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अच्छे दिनों के नाम खुला खत!

bjpप्रिय अच्छे दिन,
इससे पहले कि मैं ये पुछूं, कैसे हो तुम, पहले ये बताओ…कहां हो तुम? दो साल पहले सुना था कि तुम आने वाले हो, मगर राहुल गांधी के टैलंट की तरह तुम्हारा अब तक कोई ठिकाना नहीं। साल दर साल गलत निकलने वाली मॉनसून की भविष्यावाणियां भी 8-10 दिन ही आगे पीछे होती हैं। आदतन देरी से चलने वाली भारतीय ट्रेनें भी 4-5 घंटे देरी से ही सही, पहुंच जाती हैं, मगर तुम्हारा कुछ पता नहीं।

बस अड्डे से लेकर रेलवे स्टेशन तक मैंने तुम्हारी गुमशुदगी के पोस्टर लगाए, गूगल में सर्च मारी, बेड के नीचे लंबी वाली झाड़ू लगाई। बेटी की दूधवाली बोतल और दादी की जुओं वाली कंघी ज़रूर मिल गई मगर तुम हो कि साजिद खान की फिल्मों में ‘सेंस’ की तरह कहीं मिल ही नहीं रहे।

कहा गया था कि जब तुम आओगे तो आम आदमी की दो जून की रोटी सस्ती हो जाएगी मगर इधर 1 जून से सरकार ने इतने टैक्स लगा दिए कि जून से लेकर जुलाई तक सब महंगा हो गया । फिल्म देखने से लेकर बाहर खाना खाने, यात्रा करने तक सबके दाम बढ़ गए। अच्छे दिन न आने के गम में दोस्तों से बात कर रोना रो लेते थे, अब तो मोबाइल पर बात करना भी महंगा हो गया और आम आदमी कोई प्रधानमंत्री भी नहीं, जो रेडियो पर ‘मन की बात’ करके जी हल्का कर सके।
सरकार लगातार कह रही है कि देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है मगर हाल-फिलहाल पेट्रोल की कीमतों से ज़्यादा किसी को बढ़ते नहीं देखा। सबका साथ, सबका विकास के नाम पर सबसे ज़्यादा विकास दाल की कीमतों का हुआ है। सफाई अभियान के नाम पर सबसे ज़्यादा सफाई साध्वी प्राची से लेकर योगी जैसे नेतोओं के बयानों पर दी गई है। स्कूल कॉलेजों में इतने छात्र पिटे हैं कि सरकार को योजना का नाम बदलकर ‘पढ़ेगा इंडिया, तभी तो पिटेगा इंडिया’ कर देना चाहिए।
अच्छे दिन, अब भी वक्त है… जहां कहीं भी हो, आ जाओ….माल्या की तरह हमें और मत सताओ…बस एक बार अपना चेहरा दिखा जाओ, ताकि हमें तसल्ली हो जाए कि तुम हो तो सही। ऐसा न हो कि तुम्हारा वजूद ही न हो और हम तुम्हारा इंतज़ार करते रह जाएं।

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