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आम पार्टियों की तरह सरे-आम हुई ‘आप’, कुछ भी ना रहा खास

800x480_IMAGE57421213नई दिल्ली। ‘बदलाव की राजनीति’, ईमानदारी, आम आदमी की आवाज जैसे जुमलों के साथ देश की सियासत में कदम रखने वाली आम आदमी पार्टी में अब कुछ भी खास नहीं है। भ्रष्टाचार और वीआईपी कल्चर से दूर रहने का वादा हवा हो चुका है और पार्टी बेहद आम हो चुकी है। मंत्री हो या विधायक, सब बेनकाब हो रहे हैं।

फरवरी 2015 में दिल्ली की सत्ता में दोबारा काबिज होने वाली आम आदमी पार्टी का असल चेहरा 18 महीने में ही दिख गया।

राजनीति की जिस गंदगी से दूर रहने का दावा अरविंद केजरीवाल और उनके साथी करते रहे हैं, अब पार्टी उसी दलदल में धंसी है। 18 महीने में तीन मंत्रियों को निकाला गया है तो करीब 12 विधायक अलग-अलग मामलों में गिरफ्तार भी हो चुके हैं। हर बार पार्टी ‘कड़ी कार्रवाई’ का राग अलापती है और अंदरखाने गोलमाल जारी रहता है।
31 अगस्त की शाम दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री संदीप कुमार की सेक्स सीडी सामने आई तो आम आदमी पार्टी में फिर भूचाल आया। पार्टी ने आनन-फानन में मंत्री को बर्खास्त कर दिया और यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी अपने वादे पर अड़िग है, लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका है। आम आदमी पार्टी के मंत्री और विधायकों ने सत्ता में होकर पाक साफ होने का दावा करते हुए गैरकानूनी काम किए वह अब किसी से छिपा नहीं है। पहले भी पार्टी के भीतर आवाजें उठीं, इल्जाम लगे, कई चेहरे बेनकाब हुए लेकिन AAP आलाकमान ने अंदर के हाल पर गौर नहीं किया। वजह यही है कि इन घटनाओं से सबक न लेना केजरीवाल और AAP के लिए नासूर बन गया।

मार्च 2015: डिग्री फर्जी में फंसे कानून मंत्री
दिल्ली सरकार के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर पर फर्जी डिग्री रखने का आरोप लगा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तोमर के खिलाफ धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश रचने समेत आईपीसी की कई धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया। पार्टी ने तोमर का बचाव किया और केंद्र सरकार पर साजिश रचने का आरोप लगाया।

अक्टूबर 2015: भ्रष्टाचार में फंसे कैबिनेट मंत्री
दिल्ली सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री मंत्री रहे आसिम अहमद पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा। उन पर एक बिल्डर से छह लाख रुपये मांगने का आरोप था।दिल्ली के मटिया महल से विधायक आसिम अहमद के खिलाफ शिकायत मिलने पर केजरीवाल ने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्हें मंत्री पद से हटा दिया। उस वक्त केजरीवाल ने इसे ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि देश की राजनीति में सबसे ईमानदार राजनीति करने वाली पार्टी सिर्फ AAP है। हालांकि पार्टी आलाकमान इस केस के बाद भी दूसरे नेताओं पर नजर रखना भूल गया।

जून 2016: घोटाले के आरोप में घिरे गोपाल राय
राजधानी दिल्ली में एप आधारित प्रीमियम बस सर्विस के घोटाले में घिरने के बाद परिवहन मंत्री गोपाल राय ने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों को वजह बताया। केजरीवाल सरकार ने गोपाल राय का मामला सामने आने के बाद गंभीरता नहीं दिखाई और पार्टी के मंत्री विधायक बेलगाम होते रहे।

केजरीवाल पर भारी पड़ा उनका ही फंडा
दिल्ली में 49 दिनों के पहले कार्यकाल में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आम जनता से अपील की थी कि अगर कोई भी अधिकारी या सरकारी कर्मचारी उनसे रिश्वत मांगता है, या किसी तरह का भ्रष्टाचार करता है तो उसकी रिकॉर्डिंग करके पेश करें, और सरकार कार्रवाई करेगी। जनता ने केजरीवाल की बात पर अमल किया और देखते ही देखते केजरीवाल का ‘पब्लिक कनेक्ट’ का फंडा AAP नेताओं को पार्टी से ‘डिस्कनेक्ट’ करने लगा। हाल ही में पंजाब में आम आदमी पार्टी के संयोजक रहे सुच्चा सिंह छोटेपुर भी स्टिंग ऑपरेशन में फंसे थे। वह इस स्टिंग में पार्टी कार्यकर्ता को टिकट देने के बदले कथित रूप से दो लाख रुपये की डिमांड कर रहे थे। इसके बाद उन्हें पार्टी ने संयोजक पद से हटा दिया था। इसके अलावा दिल्ली सरकार के मंत्री इमरान हुसैन पर भी अपने सहायक के जरिए रिश्वत मांगने का आरोप लगा। कांग्रेस ने इसे लेकर सबूत के तौर पर एक टेप भी जारी किया था।

रौब दिखाने में भी कम नहीं रहे AAP नेता
दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन पर जुलाई 2016 में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने बदसलूकी करने का आरोप लगाया था। उन्होंने सत्येंद्र जैन के खिलाफ उपराज्यपाल को चिट्ठी लिखकर शिकायत की थी। इसके अलावा पार्टी के विधायक दिनेश मोहनिया को महिला से बदसलूकी के आरोप में जून 2016 में बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस से गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर एक महिला ने थप्पड़ मारने का आरोप लगाया था।
आम आदमी पार्टी के नेताओं के विवादों में आने का सिलसिला पहली सियासी पारी से ही हो गया था, जब तत्कालीन कानून मंत्री सोमनाथ भारती दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन अफ्रीकी महिलाओं के खिलाफ एक्शन लेने और छापेमारी की बात पर अड़ गए। इस मामले ने न सिर्फ सोमनाथ भारती बल्कि आम आदमी पार्टी की साख पर भी बट्टा लगाया। AAP की वह गठबंधन सरकार सिर्फ 49 दिनों तक ही चली। साल बदला एक बार फिर राजधानी में AAP की सरकार बनी। पूर्ण बहुमत के साथ। लेकिन पार्टी में सुधार के बजाय परंपरागत सियासत का रंग चढ़ता गया। नए-नए नेता बने ‘आम आदमी’ पर सत्ता का रसूख असर करने लगा और एक के बाद के विधायक गंभीर आरोपों में फंसते गए। भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश, घरेलू हिंसा और छेड़छाड़ जैसे कई मामलों में AAP के करीब 15 विधायकों को नामजद किया जा चुका है। इनमें से करीब 12 गिरफ्तार भी हो चुके हैं।

 

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