इक्स्ट्रा करने वाला ही बनता है इक्स्ट्रा आर्डिनरी
शख्सियत : राम कुमार सिंह
युवा राजनीतिज्ञ, सेवानिवृत्त आईएएस के सुपुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चेहेते वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के साइंस एण्ड टेक्लोलॉजी मंत्री अभिषेक मिश्रा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद भी पारिवारिक संस्कारों और नैतिक मूल्यों को प्रथम वरीयता देते हुए राजनीति में प्रवेश के साथ ही पहली बार में ही समाजवादी पार्टी के टिकट पर लखनऊ की पूर्वी विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बने और सरकार के गठन के साथ ही मंत्री पद प्राप्त करने में सफल रहे।
राजनीति के साथ-साथ जीवन की ढेर सारी उपलब्धियों को प्राप्त करने के बाद उनकी सकारात्मक आधुनिक विकास की सोच ने ही उन्हें अपनी विधानसभा में एक चहेते विधायक की छवि तो बना ही दी है और प्रदेश में एक स्वच्छ व स्पष्ट विजन वाले मंत्री के साथ ही युवा शख्सियत के रूप में प्रदेश की राजनीति में एक उदाहरण भी बन गये जो पढ़े-लिखे और प्रोफेशनल कोर्सेज के द्वारा मोटी तनख्वाह पर बड़ी कंपनियों में कार्यरत युवाओं में भी राजनीति के प्रति एक सकारात्मक विचार पैदा करता है। उनको देखकर बहुत सारे कर्मठ लोग प्रदेश की राजनीति में आने को लालायित हैं और अपनी कार्यक्षमता से प्रदेश की नीतियों और कार्यक्रमों में अपनी बेहतर समझ के साथ अपनी सेवायें देने को तैयार हैं। ईमानदार सोच के साथ व्यवस्था परिवर्तन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार कठिन परिश्रम और चुनौतियों को स्वीकार कर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके विकास के एजेंडे को सफल बनाने में लगे हुए हैं।
संपादक राम कुमार सिंह से अंतरंग बातचीत के अंश।
अभिषेक जी अपने प्रारंभिक जीवन यानि शिक्षा-दीक्षा और राजनीतिक जीवन की शुरुआत कैसे हुईइसके बारे में कुछ बताइये?
मेरी स्कूलिंग लखनऊ के सेंट फ्रांसेस स्कूल से शुरू हुई, उसके बाद सेंट जोजफ नैनीताल, डीपीएस आरकेपुरम दिल्ली से दसवी और बारहवीं की पढ़ाई पूरी की और फिर बैचलर डिग्री लखनऊ यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट इन इकोनामिक्स की पढ़ाई 1994-97 तक हुई। उसके बाद मैं विदेश (यूके) चला गया जहां इंटरनेशनल और डोमेस्टिक मैनेजमेंट कंसल्टेंसी का काम करने का मौका मिला। कैम्ब्रिज कामनवेल्थ ट्रस्ट का स्कॉलर रहा जो कि इंडिया में और पूरी दुनिया में स्कॉलरशिप देते हैं सारे कॉमनवेल्थ कंट्रीज में। