नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मध्य प्रदेश के बुधवार के भाषण को लेकर उनकी तीखी आलोचना की और उनकी समझ पर सवाल उठाया।जेटली ने कहा ‘आखिर वह (राहुल गांधी) कितना जानते हैं? वह चीजों को कब समझेंगे ?’ राहुल ने मंदसौर में किसानों की सभा को संबोधित किया था। कांग्रेस नेता के भाषण के जवाब में जेटली ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा, ‘हर बार मैं राहुल गांधी के विचारों को सुनता हूं। संसद के भीतर और बाहर-दोनों जगह। मैं स्वयं से पूछता हूं कि आखिर वह कितना जानते हैं? वह कब समझेंगे ?’ जेटली ने लिखा कि मध्य प्रदेश के उनके भाषण को सुनने के बाद इस सवाल के जवाब को लेकर मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई, क्या उन्हें अपर्याप्त जानकारी दी जाती है या वह अपने तथ्यों को लेकर कुछ ज्यादा ही उदार हैं। राहुल के इस आरोप पर कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 शीर्ष उद्योगपतियों के 2.5 लाख करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए हैं, जेटली ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष की यह बात तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि सरकार ने उद्योगपतियों का एक रुपया भी माफ नहीं किया है बल्कि तथ्य इसके ठीक उलट है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रहे जेटली ने कहा, ‘जिन लोगों के ऊपर बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों का बकाया है, उन्हें दिवाला घोषित किया गया और उन्हें आईबीसी (ऋण शोधन एवं दिवाला संहिता) के जरिए उनकी कंपनी से बेदखल किया गया है। इस कानून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने लागू किया, इनमें ज्यादतर कर्ज यूपीए शासन के दौरान दिए गए। राहुल गांधी की इस टिप्पणी पर कि मोदी ने दो हीरा कारोबारियों को 35,000-35,000 करोड़ रुपए दिए जो अब देश छोड़कर चले गए, जेटली ने कहा कि यह तथ्यात्मक रूप से गलत है। उन्होंने कहा कि बैंक धोखाधड़ी 2011 में शुरू हुई, उस समय यूपीए का शासन था। इस धोखाधड़ी का पता एनडीए सरकार के आने के बाद लगा। कांग्रेस अध्यक्ष का संकेत हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी की ओर था। दोनों ने फर्जी गारंटी पत्रों के जरिए पंजाब नेशनल बैंक के साथ 13 हजार करोड़ रुपए के कर्ज की धोखाधड़ी की। राहुल ने यह भी आरोप लगाया कि एनडीए सरकार केवल उद्योगपतियों को कर्ज दे रही है, किसानों को नहीं। वरिष्ठ बीजेपी नेता जेटली ने कहा कि यह स्थिति खास कर यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल (यूपीए- दो) में थी। उन्होंने कहा कि आज जो कर्ज फंसे (एनपीए) हैं, उसका बड़ा हिस्सा बैंकों द्वारा 2008-14 में दिया गया।