आखिर अमेरिका के ट्रैवल बैन की सूची में क्यों नहीं है पाकिस्तान
कई मुस्लिम देशों के लोगों पर ट्रंप के यात्रा प्रतिबंध को अमेरिकी की शीर्ष अदालत ने सही ठहराया है। अमेरिका फर्स्ट की नीति को लेकर आगे बढ़ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की सात मुस्लिम देशों पर ट्रैवल बैन की पॉलिसी समझ से कुछ परे लग रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इराक, ईरान, लीबिया, सूडान, सीरीया, सोमालिया और यमन के नागरिकों पर इमिग्रेशन बैन तो लगाया लेकिन आतंक का पर्याय बने पाकिस्तान को इन देशों की सूची में शामिल न करना ट्रंप प्रशासन की सुरक्षा नीति में सवालिया निशान लगा रहा है। पाकिस्तान पर ‘डबल गेम’ खेलने का आरोप लगाते हुए ट्रंप ने पाकिस्तान को तो कई बार लताड़ लगाई है लेकिन शायद पाकिस्तान को समझ में नहीं आ रहा है कि आतंकवाद और आर्थिक उन्नति साथ-साथ नहीं चल सकते।
अमेरिका, भारत और अफगानिस्तान ने पाकिस्तान पर आतंकी संगठनों को समर्थन देने के आरोप तो लगाए हैं पर इसका पाकिस्तान पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा है। तीनों देशों का कहना है कि पाकिस्तान की जमीन आतंकियों के लिए स्वर्ग जैसी है। वहां आतंकी ट्रेनिंग लेते हैं और दुनिया में दहशत फैलाते हैं। अमेरिका बार-बार पाकिस्तान से हक्कानी गुट के खिलाफ कार्रवाई करने को तो कहता रहा है, जो अफगानिस्तान में कई हिंसक गतिविधियों में लिप्त रहा है। अमरीका में इस बात को लेकर खासी चिंता रही है कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों से संपन्न इकलौता मुसलमान-बहुल देश है और उसके साथ पूरी तरह से संबंध तोड़ना दुनिया के लिए सही फैसला होगा या गलत।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में हुई ट्रंप की जीत
अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम बहुसंख्यक देशों पर राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए ट्रैवल बैन को जायज ठहराया है। ट्रंप ने ट्वीट कर इसकी जानकारी देते हुए ‘वॉव’ लिखकर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि चुनौतीकर्ता यह साबित करने में असफल रहे कि यह प्रतिबंध या तो अमेरिकी आव्रजन कानून या एक धर्म पर दूसरे धर्म को सरकारी तरजीह देने संबंधी अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन का उल्लंघन करता है। इस मामले में चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने कहा कि सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर पर्याप्त रूप से न्यायोचित साबित किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के ट्रैवल बैन में 7 मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमरीका में आने पर 90 दिनों की पाबंदी और शरणार्थियों पर 120 दिनों के प्रतिबंध की बात गई थी।
क्या कहते हैं ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स के आंकड़े
ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पाकिस्तान में करीब पिछले 16 सालों में दर्ज किए जा रहे आतंकवाद से जुड़े मामलों से पता चलता है कि साल 2014 आतंकवाद के लिहाज से सबसे बुरा साल रहा था। विश्व के 93 देशों में किसी ना किसी तरह के आतंकी हमले हुए, जिनमें 32,765 लोगों की जान चली गई। जिन पांच देशों में आतंकवाद का सबसे ज्यादा असर रहा उनमें इराक, अफगानिस्तान, नाइजीरिया के अलावा पाकिस्तान और सीरिया भी शामिल हैं। आतंकवाद से जुड़ी मौतों में से 72 फीसदी इन्हीं पांच देशों में हुईं हैं। आईएस के कारण विश्व भर का ध्यान सीरिया और इराक पर रहा लेकिन तालिबान लड़ाकों के कारण अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा हिंसा दर्ज हुई। 1989 से 2017 के बीच हुए 93 फीसदी आतंकी हमले ऐसे देशों में हुए जहां राज्य समर्थित आतंक है। ट्रंप को न तो पाकिस्तान और न ही सऊदी अरब एक सहयोगी के तौर पर देख रहा है, असल में किसी भी मुस्लिम बहुल देश का उनके प्रति दोस्ताना रवैया नहीं है। हालांकि अभी इस बारे में अटकलें लगाना जल्दबाजी होगा कि ट्रंप की रणनीति क्या है?
अमेरिका मीडिया का कहना है कि ट्रंप ने कारोबारी हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ देशों को यात्रा बैन वाली सूची से बाहर रखा है। सऊदी अरब के साथ कारोबारी हित तो हो सकते हैं, लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो उन्होंने कोई निवेश नहीं किया है। मुस्लिम फॉर ट्रंप के चेयरमैन साजिद तरार कहते हैं कि पाकिस्तान अमेरिका का लंबे समय से सहयोगी रहा है, लेकिन अब पूरी तरह चीन की तरफ उसका झुकाव चिंता का कराण है। वह कहते हैं कि यह कोई दबी छुपी बात नहीं है कि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच दो तीन मुद्दों पर मतभेद हैं। इनमें खासकर हक्कानी ग्रुप को समर्थन, चीनी आर्थिक कॉरिडोर और सीधे सीधे (पाकिस्तान का) चीन की तरफ झुकाव शामिल है।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से कुछ देशों पर लगाए गए यात्रा प्रतिबंध को जायज ठहराया जबकि एक ओर मानवाधिकारवादी संगठनों ने ट्रंप के इस फैसले की कड़ी आलोचना की थी। इसे चुनौती देने वालों का तर्क था कि यह नीति मुस्लिमों के खिलाफ ट्रंप की शत्रुता से प्रेरित है। उन्होंने कोर्ट से कहा था कि वह ट्रंप के उकसावे से भरे उन बयानों का भी संज्ञान ले जो उन्होंने 2016 में राष्ट्रपति चुनावों के प्रचार के दौरान दिए थे।
जहां गिरती अर्थव्यवस्था के कारण पाकिस्तान के विदेश मुद्रा भंडार में भारी कमी देखी जा रही है। बीते साल मई, 2017 में जहां पाकिस्तान का विदेश मुद्रा भंजार 16.4 बिलियन डॉलर था जे कि अब गिरकर 10.3 बिलियन डॉलर रह गया है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान आज अगर अमेरिका के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटा पा रहा है, तो उसकी वजह है उसका सदाबहार दोस्त चीन। चीन ने पाकिस्तान में बड़ा निवेश किया है। पाकिस्तान को चीन से बड़ी आर्थिक सहायता मिल रही है। पाकिस्तान और चीन की दोस्ती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवाने की भारत की कोशिशों को लगातार बाधित कर रहा है।