अपने लिए जिए तो क्या जिए
एक बार लाल बहादुर शास्त्री जी ट्रेन से मुंबई जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्रीजी बोले, ‘डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है।’
उनके पी.ए. कैलाश बाबू ने कहा, ‘जी, इसमें कूलर लग गया है।’
शास्त्रीजी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, ‘कूलर लग गया है?…बिना मुझे बताए? आप लोग कोई काम करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं? क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गर्मी नहीं लगती होगी?’
शास्त्रीजी ने कहा, ‘कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नहीं हो सकता, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, ‘बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहाँ भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए।’
आखिरकार जब मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो कूलर निकलवाने के बाद ही आगे बढ़ी।