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिर्टी में जज बिजनेस स्कूल जो उनका बिजनेस स्कूल है से एमफिल व पीएचडी की। उसमें इनपुट्स थे एमआईटी के जो एक ज्वाइंट प्रोग्राम चलाते हैं सीएमआई के नाम से जिसमें कैम्ब्रिज के सारे इंस्टीट्यूशन को लाभ मिलता है, तो वो किया। लौट के आईएम अहमदाबाद में पढ़ाने का मौका मिला। चार-पांच साल वहां पढ़ाया। बहुत सारे प्रोजेक्ट करने का मौका मिला। आईएएस, आईपीएस आफिसर की ट्रेनिंग का प्रोग्राम डायरेक्टर रहा। बहुत सारे कारपोरेट सेक्टर में कंसल्टेंसी और राइटिंग, मैनेजमेंट कंसल्टेंसी का बहुत सारा काम सी ईओ लेविल पर किया। पब्लिक सेक्टर के लिए भी काम करने का मौका मिला। गुजरात सरकार के लिए नेशनल पालिसी, नॉलेज कमिशन के लिए काम किया। वो कंसल्टिंग प्रोजेक्ट थे आईआई एम अहमदाबाद के, मेरे अपने नहीं थे आईआई एम अहमदाबाद को मिले थे उसके माध्यम से हम लोग उसमें काम कर रहे थे। उसके बाद सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट रहा सिक्स सेंट्रल पे कमीशन जिसके लिए मैं और मेरी पत्नी दोनों लोग कंसल्टेंट रहे। उसके बाद फिर माननीय मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में चलते हुए राजनीति में आने का मौका मिला। उनसे प्रेरित होकर, उनकी सादगी, सज्जनता, सहजता से प्रेरित होकर और उनके व्यक्तित्व से आकर्षित होकर हम लोग राजनीति में आये। यह उन्हीं का विजन था, उन्हीं की काबिलियत थी और उन्हीं का निर्णय था कि हम जैसे लोग राजनीति में आ गये। उन्होंने हमें टिकट भी दिया और चुनाव भी लड़ाया, हमारी विधानसभा में खूब समय निकाल कर प्रचार भी किया, हम लोगों को जिताया, साथ में काम करने का मौका दिया, यह हमारी खुशकिस्मती है।
मतलब आपके अनुसार आपके राजनीति में आने के प्रेरणास्रोत अखिलेश यादव ही रहे तो पहला कोई ऐसा वाकया बताइये कि जब उन्होंने ये कहा हो कि अभिषेक और सब कुछ छोड़कर राजनीति में आ जाओ और राजनीति करो?
जी हां, राजनीति में लाने का श्रेय तो उन्हें ही जाता है, पर पहला कोई वाकया पिन प्वाइंट करना तो मुश्किल है मेरी मुलाकात चूंकि बॉस के स्कूलिंग टाइम से ही थी, फिर वो स्वयं राजनीति में आये और फस्र्ट टर्म एमपी हुए, फिर वो सेकेंड टर्म एमपी बने, थर्ड टर्म एमपी बने। इस दौरान भी हम उनसे मिलते रहे। बहुत लगातार तो मैं नहीं कहूंगा पर हां बीच-बीच में हमारी मुलाकातें होती रहती थीं। तो हम लोगों के बीच में चर्चाएं होती रहती थीं, तो उनमें मेरे प्रति लाइकिंग थी और मेरे अंदर उनके प्रति सम्मान था कि वो औरों से अलग हैं। बहुत तरह की बातें उनसे होती रहती थीं जैसे बजट पर काफी चर्चाएं होना, इकोनॉमिक्स पर उनका बहुत कीन इंट्रेस्ट था कि ये क्या है, वो कैसे होता है? उनकी अपनी सोशलिज्म से प्रभावित थ्योरी है, उसकी लाइन पर काफी डिस्कशन होते रहते थे। कि कैपिटलिस्ट थॉट ऐसा है, वेस्टन थॉट ऐसा है, रसियन थॉट ऐसा है तो वो बातें उस कांस्टेस्ट में होती रहती थीं और इन्हीं सब बातों से हम एक दूसरे से प्रभावित होते चले गये।
आपके पिता सीनियर ब्यूरोक्रेट थे, जाहिर है कि उनका राजनीति के प्रति जरूर कोई अलग नजरिया रहा होगा तो जब आपने उनको बताया कि मैं राजनीति करना चाहता हूं तो उनका इस पर क्या कहना था?
