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आयुर्वेदिक काढ़े, हर कैंसर का हैं रामबाण इलाज

दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ phpThumb_generated_thumbnail (36)कैंसर के इलाज और बचाव के लिए कुछ आयुर्वेदिक काढ़े भी फायदेमंद हो सकते हैं। इन काढ़ों को विशेषज्ञ निश्चित मात्रा में जड़ी-बूटियों से तैयार करते हैं। जानिए कौनसा काढ़ा किस तरह के कैंसर में असरदार होता है…

कचनार है खास दवा-

आयुर्वेद में इसे कैंसर की प्रमुख दवा माना जाता है क्योंकि यह पहली से लेकर अंतिम स्टेज तक काम में ली जाती है। इसे काढ़े व चूर्ण दोनों रूप में दिया जाता है। इसे कैसे व कितनी मात्रा में लेना है इसका निर्धारण विशेषज्ञ विभिन्न अंगों के कैंसर व अवस्था के मुताबिक करते हैं।

थाइरॉइड कैंसर में सहजन का प्रयोग- इसकी पत्तियों, फूलों व छाल को थायरॉइड व सर्वाइकल कैंसर में प्रयोग करते हैं। इन्हें ज्यादातर काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मुंह की तकलीफ में उपयोगी देसी बबूल- इसकी छाल व पत्तियां मुंह व आमाशय के कैंसर में विशेष रूप से लाभकारी हैं। एक रिसर्च के मुताबिक इसकी पत्तियों में छाल से भी ज्यादा कैंसररोधी तत्त्व पाए जाते हैं लेकिन तीक्ष्ण (तीखा) होने के कारण ये मेटाबॉलिज्म को नुकसान पहुंचा सकती हैं इसलिए काढ़े में पत्तियों के बजाय सिर्फ छाल का ही प्रयोग किया जाता है। पत्तियों में मौजूद तत्त्वों का फायदा लेने के लिए विशेषज्ञ इसकी पत्तियों को पानी में उबालकर कुल्ला करने की सलाह देते हैं। इससे मुंह में मौजूद कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

आंतों की समस्या दूर करती वरुण की छाल-

किडनी, ब्लैडर, आंतों और यूरिनरी कैंसर में अधिक लाभकारी है। इसकी छाल का प्रयोग काढ़े के रूप में किया जाता है।

पुनर्नवा का पंचांग-

इसे भी सभी प्रकार के कैंसर के लिए फायदेमंद माना जाता है। लेकिन यह ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए खासतौर पर फायदेमंद है। औषधि के रूप में इसके पंचांग (फल, फूल, पत्तियां, तना, जड़) का रस, काढ़ा व चूर्ण प्रयोग में लिया जाता है। पंचांग बाजार में भी आसानी से उपलब्ध है। इसकी पत्तियों की सब्जी भी बनाकर खा सकते हैं।

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