8 अप्रेल 2016 को शुक्रवार है। इस दिन जयपुर- सूर्योदय प्रात: 6.14, सूर्यास्त सायं 6.44, चन्द्रोदय प्रात: 6.51, चन्द्रास्त सायं 7.57 बजे होगा।
शुक्रवार को शुभ वि.सं.: 2073, संवत्सर नाम: सौम्य, अयन: उत्तर, शाके: 1938, हिजरी: 1437, मु.मास: जमादि-उलसानि-29, ऋतु: बसंत, मास: चैत्र, पक्ष: शुक्ल है।
शुभ तिथि
प्रतिपदा नन्दा संज्ञक तिथि दोपहर बाद 1.06 तक, तदुपरान्त द्वितीया भद्रा संज्ञक तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित कहे गए हैं। पर देवी कार्य व नवरात्रा में शुक्ल प्रतिपदा को शुभ माना है।
द्वितीया भद्रा संज्ञक तिथि में समस्त शुभ व मांगलिक कार्य यथा विवाह, उपनयन, वस्त्राभूषण, कला, वाहन, वास्तु और यात्रादि शुभ हैं। प्रतिपदा तिथि में जन्मा जातक स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ कमजोर होता है। इनके दीर्घायु के लिए कुछ पूजा पाठ करवा लेना अच्छा है। वैसे प्रतिपदा में जन्मे जातकों की बनाव-शृंगार में विशेष रूचि रहती है। वैसे स्वस्थ रहे तो ये लोग बड़े तेजस्वी और प्रभावशाली होते हैं।
नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र रात्रि 11.23 तक, इसके बाद भरणी नक्षत्र रहेगा। अश्विनी नक्षत्र में औषध ग्रहण, यात्रा, अलंकार, विद्या, चित्रकारी व कलादि कार्य करने चाहिए। भरणी नक्षत्र में साहसिक, उग्र, अग्निविषादिक असद् कार्य, शत्रुमर्दन व बन्धन आदि के कार्य सिद्ध होते हैं।
मांगलिक कार्यादि शुभ नहीं रहते हैं। अश्विनी गण्डान्त मूल संज्ञक नक्षत्र में जन्मे जातकों के सम्भावित अरिष्ट निवारण की दृष्टि से आगे 27 दिन बाद जब अश्विनी नक्षत्र की पुनरावृत्ति हो उस दिन नक्षत्र शान्ति करा लेना हितकर रहेगा।
अश्विनी नक्षत्र में जन्मा जातक सुंदर, रूपवान, ऐश्वर्यवान, दक्ष, बुद्धिमान, अलंकारप्रिय और शूरवीर होता है। इनका भाग्योदय लगभग 20 वर्ष के बाद होता है।
योग
वैधृति नामक अत्यन्त उपद्रवकारी योग प्रात: 10.40 तक, इसके बाद विष्कुम्भ नामक नैसर्गिक अशुभ योग रहेगा। वैधृति नामक योग में समस्त शुभ व मांगलिक कार्य सर्वथा निषेधनीय है।
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विशिष्ट योग
कुमार योग नामक शुभ योग सूर्योदय से दोपहर बाद 1.06 तक, सर्वार्थसिद्धि नामक शुभ योग रात्रि 11.23 तक तदुपरान्त राजयोग नामक शुभ योग अगले दिन सूर्योदय तक रहेंगे।
करण
बव नाम करण दोपहर बाद 1.06 तक, तदन्तर बालव आदि करण हैं।
चंद्रमा
सम्पूर्ण दिवारात्रि मेष राशि में रहेगा।
व्रतोत्सव
शुक्रवार से चांद्र संवत्सर विक्रम संवत् 2073 प्रारम्भ, बसंत नवरात्रा शुरू, घटस्थापना, नवीन चन्द्र दर्शन, 30 मु. उत्तर शृंगोन्नत, चैत्र शुक्लादि, गुड़ी पड़वा, श्री गौतम जयन्ती, चेटीचण्ड, श्री झूलेलाल जयन्ती, कल्पादि, सिंजारा (गणगौर) तथा वैधृति पुण्यं।
बसंत नवरात्रा में घट स्थापना मुहूर्त
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शुक्रवार को बसंत नवरात्रा प्रारम्भ हो रहे हैं। शास्त्रानुसार घट स्थापना का समय प्रात:काल में ही श्रेष्ठ बताया गया है, किन्तु इस दिन चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग को वर्जित बताया है।
प्रात: 10.40 तक वैधृति योग होने से घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त, अभिजित मुहूर्त में ही शुभ रहेगा। जो दोपहर 12.04 से 12.54 तक होगा। चौघडि़यों की दृष्टि से घट स्थापना करने वाले वैधृति योग के बाद प्रात: 10.40 से 10.55 तक अमृत के चौघडि़ए तथा दोपहर 12.29 से दोपहर बाद 2.03 बजे तक शुभ के चौघडि़ए में भी यथाआवश्यक घट स्थापना कर सकते हैं।
नवरात्रा में देवी पूजा करने वाले श्रद्धावन भक्तजनों को प्रथम दिन सर्वप्रथम हिमालय की पुत्री भगवती शैलपुत्री के स्वरूप ध्यान करना चाहिए। जिन्होंने असुरों का संहार किया था। भौतिक एवं आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए इनकी साधना करते हैं।
शुभ मुहूर्त
उक्त शुभाशुभ समय, तिथि, वार, नक्षत्र व योगानुसार शुक्रवार को किसी शुभ व मंगल कृत्यादि के शुभ व शुद्ध मुहूर्त नहीं हैं।
वारकृत्य कार्य
शुक्रवार को सामान्यत: मनोरंजन व मनोविनोद के कार्य, नृत्य-वाद्य- गीत-कलारम्भ- सांसर्गिक कार्य, धन-सम्बन्धी कार्य, भूमि क्रय-विक्रय, नवीन वस्त्राभूषण धारण व कृषि सम्बन्धी समस्त कार्य शुभ होते हैं।
दिशाशूल
शुक्रवार को पश्चिम दिशा की यात्रा में दिशाशूल रहता है। अति आवश्यकता में कुछ जौ के दाने खाकर शूल दिशा की अनिवार्य यात्रा पर प्रस्थान कर लेना चाहिए। चंद्र स्थिति के अनुसार पूर्व दिशा की यात्रा लाभदायक व शुभप्रद है।