बताने का मतलब नहीं उठता बल्कि हमने उनसे पूछकर ही राजनीति में आने का निर्णय लिया। राजनीति के प्रति उनकी सोच बहुत सकारात्मक है। उनके अनुसार राजनीति जनसेवा का सबसे बड़ा माध्यम है पर उनका कहना था कि राजनीति करनी है तो ठीक से सोच समझ लो, चार-छह महीने समय निकाल कर लोगों से मिल लो, प्रदेश में घूम लो, प्रदेश के बारे में जान लो। माननीय मुख्यमंत्री जी उस समय क्रांति रथ लेकर चल रहे थे उनसे मिल लो, उनके साथ दो-चार-दस दिन बिताओ और समझो कि काम क्या है? क्योंकि दूर से राजनीति को देखने से बहुत अच्छी लगती है, विधायक, मंत्री जैसे पद बहुत अच्छे लगते हैं पर आखिर वहां तक जाने के लिए करना क्या है ये तो ठीक से समझ लो। उनकी राजनीति के प्रति सोच बहुत सकारात्मक रही, राजनेताओं के प्रति उनके दिल में बहुत सम्मान है, यही कारण है कि हम लोगों के दिल में यही सोच ट्रांसफर हुई। नेताओं के निर्णय के बारे में वो कभी कोई ऐसा वाकया होता था जब किसी मिनिस्टर ने किसी बात पर अपनी राय रखी हो जो उनसे मेल न खाती हो और उसको वो बाद में सही पाते थे तो हम लोगों को कोट करके बताते थे कि देखो हम लोग ऐसा सोच रहे थे पर पब्लिक के हित में मिनिस्टर की बात ही ठीक थी। तो इन सब बातों का भी हम लोगों पर राजनीति के प्रति बहुत सकारात्मक असर पड़ा। वो हमेशा कहते हैं कि दुनिया में कोई सबसे कठिन काम है तो वह राजनीति है, ये ऐसा काम है जिसमें आपको लगातार मेहनत करनी है, रोज काम करना है, पब्लिक में बने रहना है, अपना काम भी दिखाना है, ईमानदार बने रहना है, सब कुछ करना है तो इसको देखकर सोच लो और कर सकते तो इससे बेहतर कोई काम भी नहीं। क्योंकि ये जो व्यवस्था को चलाने की जो नीति तय होती है ये उससे जुड़ा है, यह रोज की आम आदमी की जिंदगी से जुड़ा हुआ कार्य है। जिससे तुम्हें अपने निर्णय लेने में आसानी हो सके और तुम्हें कभी ये न लगे कि तुमने निर्णय लेने में जल्दबाजी की। उन्होंने तीन चीजें हम लोगों को सिखाई- पहली विद्या और ज्ञान का संसार सबसे ऊंचा है। दुनिया के किसी भी हिस्से में सम्मान है, इज्जत है तो विद्या की, काबिलियत की है, तो अपने अंदर काबिलियत और ज्ञान पैदा करना पहली शिक्षा यही मिली। वह खुद भी यूपी बोर्ड के टॉपर रहे। रुड़की में बहुत अच्छा किया उन्होंने, आईएसएस आफिसर बने ही। वह कहते थे कि आर्डिनरी और इक्स्ट्रा आर्डिनरी में यही अंतर है कि जो इक्स्ट्रा करता है वही इक्स्ट्रा आर्डिनरी हो जाता है और आर्डिनरी अपनी जगह रह जाता है। तो इक्स्ट्रा करने का एक जज्बा पैदा करना चाहिए और कठिन मेहनत करनी चाहिए। कुछ न हो फिर भी अगर आप मेहनत करते रहते हैं तो रास्ता खुद ब खुद बन जाता है। तो दूसरा मेहनत करने का जज्बा हमने उन्हीं से सीखा। तीसरा मैंने उनसे यह सीखा कि जो लगता है कि हमें राजनीति में ही नहीं हर कॅरियर में काम आया, कि आपके बगल वाला