसल इनका असर ही यह भी तय करेगा कि बसपा पूर्वांचल के अपने पुराने गढ़ में खोई हुई कितनी जमीन वापस पाएगी। फिलहाल बसपा के पास खुश होने को कारण भी है और निराश होने के लिए तथ्य भी। पर यह स्पष्ट है कि बसपा और भाजपा की लड़ाई में खरोंचे सपा को लगने वाली है।
गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार अल्का राय अपने दो दर्जन समर्थकों के साथ चुनाव अभियान में जुटी हैं। अलका भाजपा के बड़े नेता कृष्णानंद की पत्नी हैं जिनकी नवंबर 2005 में हत्या हो गई थी। प्रचार में जुटे कार्यकर्ताओं के चेहरे पर राहत है। यह राहत दो कारणों से है- एक तो यह कि पास की मऊ सीट से लड़ रहे मुख्तार अंसारी को हाईकोर्ट ने पैरोल नहीं दिया है। यानी वह जेल के अंदर ही रहेंगे। दूसरा कारण यह कि भाजपा को इसकी पूरी आशा है कि मोहम्मदाबाद सीट से बसपा उम्मीदवार के तौर लड़ रहे मुख्तार के भाई सिबगतुल्ला के खिलाफ यादव मतदाता एकजुट होकर अलका राय को वोट देंगे।
दरअसल सपा के यादव मतदाताओं को अंसारी भाइयों का वह बयान आहत कर गया है जिसमें उन्होंने मुलायम के खिलाफ अपशब्द कहे थे। अलका इसे भुनाने में जुटी हैं। वह कहती हैं-‘बड़े नेताओं के लिए अपशब्द का इस्तेमाल उचित नहीं हैं, लेकिन अंसारी भाईयों से अपेक्षा भी क्या की जा सकती है। यहां के लोग जानते हैं कि मैं एक बाहुबलि के खिलाफ चुनाव लड़ रही हूं। अंसारी के सबसे बड़े भाई अफजाल अंसारी इसे ही मुद्दा बनाते हैं। देर रात सफेद गाडिय़ों का एक काफिला रुकता है। अफजाल उतरते हैं और दैनिक जागरण से बातचीत में कहते हैं- ‘आप जानना चाहते हैं कि इस क्षेत्र में सपा किस तरह भाजपा को मदद पहुंचा रही है? लेकिन हमें फिक्र नहीं है।
हमें तो माफिया कहा जाता है लेकिन मुलायम जानते हैं कि मैं चार बार सीपीआइ की सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचा था। इस चुनाव में भी लोगों को पता चल जाएगा कि जनता हमें क्या मानती है। काश कि मुख्तार को राहत मिल जाती तो मैं मऊ जाने की बजाय दूसरे क्षेत्रों में ध्यान केंद्रित कर पाता। ध्यान रहे कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के वीटों के बाद अंसारी ब्रदर्स की टीम की सपा में इंट्री रद हो गई थी। अब कौमी एकता दल बसपा में समाहित हो चुका है। पिछले आंकड़े बताते हैं कि पूर्वांचल के तीन चार जिलों में अकेले लड़ते हुए भी कौमी एकता दल कुछ सीटें और अच्छा खासा वोट अपने खाते में लाता रहा है।
ऐसी कई सीटों पर बसपा का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है। ऐसे में अगर बसपा भाजपा के साथ जुड़ते दिख रहे अतिपछड़ों को कुछ हद तक रोकने में सफल होती है तो अल्पसंख्यकों का साथ लेकर फिर से खोई हुई कुछ जमीन हासिल कर सकती है। यानी इस क्षेत्र की लगभग डेढ़ दर्जन सीटों पर मुकाबला भाजपा और सपा में ही होता दिख रहा है और जाहिर तौर पर नुकसान सपा को ही उठाना पड़ सकता है।