उत्तराखंड सरकार इसके लिए अस्पताल से एमओयू करने जा रही है। इसके बाद बच्चों को सर्जरी, दवा और स्पीच थैरेपी का खर्च सरकार ही वहन करेगी। इस सर्जरी पर पांच से साढ़े पांच लाख रुपए का खर्च आता है।
श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी भूपेंद्र रतूड़ी ने बताया कि एमओयू के बाद सभी बच्चों का उपचार मुफ्त हो सकेगा। सीएचसी (संयुक्त स्वास्थ्य केंद्र) और पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) ऐसे बच्चों की सूची तैयार करेंगे। उन बच्चों को अनुबंध के अनुसार श्री महंत इंदिरेश अस्पताल रेफर किया जाएगा।
यहां उनका सर्जरी व अन्य उपचार किया जाएगा। प्रदेश में हर साल हजारों जन्मजात बहरे बच्चे पैदा होते हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में नवजातों की सुनने की क्षमता विभिन्न बीमारियों व अन्य कारणों से भी कम या खत्म हो जाती है। ऐसे बच्चे बहरे होने के साथ ही गूंगे भी होते हैं। पांच साल तक के ऐसे बच्चों का उपचार कोक्लर इंप्लांट के जरिए किया जा सकता है।
उत्तराखंड सरकार इसके लिए अस्पताल से एमओयू करने जा रही है। इसके बाद बच्चों को सर्जरी, दवा और स्पीच थैरेपी का खर्च सरकार ही वहन करेगी। इस सर्जरी पर पांच से साढ़े पांच लाख रुपए का खर्च आता है।
श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी भूपेंद्र रतूड़ी ने बताया कि एमओयू के बाद सभी बच्चों का उपचार मुफ्त हो सकेगा। सीएचसी (संयुक्त स्वास्थ्य केंद्र) और पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) ऐसे बच्चों की सूची तैयार करेंगे। उन बच्चों को अनुबंध के अनुसार श्री महंत इंदिरेश अस्पताल रेफर किया जाएगा।
यहां उनका सर्जरी व अन्य उपचार किया जाएगा। प्रदेश में हर साल हजारों जन्मजात बहरे बच्चे पैदा होते हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में नवजातों की सुनने की क्षमता विभिन्न बीमारियों व अन्य कारणों से भी कम या खत्म हो जाती है। ऐसे बच्चे बहरे होने के साथ ही गूंगे भी होते हैं। पांच साल तक के ऐसे बच्चों का उपचार कोक्लर इंप्लांट के जरिए किया जा सकता है।
कोक्लर इंप्लांट में सर्जरी और उपचार की पूरी प्रक्रिया में पांच से साढ़े पांच लाख रुपए का खर्च आता है। ऐसे में गरीब और मध्य आय वर्ग के लोग अपने गूंगे-बहरे बच्चों का उपचार नहीं करा पाते हैं। इन लोगों को राहत देते हुए राज्य सरकार ने कोक्लर इंप्लांट में मदद देने की योजना तैयार की है।
गूंगा भी हो जाता है बहरा बच्चा
जन्मजात बहरा होने वाला बच्चा आगे चलकर गूंगा भी हो जाता है। दरअसल, बच्चे उन्हीं शब्दों को बोलना सीखते हैं, जो वह सुनते हैं। जब बच्चा बहरा है तो स्वाभाविक है, वह शब्द नहीं सुन पाएगा। इससे वह बोलना भी नहीं सीख पाता है।
अस्पताल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी भूपेंद्र रतूड़ी ने बताया कि ऐसे बच्चों को स्पीच थैरेपी के जरिए बोलना सिखाया जाता है। कोक्लर इंप्लांट के बाद बच्चे की सुनने की क्षमता सुधर जाएगी। तब उसे बोलना सिखाने के लिए स्पीच थैरेपी दी जाएगी।
क्या है कोक्लर इंप्लांट
कोक्लर इंप्लांट पांच वर्ष तक के बच्चों में किया जाता है। कोक्लर का एक हिस्सा कान के अंदर और दूसरा बाहर लगाया जाता है। सर्जरी के जरिए कान के पर्दे के साथ उसे जोड़ दिया जाता है ताकि बच्चे को स्पष्ट सुनाई दे। लगभग शत-प्रतिशत मामलों में यह सर्जरी बहरेपन के उपचार में प्रभावी होती है।
एमओयू की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। इसके बाद पांच साल तक के बच्चों का कोक्लर इंप्लांट निशुल्क हो सकेगा। सरकार पूरा खर्च वहन करेगी। योजना से प्रदेश के हजारों बच्चों को लाभ मिलेगा।