जो काम कर रहा है, आपने जो लाइन चुनी, आप चाहे झाड़ू लगाते हों, गमला लगाते हों, चाहे आप पढ़ाते हो उसमें ये कोशिश करना चाहिए कि बाकी लोग जैसा कर रहे हैं पहले उसकी जानकारी कर लो, आपके बगल में क्या हो रहा है ये जानना बहुत जरूरी है। मसलन कर्नाटका में क्या हो रहा है, चेन्न्ई में क्या हो रहा है, अर्जेन्टीना में क्या हो रहा है, थाईलैंड में क्या हो रहा है, ये हमें पता होना चाहिए, फिर उससे अच्छे का प्रयास हमें करना चाहिए। और जो आपको अच्छा लगता है उसी लाइन में काम करें। जिंदगी में जिस लाइन में चाहोगे पैसा और नाम दोनों कमा सकते हो। दुनिया में बहुत अच्छे पेंटर हैं जो अच्छा पैसा कमाते हैं, बहुत अच्छे वकील हैं जो पैसा कमाते हैं, बहुत अच्छे डॉक्टर हैं जो पैसा कमाते हैं तो दुनिया में पैसे और नाम की कहीं कमी नहीं है। बस आपको दूसरों से बेहतर काम करना है। अपनी ही नजर में ही नहीं, दूसरों की नजर में भी जो काम आपको मिले उसमें आप डिलीवर करते रहिए। तीसरी सीख हमें उनसे यही मिली। यही उनकी प्रेरणा और सीख हमेशा हमारे काम आती रहती है।
जब राजनीति में नहीं थे तब और अब जबकि सक्रिय राजनीति में आ चुके हैं, क्या अन्तर महसूस करते हैं?
इस पर मैं यह कहूंगा कि राजनीति का बहुत रियलेस्टिक एक्सपेक्टेशन मुझे पहले से था क्योंकि राजनीति मैंने पिताजी की नजरों से 30-35 साल देखी थी। तो मुझे पता था कि व्यवस्था कैसे काम करती है, मिनिस्टर ये करता है, नगर अध्यक्ष ये करता है, ब्यूरोक्रेट कैसे काम करते हैं, प्रमुख सचिव ये करता है, डीएम वो करता है, इसका मुझे पता था। लेकिन जब हम राजनीति में आये तब हमें पहली बार यह एहसास हुआ कि जो आम आदमी है, उसकी जिंदगी में एक पोलिटिकल आदमी की कितनी जरूरत होती है क्योंकि जो हमारा सिस्टम चल रहा है, उस सिस्टम में मुझे लगता है कि डेमोक्रेसी की ये अच्छाई है राजनीतिक व्यक्ति है तो आम आदमी की सिस्टम में सुनवाई है वरना अगर पोलिटिकल क्लास न हो और डेमोक्रेसी का सिस्टम न हो तो आम आदमी की सुनवाई नहीं हो सकती। व्यवस्था ऐसी पहुंच गयी है। उसको चेंज करने का सबको समाजवाद का सबको समान अधिकार मिल जाये और उनको मुख्य धारा से जोड़ा जा सके, चाहे राजनीतिक रूप से या आर्थिक रूप से हो, उससे आम आदमी को जोड़ा जा सके, उस पर काम करने का मौका मिला और जिससे इन मामलों की समझ बहुत गहरी हुई। पहले उसकी समझ मुझे इतनी नहीं थी। क्योंकि उससे पहले हम दुनिया को अलग नजर से देखते थे। ब्यूरोक्रेट के घर में पैदा हुए, जिंदगी में बड़े अच्छे अफसरों में उनकी गिनती रही, फिर हम पढ़ने के लिए लंदन-अमेरिका चले गये, दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम किया तो जो सामाजिक धरातल पर सच्चाइयां हैं उनसे हम बहुत दूर थे।
राजनीति में आने और मंत्री बनने के बाद आपने क्या महसूस किया कि उप्र आगे कैसे बढ़ सकता है?
देखिए, उप्र बहुत बड़ा प्रदेश है। यहां संभावनायें अधिक हैं तो क्षमता भी कम नहीं है। मुख्यमंत्री भी बहुत ही सधे तरीके से काम करने वालों में से हैं। वो जानते हैं कि हर समस्या का समाधान तकनीक है। कोई भी काम हो वे सभी की राय जरुर जानते हैं। सलाह लेते हैं, उस पर विचार करते हैं और तब उसे अमलीजामा पहनाते हैं।
निश्चित तौर पर। उप्र की तकदीर, दशा और दिशा सब कुछ लखनऊ मेट्रो बदल देगा। इसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को वर्षों तक वैसे ही याद किया जायेगा जैसे कि लंदन मेट्रो के खाका तैयार करने वाले को आज 155 साल बाद भी याद किया जाता है। इसके अलावा आईटी सिटी बनाने का कदम भी क्रांतिकारी कदम है। वहीं लखनऊ-आगरा के बीच बन रहा एक्सप्रेस वे अगले 50 वर्षों तक उप्र के विकास का साक्षी बनेगा। मुख्यमंत्री की यही सोच भी है कि काम वह करो जो रोजमर्रा की जिन्दगी में काम आये। काम हो रहा है तो नतीजा भी निकलेगा।
बेहतर राजनीति आप किसे मानते हैं?
मेरे हिसाब से बेहतर राजनीति वह है जिसमें यह तय हो कि सरकारी खजाना यानि पैसा कहां खर्च होगा। वह पैसा पत्थर पर खर्च होगा या फिर एम्बुलेंस, दवाई, डाक्टर, शिक्षा, शिक्षक, आवास पर होगा। 1090 जैसे सेवा शुरु करके लोगों की मदद पहुंचाना बेहतर राजनीति है क्योंकि राजनीति ही तो तय करती है कि पैसा कहां खर्च होगा। स्किल डेवलपमेंट यानि कौशल विकास के क्षेत्र में बहुत काम यह सरकार कर रही है। मुख्यमंत्री ने यह काम दिसम्बर 2013 में ही शुरू कर दिया था। लोगों को उनकी रुचि के हिसाब से यदि प्रशिक्षित कर दिया जाये तो बहुत से काम आसान हो सकते हैं। बेरोजगारी दूर हो सकती है, गरीबी दूर हो सकती है। इसीलिए यूपी में अभी करीब 160 आईआईटी हैं, इसकी संख्या बढ़ाकर 220 करने जा रहे हैं। सभी जगह डिजीटल लैब बनायी गयी हैं। रिक्त पदों को भरा गया है और प्रोन्नति की बाधायें समाप्त की गयी हैं। कई नए कोर्स शुरु कर उन्हें चलाया जा रहा है। यही तो होती है बेहतर राजनीति, बेहतर सरकार।
लेकिन तब भी सरकार का विरोध बहुत है, ऐसा क्यों?
देखिए, विरोधी झूठा प्रचार करते हैं। शोर में सही बात दब जाती है और बुराई अच्छाई पर हावी हो जाती है। परन्तु सच कुछ और है। हम सरकार के कामों को जनता तक ले जा रहे हैं। अब उदाहरण के तौर पर, मैंने अपने ही विधानसभा क्षेत्र में रिकार्ड समय में डालीगंज का फ्लाई ओवर ब्रिज बनवाया। उसके बाद पुरनिया का ब्रिज तैयार हुआ। क्षेत्र की सड़कों की हालत जर्जर थी, जिसे बेहतर किया गया। हां, टूटी और खराब सड़कों की चर्चा बहुत हुई पर अब जबकि सड़कें अच्छी हो गयी हैं, डिवाइडर बन गए हैं, रंगाई पुताई हो गयी है तो इसकी चर्चा न मीडिया कर रहा है और न ही विपक्षी।
अपने विधानसभा क्षेत्र में और कौन-कौन से काम करने की योजना है?
सबसे पहले तो पक्के पुल जिसे लाल पुल भी कहा जाता है, उसकी दशा सुधारनी है। वह ऐतिहासिक धरोहर है। उसकी मरम्मत और साज सज्जा कराकर उसे नया रुप देना है। पुराने लखनऊ को जोड़ने के लिए एक और पुल भी एक साल के अन्दर बनाना है। इसके अलावा इंजीनियरिंग कॉलेज चैराहे पर फुट ओवर ब्रिज तथा आईटी कालेज चौराहे पर पुल बनाने की योजना है।
आप तो शिक्षा के क्षेत्र से निकलकर राजनीति में आ गए। युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
अच्छा होगा यदि नौजवान राजनीति में आते हैं तो। वे आयें और स्वच्छ राजनीति करें। उन्होंने जीवन में जो कुछ हासिल किया है, अपने उन अनुभवों से आम जनता को लाभान्वित करें। मेरे कुछ साथी भी राजनीति में आने को इच्छुक हैं पर चाहते हैं कि तीन-चार साल और नौकरी कर लें तब वे इस क्षेत्र में आयें। यदि युवा राजनीति में आता है तो वह देश, समाज और दुनिया के लिए अपना बेहतर योगदान देकर इसके भविष्य का एक नया अध्याय लिख सकता है। अब देखिए, जिन रास्तों, नहरों और नदियों की मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जानकारी है, उसके बारे में संबंधित विभाग का चीफ इंजीनियर भी नहीं बता सकता। यह सब कुछ अनुभव से आता है।
आध्यात्मिक रुचि रखते हैं क्या?
अध्यात्म पर मेरा बहुत अधिक विश्वास है। मैं ईश्वर पर विश्वास करने वाला व्यक्ति हूं। मेरे लिए ईश्वर एक ऐसी शक्ति है, एक ऐसा रेफ्रेंस प्वाइंट है बेंचमार्क है, एक ऐसा टच स्टोन है जो कि आपको सही और गलत का अंतर हमेशा बताता है और आपके अंदर आपकी अंतरात्मा ही असली ईश्वर है, ईश्वर आपके अंदर ही है, बाहर कहीं नहीं है। जहां सर झुकाओगे वहीं पत्थर देवता हो जायेगा। आपकी अंतरात्मा ही है जो सही और गलत का अंतर आपको बताती रहती है। जो करना है उसकी तरफ प्रेरित करती है, गलत काम से रोकती है, सुनें या न सुनें आपकी मर्जी। जैसे मां बच्चे को कहती है कि बारिश में बाहर मत जाओ अब बच्चा फिर भी चला जाये तो मां उसमें क्या करेगी। अगर बच्चा बीमार पड़ता है तो यह उसकी गलती है। और दूसरा हमारा मानना है कि ईश्वर ने जब आपको जन्म दिया तो उसने हमारे लिए कार्य भी निर्धारित किये हैं, उसकी नजरों में मैं जिस लायक हूं और उन्होंने जो कार्य हमारे लिए चुना होगा वो काम वो मुझसे करायेंगे, उससे ज्यादा नहीं और उससे कम नहीं। वो जो मौका मुझे दे, जितना अच्छा हो सके करना चाहिए। अपने से शिकायत मैं नहीं रखता। मुझे नहीं पता कि आज ईश्वर मुझे कहां तक पहुंचाना चाहता है क्या कार्य कराना चाहता है किस अग्नि में तपाकर कहां पहुंचाना चाहता है वो ईश्वर जानता है मैं नहीं जानता। जो मैं आज कर रहा हूं वह ईश्वर के हाथ का मोहरा भर हूं, वो जो मुझसे कराना चाहेगा, करा ही लेगा। ऐसी सोच रखने से मुझे बहुत सटिस्फेक्शन मिलता है और काम करने में बहुत मजा आता है। (साथ में, जितेन्द्र शुक्ला)